हिंसक होते किशाेर
इलमा अज़ीम
मौजूदा समय में बच्चों के बीच पलती-बढ़ती हिंसा के कई बार चिंताजनक रूप में अभिव्यक्त होने की घटनाओं को इक्का-दुक्का बता कर नजरअंदाज कर दिया जाता है, लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत है कि नकारात्मक प्रवृत्तियां कोमल मन-मस्तिष्क वाले बच्चों के बीच तेजी से अपनी जगह बनाती हैं और उसका व्यापक असर समाज पर पड़ता है।
जिन बच्चों को देश और समाज का भविष्य माना जाता है, आज उनमें से कई इस रूप में सामने आ रहे हैं जिसके समाज पर व्यापक प्रतिगामी प्रभाव पड़ने वाले हैं। सवाल है कि पिछले कुछ वर्षों में ऐसा क्या हुआ है कि जिन बच्चों की उम्र पढ़ने और खेलने की होती है, घर-परिवार से लेकर स्कूल तक के अग्रजों, अभिभावकों, बुजुर्गों, शिक्षकों की सलाह से एक बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ाने की होती है, वे किसी मामूली बात पर बेकाबू हो रहे हैं।
कुछ बच्चे साधारण बातों पर आक्रामक होकर प्रतिक्रिया देने लगे हैं या उनमें से कई अपनी बेहतरी के लिए खुद में सुधार करने की सलाह देने वाले शिक्षक की हत्या करने से भी नहीं हिचकते हैं। गौरतलब है कि हरियाणा के हिसार में पिछले हफ्ते एक स्कूल के प्रधानाचार्य की वहीं पढ़ने वाले दो बच्चों ने चाकू मार कर हत्या कर दी। इसका कारण सिर्फ यह था कि प्रधानाचार्य ने उन बच्चों को अपने लंबे बाल कटवाने और स्कूल में अनुशासन का पालन करने को कहा था। यह एक सामान्य बात रही है कि स्कूलों के अध्यापक न केवल कक्षाओं में पढ़ाते हैं, बल्कि बच्चों के व्यक्तित्व को बेहतर बनाने के लिए जरूरी सलाह भी देते रहे हैं।
इसका समाज पर बेहद सकारात्मक असर भी साफ दिखता था। मगर आज इन्हीं बातों पर कुछ छात्र प्रतिक्रिया में आपराधिक रास्ता तक अख्तियार कर ले रहे हैं। क्या यह स्मार्टफोन या अन्य संसाधनों के जरिए आभासी संसार में डूबे रहने की बढ़ती अवधि और अन्य कुछ वजहों से सोचने-समझने की प्रक्रिया के शिथिल होने का नतीजा है कि बच्चों के भीतर हिंसक प्रवृत्तियों का विकास हो रहा है और वे अपने हित को लेकर विवेक के उपयोग को लेकर उदासीन हो रहे हैं?
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