सड़क हादसों में मौतें भयावह
इलमा अज़ीम
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2021 से 2030 के बीच सडक़ हादसों से होने वाली मौतों को 50 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य तय किया है। भारत सरकार भी इस लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश कर रही है। इसके लिए नीति तो बनाई गई है, लेकिन उसे कार्यान्वित करने की दिशा में गंभीर प्रयासों की जरूरत है। नागरिकों को खुद जगना होगा और दूसरों को जगाना होगा। आएदिन सड़क हादसों में मौतें हो रही हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत अब सडक़ दुर्घटनाओं का देश हो गया है और हर साल लाख से भी ज्यादा लोग काल कलवित हो रहे हैं। यह बात बहुत हैरान करने वाली है कि भारत में दुनिया के सिर्फ एक प्रतिशत वाहन हैं, लेकिन सडक़ दुर्घटनाओं में होने वाली मौतें 11 प्रतिशत हैं। पिछले चार सालों में भारत की सडक़ों पर इतने लोग काल के गाल में समा गए जितनी फिनलैंड की कुल आबादी है। यहां पिछले कई वर्षों से सडक़ दुर्घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं और अकाल मृत्यु का सबसे बड़ा कारण बन गई हैं। रोड एक्सीडेंट इन इंडिया नामक रिपोर्ट बताती है कि 2018 से 2022 के बीच पांच वर्षों में 7.77 लाख मौतें हुईं।
इनमें सबसे ज्यादा 1.08 लाख उत्तर प्रदेश, 84 हजार तमिलनाडु और 66 हजार के साथ महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर रहा। केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में बताया कि पिछले साल 2024 में लगभग पांच लाख दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 1.80 लाख लोगों की मौतें हुईं। इससे भी ज्यादा विचलित करने वाली बात यह है कि हर दिन औसतन 42 बच्चे और 31 किशोर सडक़ों पर जान गंवा बैठते हैं। आंकड़े भयावह हैं और हमारे सामने एक आपातकालीन तस्वीर रखते हैं। तेज गति में गाड़ी चलाने से 75.2 प्रतिशत, गलत दिशा में गाड़ी चलाने से 5.8 प्रतिशत, और शराब या नशे के प्रभाव में ड्राइविंग करने से 2.5 प्रतिशत मौतें होती हैं। हादसों में 86 प्रतिशत पुरुष और 14 प्रतिशत महिलाओं की मौत रिकॉर्ड की गई है। 67.2 प्रतिशत मौतें ग्रामीण इलाकों में और 32.2 प्रतिशत शहरी इलाकों में होती हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग (नेशनल हाइवे) हादसों के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। 2022 में हर सौ किलोमीटर पर 45 मौतें दर्ज की गईं।
निमहांस/रासी के अनुसार 24 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हुए हादसों में जान जाती है, जिनमें से 50 प्रतिशत घटनास्थल पर ही दम तोड़ देते हैं। अधिकतर मामलों में सिर या शरीर के निचले हिस्से में चोट लगती है। एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 14 वर्ष तक के 25 प्रतिशत और 14 से 17 वर्ष के 75 प्रतिशत किशोर सडक़ हादसों के शिकार हुए। दस राज्यों में 40 प्रतिशत बच्चों और किशोरों की सडक़ हादसों में मौत हुई। सडक़ हादसों में सबसे ज्यादा मौतें पैदल चलने वालों और दोपहिया सवारों की होती हैं।
हमारे आज के बच्चे कल के नागरिक हैं और वे अभी से ही जागरूक तथा नियमों के पालन के लिए कृतसंकल्प हों, यह देश के लिए जरूरी है। उन पर भरोसा करके उन्हें ही सडक़ों के नियम-कानून बताए और समझाए जाने चाहिए। स्कूलों में दिलचस्प तरीके से इस विषय को पेश किया जाए। स्कूलों में सेफ्टी पार्क वगैरह बनाए जाएं जहां जाकर बच्चे उन्हें देखें और ट्रैफिक के सरल नियम समझें। डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ दुर्घटनाओं को कम करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। उनका मानना है कि भारत में इतनी ज्यादा मौतों पर सभी को जगना होगा, कानूनों का सख्ती से पालन करना होगा, सडक़ों को सुरक्षित बनाना होगा और सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे।
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