शिक्षा के उजियारे में आदर्श आचरण की आवश्यकता
- ममता कुशवाहा
शिक्षा का शाश्वत उद्देश्य केवल ज्ञान का संचार नहीं, बल्कि चरित्र का निर्माण है। एक शिक्षक वह दीपशिखा है जो न केवल अंधकार मिटाती है, बल्कि जीवन के पथ को आलोकित करती है। किंतु जब वही दीपशिखा धुंधला पड़ने लगे, स्वयं अंधकार में डूब जाए, तब शिक्षा का मंदिर कलंकित हो जाता है। पंजाब के लुधियाना जिले में प्राथमिक विद्यालय की एक शिक्षिका का स्कूल में नशा करने के आरोप में निलंबन इस कटु सत्य को उजागर करता है कि शिक्षा की गरिमा केवल पुस्तकीय ज्ञान से नहीं, बल्कि शिक्षक के आदर्श आचरण से स्थापित होती है। यह घटना केवल एक विद्यालय या प्रदेश का मामला नहीं है; यह समूची शिक्षा व्यवस्था, सामाजिक जिम्मेदारी और भावी पीढ़ी के नैतिक उत्थान से जुड़ा हुआ प्रश्न है।
शिक्षक को सदैव मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत माना गया है। बच्चे अपने जीवन के प्रारंभिक चरण में जिस व्यक्तित्व से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, वह है उनका शिक्षक। जब शिक्षक ही गलत आदतों का शिकार हो, अनुशासनहीन और आचरणहीन बन जाए, तब छात्रों के लिए अनुकरणीय आदर्श कहाँ से आएगा? उक्त घटना में स्थानीय पंचायत ने बार-बार चेतावनी दी, अभिभावकों ने शिकायतें कीं, किंतु शिक्षिका पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। ऐसे में सरकार द्वारा निलंबन की कार्यवाही आवश्यक थी, क्योंकि शिक्षा के पवित्र वातावरण में नशे की उपस्थिति बच्चों के मानस को विकृत कर सकती है।
शिक्षकों का कर्तव्य केवल पाठ्यपुस्तक पढ़ाना नहीं, बल्कि अपने जीवन से बच्चों के लिए प्रेरणा देना है। इतिहास साक्षी है कि समाज में बड़े परिवर्तन सदैव आदर्श शिक्षकों से ही शुरू हुए हैं। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, महात्मा गांधी या डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महान शिक्षकों ने यह सिद्ध किया कि शिक्षक अपने कर्म, अनुशासन और नैतिकता से लाखों छात्रों के जीवन में परिवर्तन ला सकता है। लेकिन जब शिक्षक स्वयं ही नशे की गिरफ्त में हो, अनुशासनहीन हो, तो वह दूसरों के जीवन को कैसे संवार सकता है? यह प्रश्न न केवल शिक्षा विभाग बल्कि पूरे समाज के लिए विचारणीय है।
सरकार ने प्रदेश में नशे के कलंक को मिटाने के लिए अनेक प्रयास किए हैं। नशे के विरुद्ध अभियान में बीस हजार से अधिक नशा तस्कर सलाखों के पीछे पहुँच चुके हैं। विद्यालयों में नशा मुक्ति के लिए पाठ्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं, कक्षा नौ से बारहवीं तक के छात्रों के लिए वैज्ञानिक कार्यक्रम शुरू किए जा रहे हैं ताकि वे नशे के दुष्प्रभाव समझ सकें। किंतु यदि विद्यालय में ही अध्यापक नशे का सेवन करें, तो यह सारे प्रयास व्यर्थ सिद्ध हो सकते हैं।
इस समस्या का एक बड़ा कारण अभिभावकों की उदासीनता भी है। अनेक बार माता-पिता यह नहीं जानते कि उनके बच्चों को विद्यालय में कैसा वातावरण मिल रहा है, शिक्षक का आचरण कैसा है। यदि अभिभावक जागरूक हों, शिक्षकों के व्यवहार पर समय-समय पर ध्यान दें, तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है। अभिभावक और समाज की सतर्कता ही विद्यालयों को नैतिक और अनुशासनयुक्त बनाए रखने का सबसे मजबूत आधार है।
शिक्षा का वास्तविक अर्थ केवल रोजगार प्राप्त करना नहीं, बल्कि जीवन में नैतिकता और मूल्यों का संवर्धन करना है। जब शिक्षक स्वयं अनुशासनहीन होंगे, तो छात्रों में यह संदेश जाएगा कि अनुचित आचरण भी सामान्य है। इससे न केवल उनका भविष्य प्रभावित होगा, बल्कि समाज में भी भ्रष्टाचार, अपराध और नशाखोरी जैसी प्रवृत्तियाँ बढ़ेंगी। अतः यह अनिवार्य है कि शिक्षक स्वयं को आदर्श बनाएं। उन्हें अपने आचरण में शुचिता लानी होगी, नशे जैसी कुरीतियों से दूर रहना होगा, ताकि वे बच्चों के लिए सच्चे प्रेरणास्रोत बन सकें।
इसके लिए शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में केवल विषय ज्ञान ही नहीं, बल्कि नैतिक शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और आत्मअनुशासन पर भी विशेष बल देना आवश्यक है। जिन शिक्षकों में नशे या अनुशासनहीनता की समस्या हो, उनके लिए पुनर्वास और परामर्श की व्यवस्था होनी चाहिए। सख्त दंडात्मक कार्रवाई के साथ-साथ सुधारात्मक प्रयास भी जरूरी हैं, क्योंकि हर शिक्षक को सुधरने का अवसर मिलना चाहिए।
समाज में शिक्षक की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि उनकी एक छोटी सी भूल भी बड़े परिणाम ला सकती है। जब छात्र अपने शिक्षक को नशा करते देखेंगे, तो उनके मन में शिक्षा के प्रति सम्मान कम होगा। वहीं, यदि वे शिक्षक को ईमानदार, अनुशासित और नशामुक्त देखेंगे, तो वही बच्चे भविष्य में सच्चे नागरिक बनेंगे। यही कारण है कि नीति-निर्माताओं और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षकों का चयन और प्रशिक्षण उच्चतम नैतिक मानकों के आधार पर हो।
शिक्षा का दीपक तभी प्रज्वलित रहेगा जब उसका वाहक शिक्षक, स्वयं उजियारा होगा। नशे और अनुशासनहीनता से दूर, आत्मसंयमित, सच्चरित्र और प्रेरणादायी शिक्षक ही बच्चों के मन में ज्ञान और सद्गुणों के बीज बो सकते हैं। पंजाब की घटना हम सबके लिए चेतावनी है कि यदि हम शिक्षकों के आचरण पर ध्यान नहीं देंगे, तो शिक्षा का उद्देश्य अधूरा रह जाएगा। इसलिए समय की माँग है कि हर शिक्षक स्वयं में सुधार लाए, अपने व्यक्तित्व को ऐसा बनाए कि छात्र उन्हें देखकर सीखने की प्रेरणा लें। तभी शिक्षा का मंदिर पावन रहेगा और आने वाली पीढ़ी उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर होगी।
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