बौद्ध धर्म और मानसिक स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित

नागपुर (महाराष्ट्र)। मेत्तासेतु फाउंडेशन और अश्वघोष कला अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में “बौद्ध धर्म और मानसिक स्वास्थ्य” पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया।

बौद्ध धर्म और मानसिक स्वास्थ्य विषय पर आयोजित इस सम्मेलन में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ( जेएनयू), दिल्ली, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, बेंगलुरु, हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय और टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई जैसे अग्रणी संस्थानों से जुड़े करीब 50 प्रख्यात वक्ता, शोधकर्ता और प्रतिभागी शामिल हुए, जिन्होंने आधुनिक समय में बौद्ध दर्शन और मानसिक स्वास्थ्य के गहरे संबंधों पर विचार-विमर्श किया। इसके अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश और नाशिक से आए शोधार्थियों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।

राष्ट्रीय सम्मेलन में करीब 50 प्रतिभागियों जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय ( जेएनयू), दिल्ली, अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, बेंगलुरु, हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय और टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई जैसे अग्रणी संस्थानों से जुड़े , सम्मेलन में सम्मिलित हुए। दिल्ली, उत्तर प्रदेश और नाशिक से आए शोधार्थियों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. प्रदीप नगराले (मनोचिकित्सक) ने चेतना और विज्ञान भाषा पर अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. नगराले ने बुद्ध के उपदेशों में वर्णित चित्त के 121 प्रकारों और पंच स्कंधों (Five Aggregates) के माध्यम से मानव चेतना की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की

डॉ. कुमार कांबले (मनोचिकित्सक) ने पश्चिमी साहित्य और मन की अवधारणाएं विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। डॉ. कांबले  ने पश्चिमी मनोविज्ञान में अवसाद, आत्महत्या, भावनाएं और लत जैसे विषयों की समीक्षा करते हुए उनकी तुलना बौद्ध दृष्टिकोण से की।

आचार्य महानाग रतनम् (बौद्ध भिक्षु, परामर्शदाता एवं पाली भाषा प्रशिक्षक) ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। आचार्य रतनम् ने संमोहन (हिप्नोटिज़्म), अज्ञान, सुझाव और सतर्कता (माइंडफुलनेस) पर अपने विचार रखे और बताया कि बोधि ज्ञान के अभ्यास के माध्यम से जीवन में जागरूकता और परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है।

डॉ. दीप्ति किरतकर (स्त्रीरोग विशेषज्ञ) ने महिलाएं और मानसिक स्वास्थ्य पर अपने विचारों से अवगत कराया। डॉ. किरतकर ने महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन, मूड स्विंग्स, कलंक और मौन के कारण उत्पन्न मानसिक चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बौद्ध और सामाजिक आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका और उनकी करुणा व दृढ़ता को रेखांकित किया।

सम्मेलन का समापन करुणा, सजगता और सामुदायिक सौहार्द के संदेश के साथ हुआ, जिसमें बौद्ध मूल्यों से प्रेरित मानसिक रूप से स्वस्थ और आध्यात्मिक रूप से संतुलित समाज के निर्माण का आह्वान किया गया। 

इस राष्ट्रीय सम्मेलन को सफल बनाने में विजय तभाने, मंगेश दहीवाले, डॉ. सुरेंद्र वानखेडे, मनोज रंगारी, मिथुनकुमार नागवंशी, हिमांशु रंगारी, प्रणय शहारे, उत्कर्ष तायडे, आकाश, संघशील, असित, जागृति, वीरेंद्र गणवीर, निखिल राठोड़ और अम्लशील का विशेष योगदान रहा।

 

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