ईरान पर अमेरिका ने हमला कर दुनिया को चौंकाया
यूएन ने हमले को बताया चिंतानजक , लंबे जंग की ओर इशारा
तेहरान, एजेंसी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया। उन्होंने ईरान के परमाणु ठिकानों पर सीधे बमबारी कर दी और इजरायल के साथ मिलकर अपने इस क्षेत्रीय दुश्मन पर हवाई हमला किया. यह ट्रंप के दोनों कार्यकालों का सबसे बड़ा विदेश नीति दांव माना जा रहा है, जो जोखिमों और अनिश्चितताओं से भरा हुआ है। ट्रंप ने शनिवार को ऐलान किया कि अब ईरान को शांति की राह चुननी होगी, वरना और हमले झेलने पड़ेंगे। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला मिडिल ईस्ट में एक बड़े और लंबे युद्ध को जन्म दे सकता है, जैसा कि इराक और अफगानिस्तान में देखा गया, जिसे ट्रंप “बेवकूफाना युद्ध” कहकर खारिज करते रहे हैं।
ट्रंप के इस फैसले ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है. अमेरिका ने ईरान के सबसे मजबूत और जमीन के नीचे बने परमाणु ठिकाने फोर्डो पर “बंकर-बस्टर बम” जैसे भारी हथियारों का इस्तेमाल किया। यह हमला इजरायल के एक हफ्ते से ज्यादा समय तक चले हवाई हमलों के बाद हुआ, जिसने ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों को कमजोर कर दिया था। व्हाइट हाउस के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि ट्रंप ने यह फैसला तब लिया, जब उन्हें यकीन हो गया कि ईरान परमाणु समझौते के लिए तैयार नहीं है।
ट्रंप ने इस हमले को “बड़ी कामयाबी” करार दिया, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम भले ही कई साल पीछे चला जाए, खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है। ईरान का दावा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है और वह परमाणु हथियार नहीं बना रहा. लेकिन अमेरिका और इजरायल का मानना है कि ईरान गुपचुप तरीके से परमाणु बम बनाने की कोशिश कर रहा है।
ईरान के अगले कदम का अंदाजा लगाना मुश्किल
हमले के बाद ईरान की प्रतिक्रिया ने सस्पेंस और बढ़ा दिया है। ईरान की परमाणु ऊर्जा संगठन ने कहा कि वह अपने “राष्ट्रीय उद्योग” को रुकने नहीं देगा. वहीं, ईरानी स्टेट टीवी पर एक कमेंटेटर ने धमकी दी कि अब क्षेत्र में मौजूद हर अमेरिकी नागरिक या सैनिक “वैध निशाना” होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि ईरान कई तरह से जवाब दे सकता है। वह दुनिया के सबसे अहम तेल मार्ग स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद कर सकता है, जिससे तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। इसके अलावा, वह अमेरिकी सैन्य ठिकानों, इजरायल पर मिसाइल हमले, या अपने प्रॉक्सी ग्रुप्स के जरिए अमेरिका और इजरायल के हितों पर हमला कर सकता है.
फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एरिक लोब का कहना है कि ईरान के अगले कदम का अंदाजा लगाना मुश्किल है। वह “सॉफ्ट टारगेट” जैसे अमेरिका और इजरायल के नागरिक ठिकानों पर हमला कर सकता है. लेकिन यह भी मुमकिन है कि ईरान बातचीत की मेज पर लौटे, क्योंकि अब वह और कमजोर स्थिति में होगा।
हमले के बाद ट्रंप ने कहा- अब शांति का समय
ट्रंप ने हमले के बाद कहा कि अब शांति का समय है. लेकिन कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के विश्लेषक करीम सज्जादपुर ने X पर लिखा, “यह 46 साल पुराने अमेरिका-ईरान युद्ध का नया अध्याय खोल सकता है, न कि इसका अंत.” कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अगर ईरान बड़ा जवाबी हमला करता है या परमाणु हथियार बनाने की कोशिश करता है, तो ट्रंप “शासन परिवर्तन” की नीति पर आ सकते हैं, यानी ईरान की मौजूदा सरकार को हटाने की कोशिश। लेकिन यह रास्ता भी जोखिमों से भरा है।
जॉन्स हॉपकिन्स स्कूल फॉर एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज की मिडिल ईस्ट विश्लेषक लॉरा ब्लूमेंफेल्ड ने चेतावनी दी, “शासन परिवर्तन और लोकतंत्रीकरण की कोशिशों से सावधान रहें. मिडिल ईस्ट की रेत में अमेरिका के कई नैतिक मिशनों की हड्डियां दफन हैं.”
