युवाओं में हताशा

 इलमा अज़ीम 

21वीं सदी तक तकनीक का इस्तेमाल काफी तेजी से बढ़ रहा है। जहां सोशल मीडिया के कई प्लेटफार्म लोगों को अप टू डेट रखने में मदद करते हैं, वहीं खुद के विचारों को लोगों को सामने रखने के लिए काफी अच्छा माना गया है। इसी वजह से लोगों में सोशल मीडिया ट्रेड दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी लोग तकनीक के बढ़ते प्रभाव को नकार नहीं सकते है। 

आज बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी में इसका क्रेज देखा जा सकता है लेकिन सोशल मीडिया का क्रेज लोगों को बीमार भी बना रहा है। एक रिसर्च के मुताबिक इंस्टाग्राम यूजर्स हीनता और हताशा कि भावना पैदा करता है। इंस्टाग्राम पर पोस्ट शेयर करने वाले यूजर्स में अवसाद, अकेलापन जैसी बातें घर कर जाती हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के बारे में माना जाता है कि ये युवाओं के मेन्टल हेल्थ को इम्प्रूव करते हैं, लेकिन पहली बार पाया गया है कि ये सोच को नेगेटिव रूप से प्रभावित करते हैं। रिसर्च के अनुसार पता लगा कि इंस्टाग्राम के अलावा फेसबुक और स्नैपचैट जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म 14 से 24 साल की उम्र के युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इंस्टाग्राम का प्रयोग हम अपनी फोटो और वीडियो पोस्ट करने के लिए करते हैं। 
मगर आजकल अपनी लाइफ के हर लम्हे को इंस्टा पर पोस्ट करने लगे हैं, जो कहीं न कहीं हमारी मेंटल हेल्थ को बिगाड़ने के लिए काफी है।वास्तव में हमने कोरोना संकट से उबरने के लिये जिस ऑनलाइन व्यवस्था को अस्त्र के रूप में अपनाया था, कालांतर वह ही शस्त्र बनकर युवा पीढ़ी को जख्मी करने लगा। उल्लेखनीय है कि विश्वव्यापी कोरोना महामारी के दौरान जब संचार बंदी लागू हुई तो पूरी दुनिया में जनजीवन ठप पड़ गया। जिसके चलते घरों में कैद लोगों को इंटरनेट ही अंतिम सहारा नजर आया। 



धीरे-धीरे युवाओं का जीवन इंटरनेट पर बहुत ज्यादा आश्रित हो गया। जहां छात्रों की पढ़ाई ऑनलाइन कक्षाओं पर निर्भर हो गई, वहीं मनोरंजन की दुनिया भी मोबाइल आदि तक सिमट कर रह गई। वहीं दूसरी ओर युवाओं के लिये शिक्षा व कैरियर का दबाव यथावत बना रहा। लेकिन एक हकीकत यह है कि जीवन व्यवहार में सब कुछ ऑनलाइन हो पाना संभव नहीं है। जीवन तो हमारी कठोर वास्तविकता और सामाजिक सहभागिता से ही चलता है। इसके बावजूद युवा पीढ़ी उस सोशल मीडिया में लिप्त रही, जिसका जीवन की ठोस वास्तविकताओं से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसे में यथार्थ से जूझते वक्त युवाओं का हताश व निराश होना स्वाभाविक ही है। कालांतर में उनका आत्मविश्वास भी प्रभावित हुआ। 


कुछ देशों ने सोशल मीडिया के नियमन की कोशिश की भी, लेकिन प्रयास सिरे न चढ़ सके। ऐसे में सरकारों को स्क्रीन समय के नियमन के साथ ही सोशल मीडिया का बेहतर उपयोग शिक्षा तथा रचनात्मक संवाद बढ़ाने के लिये करने की जरूरत है।

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