आर्थिक असमानता हो दूर
इलमा अज़ीम
पिछले साल जारी की गई विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 से पता चलता है कि भारत में शीर्ष एक प्रतिशत लोगों की संपत्ति में बड़ा उछाल आया है। वे लोग देश की चालीस फीसदी संपत्ति नियंत्रित करते हैं। इसमें दो राय नहीं कि वैश्वीकरण और उदारीकरण की नीतियों से देश में आर्थिक असमानता को बढ़ावा मिला है।
वहीं तकनीकी प्रेरित सेवाओं में उछाल के चलते, वर्ष 2000 के बाद विकास मॉडल ने एक छोटे वर्ग को असंगत रूप से लाभान्वित किया है। निश्चित रूप से नई आर्थिक नीतियों की विसंगतियों से उपजे असमान परिदृश्य में लाखों लोग गरीबी की रेखा से ऊपर तो उठ गए,लेकिन वे बीमारी, नौकरी छूटने या जलवायु परिवर्तन से उपजी आपदाओं जैसे संकटों के प्रति संवेदनशील बने हुए हैं। आर्थिक असुरक्षा और सामाजिक रूप से हाशिये पर रहने वाली आबादी के बड़े हिस्से के लिये यह खतरा बना हुआ है।
एक मजबूत सुरक्षा कवच का अभाव इस संकट की संवेदनशीलता को बढ़ा देता है। भारत के विकास की गाथा तभी लिखी जा सकती है, जब हम इस असमानता की खाई को पाटकर गरीबी को कम करने की दिशा में आगे बढ़ें। निर्विवाद रूप से सामाजिक न्याय के लिये गरीबी कम करने के साथ, कमजोर तबकों के लिये सम्मान,समानता और नीतियों में लचीलापन जरूरी है। वास्तव में गरीबी मुक्त भारत का लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब सरकार की कल्याणकारी नीतियां न केवल उन्हें गरीबी के दलदल से बाहर निकालें, बल्कि उन्हें स्वावलंबी भी बनाएं।
आर्थिक कल्याणकारी नीतियों का मकसद मुफ्त की रेवड़ियां बांटना न होकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना होना चाहिए। निर्धन आबादी के लिये जनकल्याण की योजनाएं जरूर चलायी जानी चाहिए, लेकिन एक वक्त के बाद सरकारी सहायता पर उनकी निर्भरता को कम करना भी उतना ही जरूरी है। हालांकि विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट भारत में अत्यधिक गरीबी में आई उल्लेखनीय कमी को दर्शाती है। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022-23 में यह दर 5.3 प्रतिशत रह गई है, जो वर्ष 2011-12 में 27.1 फीसदी थी।
रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार भारत ने लगभग एक दशक से कुछ कम समय में 27 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला है, जो पैमाने और गति के मामले में उल्लेखनीय उपलब्धि कही जा सकती है। निश्चित रूप से इस उपलब्धि में विभिन्न कल्याण कार्यक्रमों मसलन आर्थिक विकास और ग्रामीण रोजगार योजनाओं की बड़ी भूमिका रही है। लेकिन जहां हम गरीबी उन्मूलन में मिली सफलता पर आत्ममुग्ध हैं तो वहीं समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता हमारी चिंता का विषय होना चाहिए।
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