महिला क्रूरता का समाधान

इलमा अज़ीम

देश में कुछ महिलाओं द्वारा अपने प्रेमियों के साथ साजिश करके कई पतियों की जीवनलीला खत्म करने की घटनाएं बड़ी तेजी से बढ़ रही हैं। मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्री इस तरह कि घटनाओं को लेकर चिंतित हैं। ऐसा क्यों हो रहा है कि आजकल न केवल कुछ पुरुष, बल्कि कुछ महिलाएं भी क्रूर व्यवहार का रास्ता अपनाती जा रही हैं। 
क्रूरता, उत्पीडऩ, यातना और पीड़ा की अवधारणा हमारे समाज में लंबे समय से प्रचलित है। मनोविज्ञान के अनुसार हालात इत्यादि के चलते कुछ महिलाओं की सोच में प्यार की जगह नफरत, भरोसे ही जगह धोखा और साथ निभाने के बजाय रिश्तों को खत्म कर देने की सोच ने जन्म ले लिया है। बल्कि पिछले कुछ समय में ऐसे कई केस सामने आए हैं, जहां महिलाएं रिश्तों से उबरने की बजाय उन्हें खत्म करने का रास्ता चुन रही हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है स्ट्रेस, प्रेशर या अंदर दबी भावनाएं, नई-नई शादियों में जब ऐसा होता है तो इसके पीछे का कारण या तो ये होता है कहीं शादी जबरदस्ती कराई गई है या फिर उसका पति उसे पसंद नहीं है। ऐसे में महिलाओं के मन में बैठ जाता है कि उनकी पसंद और नापसंद को जरूरी नहीं समझा जा रहा है। ऐसे में वे क्रूर होने का रास्ता चुन लेती हैं।



 जब कोई महिला अपने पति की हत्या करवा देती है, तो क्या ये सिर्फ क्राइम है या कोई मानसिक बीमारी? मनोवैज्ञानिक मत है कि इसे सिर्फ क्राइम नहीं कहा जा सकता है। इसे दिमागी रूप से बीमार होना भी कह सकते हैं। ऐसे में महिलाएं अपनी भावनाओं और गुस्से को बैलेंस नहीं कर पाती हैं। और गुस्से में तो इनसान हमेशा गलत कदम ही उठाता है। हालिया घटनाओं में अधिकतर मध्यम वर्ग की ऐसी महिलाएं हैं, जो छोटे शहरों से हैं। ये देखना इसलिए जरूरी है क्योंकि हमारे समाज के ढांचे में मध्यम वर्ग की महिलाओं पर ही सारे नियम लादे गए थे। वही सालों से दबी रही हैं। छोटे शहरों की ये महिलाएं सालों से बंधनों में बंधी रही हैं। अब सोशल मीडिया का एक्सेस हर किसी के पास है, इसमें सामाजिक स्तर का या छोटे शहरों का कोई कनेक्शन नहीं है। लेकिन इन महिलाओं ने अपनी माओं को, दादियों को मर्द प्रभावी समाज से शोषित होते हुए देखा है। ऐसे में ये वो पहली जनरेशन है जो इस सामाजिक दबाव से, बंधन से बाहर निकली है। ऐसे में क्रूरता के जन्म के लिए किसी महिला को जिम्मेवार ठहराना एकतरफा फैसला होगा। 



किसी भी रिश्ते में भरोसा एक महत्वपूर्ण रोल अदा करता है। इसके साथ ही भरोसा जीतने में समय भी लगता है। आज के समय में रिश्ते मूड पर डिपेंड हो गए हैं। महिला हो या फिर पुरुष, ये भावना आ चुकी है कि मेरी मर्जी नहीं चलेगी तो रिश्ता भी नहीं चलेगा। मूड के वशीभूत होकर, महिला हो या पुरुष, कोई भी हो, समझौता करने के बजाय रिश्तों को तोडऩा ज्यादा पसंद करते हैं। अगर पुरुष यह मानता है कि मर्द होने का अर्थ है महिला के ऊपर पूरा नियंत्रण होना, तो हो सकता है कि वह महिला के साथ हिंसा करने को भी उचित माने। ऐसा व्यवहार भी एक महिला को क्रूरता के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर सकता है। इसके लिए पुरुषों को भी आत्म-विश्लेषण करने की जरूरत है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts