धमाके की गूंज: नौगाम से उठते सुरक्षा के सवाल
- ममता कुशवाहा
नौगाम की उस दर्दनाक रात ने देश को एक बार फिर झकझोर दिया, जब खामोश आसमान के नीचे अचानक उठी विस्फोट की दहाड़ ने सुरक्षा तंत्र की नाजुक परतों को उजागर कर दिया। दिल्ली के लालकिले के पास हुए धमाके का धुआँ अभी बिखरा ही था कि नौगाम थाने में हुआ यह हादसा भय, विडंबना और लापरवाही के मिश्रित स्वरूप में सामने आया। आतंक की परछाइयों से जूझते देश के लिए यह घटना सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि चेतावनी है कि खतरा हमेशा बाहर से नहीं आता- कभी-कभी वह हमारी ही असावधानियों की गोद में पला होता है। यह घटना जितनी भयावह थी, उतनी ही विडंबनापूर्ण भी, क्योंकि यह विस्फोट किसी आतंकी हमले का परिणाम नहीं, बल्कि विस्फोटकों की जांच के दौरान हुई एक घातक चूक का नतीजा बताया गया। परंतु यह किसी साधारण दुर्घटना की तरह नजरअंदाज करने योग्य नहीं है, बल्कि सुरक्षा व्यवस्था, आतंकवाद की बदलती चुनौतियों और प्रशासनिक जिम्मेदारियों की गंभीरता की याद दिलाने वाली एक चेतावनी है।
नौगाम धमाके की पृष्ठभूमि में देखने पर इसकी जड़ें गहरी चिंता की ओर संकेत करती हैं। हाल ही में सुरक्षा एजेंसियों ने जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े एक आतंकी तंत्र का पर्दाफाश किया था, जिसमें कई लोगों को गिरफ्तार किया गया और भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद की गई। उसी बरामद सामग्री को विस्तृत परीक्षण के लिए नौगाम थाने लाया गया था। विस्फोटकों का परीक्षण एक अत्यंत संवेदनशील प्रक्रिया होती है, जिसमें क्षणभर की असावधानी भी जीवन और संपत्ति के लिए भारी खतरा बन जाती है। विस्फोटक सामग्री थाने तक तो सुरक्षित पहुँच गई, परंतु शायद उस वक्त यह समझना भूल गए कि असली चुनौती तो उनके परीक्षण के दौरान ही मंडराती है। यही कारण रहा कि जाँच की प्रक्रिया के बीच अचानक हुआ धमाका इतना प्रचंड साबित हुआ कि न केवल थाना भवन क्षत-विक्षत हो गया, बल्कि आसपास के घरों की दीवारें भी मानो किसी भूकंप जैसी कम्पन से कांप उठीं।
घटना के तुरंत बाद इसे आतंकी हमले की आशंका से जोड़कर देखा गया, क्योंकि यह क्षेत्र लंबे समय से आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र रहा है, और हाल के दिनों में लगातार ऐसी घटनाओं ने लोगों के मन में स्वाभाविक भय पैदा कर दिया है। लेकिन बाद में पुलिस और गृह मंत्रालय की ओर से यह स्पष्ट कर दिया गया कि यह धमाका किसी बाहरी हमले का परिणाम नहीं, बल्कि फोरेंसिक जांच प्रक्रिया के दौरान हुई एक अनजानी भूल का नतीजा है। यह कहना जितना सहज लगता है, उतना ही कठिन है यह समझ पाना कि जांच जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया में आखिर ऐसी चूक कैसे हो सकती है, जिसमें नौ जिंदगियाँ बेमौत चली गईं। यह सवाल सिर्फ चूक का नहीं, बल्कि उस संपूर्ण तंत्र की कार्यप्रणाली का है, जहाँ संवेदनशील कार्यों के लिए आवश्यक कौशल, अनुभव और सावधानी की अपेक्षा की जाती है।
विस्फोटकों की जांच के लिए नमूना निकालना एक अत्यंत सूक्ष्म ऑपरेशन होता है, जिसके लिए प्रशिक्षित विशेषज्ञों की मौजूदगी, अत्याधुनिक उपकरणों की उपलब्धता और नियंत्रित वातावरण की आवश्यकता होती है। यह शंका स्वाभाविक रूप से उठती है कि क्या थाने में मौजूद अधिकारी इस स्तर की विशेषज्ञता रखते थे। यदि नहीं, तो इतनी बड़ी मात्रा में खतरनाक सामग्री को थाने में लाना ही एक गंभीर भूल थी। यह समझना आवश्यक है कि आतंकियों से बरामद किए गए ऐसे विस्फोटक न केवल कानूनी साक्ष्य होते हैं, बल्कि वे स्वयं एक संभावित खतरा भी बने रहते हैं, जिन्हें संभालना किसी साधारण प्रशासनिक प्रक्रिया के तहत संभव नहीं। नौगाम धमाके का परिणाम हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि अगर यह विस्फोट आतंकियों के हाथों योजनाबद्ध तरीके से किसी भीड़भाड़ वाले इलाके में होता, तो हुई क्षति का स्वरूप कितना भयावह हो सकता था। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि सुरक्षा एजेंसियों ने एक बड़ी साजिश को भले ही विफल कर दिया हो, लेकिन बरामद सामग्री को संभालने के दौरान उनकी सावधानी पर्याप्त नहीं थी।
इस घटना का एक और पहलू आतंकवाद की बदलती प्रवृत्ति से भी जुड़ा है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद लंबे समय से सक्रिय रहा है, लेकिन हाल के महीनों में देखा गया है कि आतंकी संगठन अब देश के दूसरे हिस्सों में भी अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। फरीदाबाद में हुई गिरफ्तारी और दिल्ली के लालकिले के पास हुआ धमाका इस श्रृंखला का हिस्सा प्रतीत होते हैं। यह तथ्य अपने आप में चिंताजनक है कि आतंकवादी नेटवर्क अब बहु-क्षेत्रीय और बहु-स्तरीय रणनीतियों पर काम कर रहे हैं, जिसमें स्थानीय समर्थन, तकनीकी सहायता और विस्फोटकों की आसान उपलब्धता उनके हथियार बन गए हैं। ऐसे में यह अनिवार्य हो जाता है कि आतंकियों से बरामद हर वस्तु, चाहे वह रासायनिक पदार्थ हो, विस्फोटक उपकरण हों या कोई इलेक्ट्रॉनिक सर्किट को अत्यधिक सतर्कता के साथ संभाला जाए, क्योंकि कभी-कभी एक छोटी-सी चूक बड़ी त्रासदी का कारण बन जाती है।
नौगाम धमाका महज एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि एक व्यापक सबक है, जो बताता है कि सुरक्षा और सावधानी केवल कागज़ी कार्रवाइयों का विषय नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर गंभीरता से लागू किए जाने की आवश्यकता है। आतंकवाद का मुकाबला सिर्फ हथियारों से नहीं होता, बल्कि उससे बरामद सामग्री की सही हैंडलिंग और वैज्ञानिक तरीके से जांच भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। यदि जांच प्रक्रिया में तकनीकी विशेषज्ञता कमी हो, या नेतृत्व स्तर पर समुचित मार्गदर्शन न मिले, तो ऐसे हादसे होना स्वाभाविक है। यह घटना सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक चेतावनी है कि उन्हें अपने प्रशिक्षण, उपकरण और प्रक्रियाओं की गंभीरता से समीक्षा करनी चाहिए।
इस विस्फोट ने न केवल कई जिंदगियों को खत्म किया, बल्कि यह भी संदेश दिया कि सुरक्षा व्यवस्था में सिर्फ दुश्मन बाहरी नहीं होते- कई बार हमारी अपनी लापरवाहियाँ ही सबसे बड़ा खतरा बन जाती हैं। फिर भी, यह समय दोषारोपण का नहीं, बल्कि आत्ममंथन और सुधार का है। एक विस्तृत और निष्पक्ष जांच यह समझने में सहायता करेगी कि गलती कहाँ हुई, किस स्तर पर हुई और भविष्य में इसे रोकने के लिए कौन-से कदम आवश्यक हैं। यह भी जरूरी है कि विस्फोटक पदार्थों को संभालने वाले अधिकारियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाए, और ऐसी सामग्री की जांच के लिए थानों के बजाय सुरक्षित प्रयोगशालाओं या बम निरोधक इकाइयों का उपयोग अनिवार्य किया जाए।
नौगाम की यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि आतंकवाद से लड़ाई सिर्फ सीमा पर नहीं लड़ी जाती, बल्कि यह उस हर कमरे, हर प्रयोगशाला, हर थाने और हर मेज पर लड़ी जाती है, जहाँ विस्फोटकों को खोला, देखा, जांचा या समझा जाता है। छोटी-सी चूक भी कभी-कभी बड़े हादसे की शक्ल ले सकती है। यह विस्फोट एक त्रासदी जरूर है, पर साथ ही यह चेतावनी भी है कि सुरक्षा व्यवस्था में सुधार, संवेदनशीलता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने का समय बीत चुका, अब यह अनिवार्य है। यदि हम इस चेतावनी को समझ पाए, तभी हम आतंकवाद की बदलती परछाइयों से मुकाबला करने और देश को सुरक्षित रखने में सफल हो सकेंगे।





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