बिहार में वक्फ मुद्दा
इलमा अज़ीम
बिहार में विधानसभा चुनाव अक्तूबर में हो सकते हैं, लिहाजा वक्फ संशोधन कानून पर फिर सियासत सुलगने लगी है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए हुंकार भरी कि यदि ‘इंडिया’ गठबंधन चुनाव में जीता, तो वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंकने का काम करेगा। यह बिहार की 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी को अपने पक्ष में लामबंद करने की सियासत है। जनसभा का आयोजन ‘इमारत-ए-शरिया’ नामक कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन ने किया था, लिहाजा ‘शरिया कानून’ लागू करने की भी हुंकारें भरी गईं। भारत में सभी राज्य, यहां तक कि पंचायतें भी, संविधान से संचालित होते हैं। ये तमाम हुंकारें महज चुनावी हैं, क्योंकि ये असंवैधानिक हैं।
यह देश भी इस्लामी नहीं है। फिर भी ये हुंकारें संसद के लिए गंभीर चुनौती हैं, संसद को धमका रही हैं कि उसके दोनों सदनों में पारित विधेयक और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद बने कानून को कूड़ेदान में फेंकने का आह्वान किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 256 और 257 में स्पष्ट प्रावधान हैं कि राज्य केंद्र द्वारा बनाए गए कानून को खारिज नहीं कर सकते। कृषि कानूनों का संदर्भ भिन्न है। बहरहाल भारत के वक्फ बोर्डों के पास करीब 9.4 लाख एकड़ जमीन है, जो सेना और रेलवे के बाद सर्वाधिक है। करीब 8.72 लाख संपत्तियां वक्फ के अधीन हैं।
वक्फ ट्रिब्यूनल में 40,951 मुकदमे विचाराधीन हैं, जिनमें कई मामले मुसलमानों की ही शिकायत के आधार पर दर्ज किए गए हैं। बेहद अहम सवाल है कि इतने अमीर वक्फ बोर्डों के बावजूद औसत मुसलमान गरीब, अनपढ़, साधनहीन क्यों है? वक्फ कानून में पहली बार संशोधन नहीं किए गए हैं। मौजूदा सरकार वक्फ की संपत्तियों का डिजिटलीकरण कर उन्हें पारदर्शी बनाना चाहती है। प्रशासनिक स्तर पर कलेक्टर की भूमिका भी तय करना चाहती है। राजस्व रिकॉर्ड को सिलसिलेवार बनाना चाहती है। सबसे अहम संशोधन यह है कि वक्फ से जुड़े विवाद सिर्फ ट्रिब्यूनल तक ही सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि उन्हें उच्च न्यायालय तक में चुनौती दी जा सकती है। बहरहाल अभी मामला सर्वोच्च अदालत के विचाराधीन है। कुल 5 याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। सर्वोच्च अदालत ने सिर्फ 2 प्रावधानों पर ही अंतरिम रोक लगाई है।
अंतरिम निर्देश पर शीर्ष अदालत ने 30 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल 5 मई को यह मामला नई न्यायिक पीठ को सौंपना पड़ा, क्योंकि तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो गए थे। अब मौजूदा प्रधान न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई पीठ का नेतृत्व कर रहे हैं। सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद स्पष्ट होगा कि वक्फ संशोधन कानून यथावत रहता है अथवा कुछ संशोधनों पर अदालत की लाल लकीर चलती है, लेकिन इस मुद्दे पर कमोबेश बिहार को दोफाड़ कर दिया है। वहां चुनाव हिंदू बनाम मुसलमान पर ही होंगे, यह सियासत से साफ लगता है।
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