देहात में बारूद बिछा था, पुलिस बेखबर थी


मेरठ | जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में बारूद बिछा हुआ था और पुलिस बेखबर थी। विस्फोटक सामग्री का एक तरह से ग्रामीण क्षेत्र में कुटीर उद्योग चल रहा था। व्यापक स्तर पर जिस तरह से विस्फोटक सामग्री एकत्र कर कारोबार किया जा रहा था,मगर अफसोस इस बात का है कि पुलिस को इसका पता नहीं था। यह ऐसा कारोबार है जो बंद कमरे में नहीं किया जा सकता। क्योंकि मकानों की छतों पर विस्फोटक सामग्री को धूप भी लगाई जाती है।
खुले में पटाखे रखे जाते हैं, लेकिन फिर भी पुलिस बेखबर थी। यह हैरान कर देने वाली बात है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि विस्फोटक सामग्री का कारोबार एक-दो जगह नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में व्यापक स्तर पर किया जा रहा था। फिर सरधना व फलावदा में दो इतनी बड़ी विस्फोट की घटनाएं सामने आयी, मगर इस पूरे प्रकरण पर पुलिस यह कहकर लीपापोती कर रही है कि सिलेंडर फटने से घटना हुई है।
यह बेहद अफसोस की बात है। शहर में कहीं भी खुलेआम पटाखे नहीं बिके। चोरी-छिपे हो सकता है पटाखे बिके हो, मगर ओपन कहीं नजर नहीं आये। शहर में पुलिस की सख्ती का भी असर दिखा, मगर ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस ने व्यापक स्तर पर विस्फोटक सामग्री का स्टॉक करा दिया। सरधना में तीन सप्ताह पहले विस्फोटक सामग्री से कई मकानों की छत उड़ गई।
कांग्रेस के सरधना कस्बे के नगर अध्यक्ष समेत दो लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। जिस दिन यह घटना घटी, तब पुलिस ने यहीं कहा था कि सिलेंडर फटने से हादसा हुआ है। घटना के अगले दिन पुलिस ने कहा कि सिलेंडर नहीं, बल्कि विस्फोटक सामग्री में आग लगने से हादसा हुआ था।
इसकी एफआईआर भी थाने में दर्ज की गई। पहले दिन पूरे मामले में लीपापोती की गई। ठीक इसी तरह से फलावदा थाने के रसूलपुर गांव में भीषण विस्फोट हुआ। पिता-पुत्र की विस्फोट में जान चली गई। पुलिस ने अपनी गर्दन बचाने के लिए इसमें भी गैस सिलेंडर फटने की कहानी तैयार कर लीपापोती कर दी।
पुलिस झूठी कहानी तैयार करने में माहिर है, वहीं फलावदा की घटना में भी किया गया। जिन पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए थी,उनको सरकारी सिस्टम बचाने में जुट गया। सरधना व फलावदा में दो बड़ी विस्फोटक घटनाएं हुई, मगर लीपापोती करने की बात समझ में नहीं आयी।
विस्फोटक सामग्री एकत्र करने वालों को तो पुलिस ने क्लीन चिट दी ही, साथ ही उन पुलिस वालों को भी क्लीन चिट दे दी, जो इसमें लिप्त थे। क्योंकि इतने बड़े स्तर पर पुलिस के बिना मिलीभगत के विस्फोटक सामग्री एकत्र करना मुश्किल बात है। आला पुलिस अफसरों को इसमें दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। सरधना की घटना के बाद भी सबक नहीं लिया। यदि सबक लिया होता तो शायद फलावदा के रसूलपुर में विस्फोट नहीं हुआ होता।
ग्रामीण क्षेत्र की कड़ी है कमजोर
ग्रामीण क्षेत्र की कड़ी कमजोर है, जिसके चलते तमाम अवैध धंधे ग्रामीण क्षेत्र में चल रहे हैं। क्योंकि विस्फोट की दो बड़ी घटनाओं से पुलिस की खासी किरकिरी हो रही है। दोनों घटनाओं पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निगाहें हो सकती है। मुख्यमंत्री ने कैदारनाथ से लौटते ही लखनऊ में कमिश्नर पर गाज गिरा दी।
लखनऊ में शराब कांड पर कार्रवाई की है। ठीक इसी तरह से जनपद के ग्रामीण क्षेत्र में विस्फोट की लगातार दो घटनाओं ने पूरे जिले को हिलाकर रख दिया है। दोनों विस्फोट की घटनाओं का मुख्यमंत्री संज्ञान लेकर अधिकारियों पर गाज गिरा सकते हैं। इसी से ग्रामीण क्षेत्र के पुलिस अधिकारी सहमे हुए हैं। यही वजह है कि पुलिस ने विस्फोट की घटना को गैस सिलेंडर फटना बताकर कहानी को दूसरा मोड दे दिया है।
क्योंकि विपक्षी दलों के नेता भी विस्फोट की घटनाओं को मुद्दा बना सकते हैं। भाजपा नेता भी नहीं चाहते है कि जिस तरह से पहले शराब कांड को लेकर किरकिरी हुई थी, अब विस्फोटक सामग्री को लेकर विपक्ष हमलावर नहीं हो जाए।


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