अली अकबर शहादत की घड़ी नजदीक आती है'
करबला में आज ही के दिन 72 लोगों को शहादत मिली थी
मेरठ। ' ' अज़ान-ए-सुबह आशूरा आई, यह क्या पैगाम लाती है, अली अकबर शहादत की घड़ी नजदीक आती है'। करबला में आज ही के दिन उन 72 लोगों को शहादत मिली थी जिन्होंने दीन को बचाने के लिए अपनी ज़िंदगी दांव पर लगा दी थी ।
यौम ए आशुरा यानि कि आज ही के दिन जब शाम को 71 शहीदों के बाद हजरत इमाम हुसैन शहीद होते हैं तो आसमान से एक फ़रिश्ता आवाज़ लगाता है कि 'अला कोतेलल हुसैन ओबे करबला, अला जोबेहल हुसैन वोबे करबला'। यानि कि 'करबला में हुसैन को कत्ल कर दिया गया, करबला में हुसैन को ज़िबाह कर दिया गया'। दीन को बचाने के लिए करबला में हुई जंग में इमाम हुसैन ने 3 दिनों के भूखे प्यासे अपने पूरे कुनबे को ही कुर्बान कर दिया। आज के दिन सुबह फज्र की नमाज के बाद यजीदी फौजों ने इमाम हुसैन को जंग के लिए मजबूर किया और तब उन्होंने अपने 71 जांबाज साथियों को एक एक करके जंग ए मैदान में भेजा। इनमें छह माह के मासूम अली असगर भी शामिल थे, जो कि यजीदी फौज के तीरंदाज हुरमुला के तीर से शहीद हो गए। जब शाम तक सभी 71 जांबाज शहीद हो गए, तब जनाब ए जैनब ने अपने भाई हजरत इमाम हुसैन को खुद घोड़े पर सवार करा कर इस्लाम की आन बान और शान के लिए जंग ए मैदान की ओर रवाना कर दिया। जिस घोड़े पर हजरत इमाम हुसैन जंग के मैदान के लिए रवाना हुए थे, शाम को उसी घोड़े (ज़ुलजनाह) ने जनाब ए जैनब को आकर यह खबर दी कि हजरत इमाम हुसैन भी शहीद हो गए हैं। इसके बाद यजीदी फौजें आगे बढ़ी और खेमों में लूटपाट के बाद बीबियों को कैदी बना लिया और खेमों में आग लगा दी। इसी के बाद शाम ए गरीबा बरपा हुई। छोटी सी इस जंग के बाद इस्लाम हमेशा के लिए जिंदा हो गया और बातिल (गुनहगार) हमेशा के लिए पस्त हो गया। 1447 साल बाद आज भी हजरत इमाम हुसैन की याद में पूरी दुनिया में अजादारी व मातम पूरे ग़मों सोग के साथ होती है।
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