भारत का ऐसा गांव जहां किसी के घर में नहीं जलता चूल्हा, फिर भी भूखा नहीं रहता कोई!

इलमा अज़ीम 

 अहमदाबाद । गुजरात के मेहसाणा जिले का चंदनकी गांव देशभर में एक मिसाल बन गया है, जहां किसी भी घर में चूल्हा नहीं जलता, फिर भी कोई भूखा नहीं रहता। इस गांव में सभी लोग एक सामुदायिक रसोई से खाना खाते हैं, जो न सिर्फ एकता की मिसाल है बल्कि बुजुर्गों और अकेलेपन से जूझ रहे लोगों के लिए एक नया सहारा भी है। 

अगर हम आपको कहे कि भारत देश में एक ऐसा गांव है जहां किसी के घर में खाना नहीं बनता तो शायद यकीन न करें। लेकिन गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित चंदनकी गांव में ऐसा ही होता है। इस गांव की कहानी ऐसी है जो लोगों को सामूहिकता का शानदार पाठ पढ़ा सकती है। आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर इस गांव में ऐसा है क्या। तो हम आपको बता दें कि यहां पर पूरे गांव का खाना एक ही जगह सामुदायिक रसोई में बनता है। 

गांव में रहते हैं 500 लोग

 रिपोर्ट के मुताबिक चंदनकी गांव के सामुदायिक रसोई में हर दिन करीब 40 लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। अइसका उद्देश्य सिर्फ साथ में बैठकर भोजन करना या खाना खिलाना नहीं है। यह रिश्ते को बेहतर बनाने का एक तरीका भी है। लोगों की मानें तो  गांव में अब लगभग 500 लोग ही रहते हैं। बाकी लोग बेहतर रोजगार की तलाश में बाहर चले गए हैं।

मात्र 2000 रुपये में महीने भर की सेवा

हालांकि यहां एक बात बताना जरूरी है कि यह भोजन सेवा मुफ्त नहीं है।  बल्कि इसे संचालित करने के लिए अपने सामर्थ्य के अनुसार एक निश्चित रकम अदा करता है।  हर व्यक्ति 2000 रुपये प्रतिमाह देता है और उसके बदले में उसे एक ऐसा अनुभव मिलता है जो पांच सितारा भोजनालय भी नहीं दे सकता। यहां खाना पेशेवर रसोइयों द्वारा बनाया जाता है, जिन्हें हर महीने 11,000 रुपये वेतन दिया जाता है।  गांव के सरपंच पूनम भाई पटेल ने इस सामूहिक भोजन व्यवस्था को शुरू करवाने में अहम भूमिका निभाई और आज उनकी यह सोच पूरे देश में सराहना पा रही है। सामुदायिक रसोई का मेन्यू हर किसी की पसंद को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाता है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts