विश्व स्तनपान सप्ताह 2025:

 "स्तनपान को प्राथमिकता देंः स्थायी सहायता प्रणालियां बनाएं"

 मेरठ। विश्व स्तनपान सप्ताह के अंतर्गत मंगलवार को गढ़ रोड़ स्थित न्यूटिमा हॉस्पिटल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें बताया गया जन्म के पहले घंटे और छह माह तक माँ का दूध कितना विशेष प्रतिरोधक क्षमता वाला है। 

 शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अमित उपाध्याय ने बताया कि हर साल अगस्त के पहले सप्ताह में भारत सहित विश्व भर में 'विश्व स्तनपान सप्ताह' का आयोजन किया जाता है। बताया कि इस वर्ष की थीम है "स्तनपान को प्राथमिकता दे स्थायी सहायता प्रणालियां बनाएं"। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ) और यूनिसेफ के साथ मिलकर इस आयोजन का उ‌द्देश्य है- नवजात शिशुओं को कुपोषण और संक्रमण से बचाना, उनका समुचित मानसिक-शारीरिक विकास करना, और माताओं को उनके अधिकारों तथा समर्थन के प्रति जागरूक करना।

 उन्होंने बताया स्तनपान बच्चों के जीवन की सर्वोत्तम शुरुआत है। शिशु को जन्म के पहले घंटे में और 6 माह तक केवल माँ का दूध देने से बच्चे को विशेष रोग प्रतिरोधक क्षमता मिलती है, जिससे दस्त, निमोनिया जैसी बीमारियों से सुरक्षा मिलती है। इसके अतिरिक्त, यह माताओं में स्तन कैंसर और टाइप 2 मधुमेह का खतरा भी कम करता है। यूनिसेफ के अनुसार, पूरी तरह स्तनपान कराने से हर साल 8,20,000 बच्चों की जान बचाई जा सकती है।

प्रीमच्योर (समय से पहले जन्मे बच्चे) जो बच्चे जनम के समय बीमार हो जाते है एवं नर्सरी में एडमिट रहते है उनके लिए माँ का दूध दवा से कम नही है। माँ व परिवार को सही तरीके से दूध निकलने की जानकारी देना अत्यंत आवश्यकता है इसकी तैयारी एंटेंटनल पीरियड से पहले ही शुरु हो जनि चाहिये । इसमें डॉक्टर एवं परिवार का सहयोग अत्यंत आवश्यक है। माँ व घर के लोगो के अथक प्रयास से जन्म के 2-3 दिन में ही जन्म से पहले बच्चो को एन. आई. सी. यू में भी माँ का दूध मशीन या हाथ के प्रयोग कर दिया जाता है। यह बच्चे के लिए अमृत की तरह होता है। बच्चे दूध ज्यादा आसानी से सहन करते है व अत्यधिक प्रीमेच्योर मई एन ई सी(आंत गंलने के अवस्था) बहुत कम हो जाती है।

यह सप्ताह देशभर की आंगनबाड़ी, आशा कार्यकर्ता और स्वास्थ्य संस्थानों में उमंग के साथ मनाया जा रहा है। विभिन्न गतिविधियों के तहत माताओं को स्तनपान के ज़रूरी संदेश दिए जा रहे हैं, कार्यस्थलों पर अनुकूल माहौल बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं और बोतलबंद दूध के नुकसान के बारे में बताया जा रहा है।

हम अपील करते हैं कि सभी माता-पिता, परिवार, स्वास्थ्यकर्मी और समाज स्तनपान को प्राथमिकता दें और माताओं को हर संभव सहायता प्रदान करें ताकि हम भारत को स्वस्थ, सशक्त और कुपोषण-मुक्त बना सकें। समाज में स्तनपान को बढ़ावा देने के प्रभावी तरीके

1. जागरुकता अभियान चलाएं

स्कूल, कॉलेज, आंगनवाड़ी, अस्पताल और पंचायत स्तर पर स्तनपान के लाभों पर व्याख्यान, कार्यशाला, नुक्कड़ नाटक और पोस्टर प्रदर्शनी आयोजित करें।

टीवी, रेडियो, सोशल मीडिया और समाचार पत्रों के माध्यम से जन जागरुकता फैलाएं।

2. स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की भूमिका

डॉक्टर, नर्स, आशा वर्कर व आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को स्तनपान पर विशेष प्रशिक्षण दें, ताकि वे गर्भवती महिलाओं को सही परामर्श दे सकें।

अस्पतालों में 'बच्चा मित्र अस्पताल' जैसी पहलें बढ़ाएं, जहां जन्म के तुरंत बाद मां को स्तनपान के लिए प्रोत्साहित किया जाए। सही तरीके से दूध निकलना, दूध को इकठा करना एवं सफाई का ध्यान रखना आदि, शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है।

3. कामकाजी महिलाओं के लिए सुविधाएं

कार्यस्थल पर स्तनपान के लिए अनुकूल माहौल, अलग शिशु कक्ष एवं माता को पर्याप्त मातृत्व अवकाश सुनिश्चित करें।

4. स्तनपान कराने वाली माताओं को कार्यस्थलों पर लचीलापन और आरामदेह सुविधाएं दें।

परिवार और समुदाय की सहभागिता

परिवार के सदस्यों (पति, सास-ससुर) को भी स्तनपान के महत्व पर शिक्षित करें, ताकि वे मां को प्रोत्साहन और सहायता दें।

5. सामुदायिक नेताओं, धार्मिक और सामाजिक संगठनों को साथ जोड़कर सकारात्मक वातावरण तैयार करें।

6. पारंपरिक भ्रांतियां दूर करें

स्तनपान से जुडी रालत धारणाओं जैसे मसान का दूध, रिवाजों और सामाजिक दबाव को दूर करने के लिए संवाद और विज्ञान आधारित जानकारी साझा करें।

7. सरकारी योजनाओं का व्यापक प्रचार

1.मातृत्व वंदना, पोषण अभियान जैसी योजनाओं के बारे में महिलाओं को निरंतर सूचना व मार्गदर्शन दें।

योजना के लाभों को सरल भाषा में समझाएं और जरूरतमंद महिलाओं तक पहुँच सुनिश्चत करें।

दूध की बोललों व कृत्रिम दूध के उपयोग को निरुत्साहित करें

माँ के दूध के मुकाबले कृत्रिम दूध के नुकसान के बारे में जानकारी दें।

फॉर्मूला दूध के विज्ञापनों पर नियमन और नियंत्रण बढ़ाएं।

इन तरीकों से, समाज में स्तनपान को सिर्फ एक स्वास्थ्य आदत नहीं, बल्कि एक सामुदायिक और पारिवारिक जिम्मेदारी के रूप में बढ़ावा दिया जा सकता है।


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