कमतर नहीं है भारत की विकास यात्रा
- डा. अश्विनी महाजन
वर्ष 2014 में भारत 2.07 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। 2025 में, हम मात्र 11 वर्षों में 4.18 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की जीडीपी के साथ चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) बीवी सुब्रमण्यम ने कुछ समय पहले इस संबंध में एक बयान दिया है। अंतरराष्ट्रीय तुलना के लिए, एक और आंकड़ा जो सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है, वह है क्रय शक्ति समता के संदर्भ में जीडीपी। क्रय शक्ति समता के पैमाने पर, भारत बहुत पहले ही (वर्ष 2011 में) दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत में भारतीय रुपए की क्रय शक्ति डॉलर के बाजार मूल्य से लगभग चार गुना अधिक है।
विश्व बैंक के अनुसार 2014 में भारत की जीडीपी (पीपीपी) लगभग 7.4 डॉलर थी, जो 2025 में बढक़र 17.4 ट्रिलियन डॉलर हो गई है। आज जब यह साबित हो गया है कि डॉलर के बाजार मूल्य के लिहाज से भी भारत की जीडीपी दुनिया में चौथे स्थान पर पहुंच गई है, तो इसका जश्न मनाने के साथ-साथ यह समझना भी जरूरी है कि यह कैसे संभव हुआ और कैसे हम समकालीन दुनिया और इतिहास से सीख लेकर अपनी अर्थव्यवस्था को और मजबूत बना सकते हैं। जबकि, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में पिछले एक दशक में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, कुछ हलकों में, यह बात उठती है कि चाहे, हमने जीडीपी में जापान को पीछे छोड़ दिया है, जापान की प्रति व्यक्ति आय अभी भी भारत की प्रति व्यक्ति आय से 11.6 गुना अधिक है, लेकिन अगर हम पीपीपी के आधार पर इन दोनों देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना करते हैं, तो हम पाते हैं कि जापान की प्रति व्यक्ति आय भारत के प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद का मुश्किल से 4.16 गुना है।
एक और दृष्टिकोण यह है कि हमें उपलब्धि का जश्न मनाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि भारत अभी भी प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के मामले में 136वें स्थान पर है, और यहां तक कि क्रय शक्ति समता में हम दुनिया के 190 देशों की सूची में 119वें स्थान पर हैं। लेकिन ये संख्याएं जितना छुपाती हैं, उससे कम बताती हैं। जैसे कि हम भारत की प्रति व्यक्ति आय से अधिक प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद वाले देशों में रहने वाली वैश्विक जनसंख्या पर एक नजर डालें, जो 3.54 बिलियन है, जो विश्व की जनसंख्या का मुश्किल से 43 प्रतिशत है। प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद की दृष्टि से हमसे ऊपर के ‘देशों की संख्या’ गिनना उचित नहीं होगा, क्योंकि हमसे ऊपर के देश अधिकतर उच्च आय और मध्यम आय वाले देश हैं, और उनकी संख्या बड़ी है, यद्यपि उन देशों में रहने वाली जनसंख्या काफी कम है।
जनसंख्या की दृष्टि से 18 बड़े देश हैं, जिनका प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद भारत से अधिक है, जिनकी कुल जनसंख्या लगभग 3.4 अरब है, और शेष 100 देशों की कुल जनसंख्या लगभग 14 करोड़ (0.14 अरब) है। डॉलर के बाजार मूल्य के साथ-साथ पीपीपी के संदर्भ दोनों में प्रति व्यक्ति आय की उच्च वृद्धि दर की बदौलत भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है, और इसकी रैंकिंग में बेहतरी हो रही है। 2014 में, डॉलर के बाजार मूल्य में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में भारत 190 देशों में से 147वें स्थान पर था, लेकिन 2025 में इसकी स्थिति में सुधार होकर भारत का स्थान 136वां हो गया है। तथा पीपीपी के संदर्भ में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, जो 2014 में 126वें स्थान पर था, अब 190 देशों में 119वें स्थान पर पहुंच गया है।
एक और बात, हमें निरपेक्ष रूप से अपनी आबादी के कल्याण के बारे में विस्तार से बताने की जरूरत है, और उन देशों के भी कल्याण के बारे में जो प्रति व्यक्ति जीडीपी में काफी ऊपर हैं कि निरपेक्ष गरीबी को कम करने और अत्यधिक गरीबी को लगभग समाप्त करने में भारत की उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। यूएनडीपी की परिभाषा के अनुसार, सबसे उल्लेखनीय सुधार हम बहुआयामी गरीबी में भारी कमी के रूप में देखते हैं।
वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) 2015 (2005-06 और 2011-12 के आंकड़ों पर आधारित) के अनुसार,. भारत की लगभग 41.3 प्रतिशत आबादी बहुआयामी रूप से गरीब थी। पोषण, बाल मृत्यु दर, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्वच्छता और खाना पकाने के ईंधन में प्रमुख अभाव रहे। ग्रामीण गरीबी, शहरी गरीबी से काफी अधिक होने के साथ, भारत में दुनिया के बहुआयामी गरीबों का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा था। यूएनडीपी की रिपोर्ट के अनुसार 2005-2006 से 2019-2021 तक भारत का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (कुल 1.000 में से) 0.283 से गिरकर सिर्फ 0.069 रह गया है, जो शायद बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे देशों में सबसे तेज गिरावट है। दिलचस्प बात यह है कि यूएनडीपी ने इस उपलब्धि के लिए भारत की प्रशंसा भी की।
अगर हम अत्यधिक गरीबी (2.15 अमेरिकी डॉलर की दैनिक आय वाले लोग) को देखें, तो विश्व बैंक (2022) और आईएमएफ के अनुसार, भारत ने वैश्विक मानकों के अनुसार अत्यधिक गरीबी को लगभग समाप्त कर दिया है। 2014 में, अनुमानत: भारत की 12.3 फीसदी आबादी अत्यधिक गरीबी में रहती थी, यानी लगभग 170 मिलियन लोग। अनुमान है कि 2024-25 तक अत्यधिक गरीबी घटकर लगभग 3.4 प्रतिशत रह जाएगी, यानी अनुमानत: देश में 40.55 मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी में रहते हैं। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी), मुफ्त भोजन, बुनियादी सेवाओं जैसे स्वच्छता, स्वास्थ्य, बैंकिंग और बिजली तक पहुंच के कारण यह संभव हो सका है। कुछ लोग तर्क देते हैं कि जीडीपी संख्या जो दर्शाती है कि भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन रहा है और सरकार 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन वितरित कर रही है, एक दूसरे के विरोधाभासी हैं।
लेकिन यहां हमें यह समझना होगा कि मुफ्त भोजन का वितरण केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, यहां तक कि अमेरिका और ब्रिटेन सहित अधिकांश विकसित देशों में भी उनकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा मुफ्त राशन का लाभ लेता है। वित्तीय वर्ष 2023 में, पूरक पोषण सहायता कार्यक्रम (स्नैप), जिसे आम तौर पर ‘खाद्य टिकटों’ के रूप में जाना जाता है, ने प्रति माह औसतन 42.1 मिलियन लोगों का लाभान्वित किया, जो कि यूएस की आबादी का 12.6 प्रतिशत है। वर्ष 2022-23 के दौरान इंग्लैंड में, लगभग 2.3 मिलियन लोग (इंग्लैंड की आबादी का लगभग 3 प्रतिशत) ऐसे घरों में रहते थे, जिन्होंने पिछले 12 महीनों में फूड बैंक का उपयोग किया था। इसमें 6 प्रतिशत बच्चे, 3 प्रतिशत कामकाजी उम्र के वयस्क और लगभग 1 प्रतिशत पेंशनभोगी शामिल थे।
लेकिन आज के विकसित देशों में एक दिलचस्प प्रवृत्ति उभर रही है, वह यह कि इन देशों में पिछले कुछ वर्षों में गरीबी लगातार बढ़ रही है और 2008 के आर्थिक संकट के बाद यह प्रक्रिया और तेज हो गई है। अमेरिका में गरीबी रेखा की परिभाषा के अनुसार, वहां लगभग 18 प्रतिशत आबादी गरीबी में रहती है, और यूरोपीय देशों में स्थिति अलग नहीं है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 से 2021 के बीच दुनिया के कुछ सबसे अमीर देशों में बाल गरीबी में तेजी से वृद्धि हुई है।
उल्लेखनीय रूप से, इंग्लैंड में बाल गरीबी में 20 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जबकि फ्रांस, आइसलैंड, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सापेक्ष गरीबी और असमानता के संबंध में, हम देखते हैं कि ओईसीडी के निष्कर्षों के अनुसार, ओईसीडी देशों में सापेक्ष गरीबी दर अलग-अलग है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका में गरीबी दर 18 प्रतिशत है, जबकि डेनमार्क और फिनलैंड जैसे देशों में यह दर 5.7 प्रतिशत के बीच है। महिलाएं और बुजुर्ग विशेष रूप से असुरक्षित हैं, इन समूहों में गरीबी दर अधिक देखी गई है। भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन अब तक की यात्रा भी उल्लेखनीय रही है।
No comments:
Post a Comment