खतरे में पानी के भंडार
इलमा अज़ीम
जलवायु परिवर्तन के चलते धरती पर पानी के भंडार खतरे में पड़ गए हैं। हिमनदों के पिघलने की गति बढ़ती जा रही है जिसके चलते आने वाले 40-50 वर्षों में ग्लेशियर समाप्त होने के कगार पर होंगे। अमेरिका के रौकिज से लेकर यूरोप की ऐल्प्स, काकेशस, और भारत की हिमालय पर्वत श्रृंखलाएं हिमनद विहीन होने वाली हैं।
विज्ञान पत्रिका ‘साइंस’ के मुताबिक यदि हम वैश्विक तापमान वृद्धि को औद्योगिक क्रांति के बाद से 2 डिग्री सेंटी ग्रेड के भीतर नहीं रोक सके तो विश्व के ग्लेशियरों में सदी के अंत तक 10-15 फीसदी ही बर्फ बची रहेगी। इससे पानी की आपूर्ति करने वाली सदानीरा नदियां मौसमी बन कर रह जाएंगी जिनमें बारिश होने पर ही पानी होगा, या थोड़ा बहुत वनों द्वारा संरक्षित जल पर ही आबादी को निर्भर रहना पड़ेगा। भूजल की स्थिति भी अच्छी नहीं है। भारत में 45 फीसदी क्षेत्र भूजल के अधिक दोहन के कारण लाल सूची में आ गए हैं।
हिमनदों के जल्दी पिघलने के कारण हिमालयी क्षेत्रों में हिमनद जनित झीलें बन रही हैं। हिमनदों की बर्फ कच्चे मलबे के साथ टूट कर पर्वतीय संकरी घाटियों में गिर कर बर्फीले मलबे के बांध बना देती है, जिसमें हिमनदों का पानी जमा होता रहता है और जब पानी की मात्रा बांध की दीवार की झेलने की शक्ति से ज्यादा हो जाती है, तब ये हिमनद बांध टूट कर निचले क्षेत्रों में बाढ़ लाकर भारी तबाही का कारण बनते हैं। हिमाचल में 90 के दशक में पाच्र्हू से आई बाढ़ और उत्तराखंड में विष्णुगाड़ बाढ़ ताजा उदाहरण हैं।
हिमालय में इस समय 28000 के करीब हिमनद झीलें बन चुकी हैं जिनमें से बहुत सी खतरनाक साबित हो सकती हैं। उपजाऊ जमीनें अत्यधिक उपज लेने के चक्कर में रासायनिक खादों और कीटनाशक और खरपतवार नाशक दवाइयों के प्रयोग के कारण अपनी शक्ति खोती जा रही हैं। यानी जिंदा रहने के लिए सबसे जरूरी तीनों तत्व खतरे की चपेट में हैं। और जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं का क्रम भी बढ़ता जा रहा है। अति वृष्टि और अनावृष्टि का क्रम आम हो गया है।
इस वर्ष हिमाचल में मार्च में औसत से कम बारिश हुई है। जब बारिश होती है तो बहुत भारी बारिश होती है। हिमाचल और उत्तराखंड में पिछले दो वर्षों से बरसात में भारी तबाही हो रही है। गत वर्ष हिमाचल में 450 के लगभग लोग अकाल मृत्यु का ग्रास बन गए थे। इस वर्ष मई महीने में ही कुल्लू और चंबा जिलों में बादल फटने की घटनाएं हो चुकी हैं, जिससे जन-धन की हानि हुई है। 1993 से 2022 के बीच मौसम खतरा सूचकांक 2025 के अनुसार मौसम की भारी मार झेलने वाले देशों में भारत छठे स्थान पर है। 2024 की रिपोर्ट के अनुसार 2012-22 के बीच 55 फीसदी तहसीलों में बारिश में भारी वृद्धि दर्ज की गई। वैश्विक तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि के कारण ही यह स्थिति बनी है। तापमान में वृद्धि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि के कारण हुई है। इसके प्रति हमें गंभीरता से सोचना होगा।
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