ईरान हिला सकता है पूरी ग्लोबल इकोनॉमी
अगर ईरान स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद करता है, तो इसका असर सिर्फ अमेरिका के साथ-साथ पूरी दुनिया पर पड़ेगा। तेल की कीमतें बढ़ने से अमेरिका में महंगाई बढ़ सकती है, जो ट्रंप के लिए सियासी मुश्किल खड़ी कर सकती है। लेकिन इसका नुकसान ईरान के सबसे बड़े दोस्त चीन को भी होगा, जो इस रास्ते से तेल आयात करता है ईरान ने अगर स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद कर दिया तो पूरी ग्लोबल इकोनॉमी को एक बड़ा झटका लगने वाला है। वहीं इस मामले में पूर्व अमेरिकी खुफिया अधिकारी जोनाथन पैनिकॉफ का कहना है कि ईरान को अपने कदम सोच-समझकर उठाने होंगे, क्योंकि वह अपनी सत्ता को खतरे में नहीं डालना चाहेगा।
अमेरिका में भी हो सकता है विवाद
ट्रंप का यह फैसला अमेरिका में भी विवाद पैदा कर रहा है। डेमोक्रेट सांसद इस हमले का विरोध कर रहे हैं। साथ ही, ट्रंप की अपनी रिपब्लिकन पार्टी का “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” (MAGA) धड़ा, जो विदेशी युद्धों का विरोध करता है, भी नाराज हो सकता है। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय संकट नहीं देखा था, लेकिन अब वह अपने दूसरे कार्यकाल के छह महीने में ही एक बड़े युद्ध में उलझ गए हैं।
ट्रंप का नारा “ताकत से शांति” इस बार सबसे बड़ी परीक्षा से गुजर रहा है। उन्होंने यूक्रेन और गाजा युद्ध को जल्द खत्म करने का वादा किया था, लेकिन अब एक नया युद्ध शुरू हो गया है। इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के यूएन निदेशक रिचर्ड गोवान ने कहा, “ट्रंप फिर से युद्ध के कारोबार में हैं। मुझे नहीं लगता कि मॉस्को, तेहरान या बीजिंग में कोई उनकी शांतिदूत वाली बात पर यकीन करता था. यह हमेशा से एक चुनावी नारा ज्यादा लगता था, रणनीति कम.”
परमाणु खतरा अभी बाकी
पूर्व मिडिल ईस्ट वार्ताकार आरोन डेविड मिलर का कहना है। “ईरान की सैन्य ताकत कमजोर हो गई है, लेकिन उसके पास कई गैर-पारंपरिक तरीके हैं, जिनसे वह जवाब दे सकता है. यह जल्दी खत्म नहीं होने वाला।”
ट्रंप का दोहरा रुख
हमले से पहले ट्रंप का रवैया डांवाडोल रहा. वह कभी ईरान को सैन्य कार्रवाई की धमकी देते, तो कभी परमाणु समझौते के लिए बातचीत की अपील करते। व्हाइट हाउस के अधिकारी ने बताया कि ट्रंप ने हमले का फैसला तब लिया, जब उन्हें “उच्च सफलता की संभावना” का भरोसा दिलाया गया। इजरायल के हमलों ने ईरान के ठिकानों को कमजोर कर दिया था, जिसके बाद अमेरिका ने निर्णायक प्रहार किया।
विश्व समुदाय इस घटनाक्रम पर नजर रखे हुए है। क्या यह युद्ध मिडिल ईस्ट को फिर से अस्थिर कर देगा? क्या ट्रंप का यह दांव कामयाब होगा, या वह उसी दलदल में फंस जाएंगे, जिससे बचने का वादा उन्होंने किया था? अगले कुछ दिन में इस सवाल का जवाब जरूर मिल जाएगा।
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