न्यायपालिका की भूमिका
   इलमा अज़ीम 
न्यायपालिका व विधायिका का मौलिक कर्तव्य है, देश के उस आखिरी नागरिक तक पहुंचना जिसे न्याय की जरूरत है। यह कहना है देश के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई का। प्रयागराज में एक कार्यक्रम में शिरकत करने आए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जब भी संकट आया, भारत एकजुट रहा। इसका श्रेय संविधान को दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, संविधान लागू होने की 75 वर्ष की यात्रा में विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका ने सामाजिक-आर्थिक समानता लाने में बड़ा योगदान दिया है।



 बार व बेंच को सिक्के के दो पहलू बताते हुए मिल कर काम न करने पर रथ के आगे न बढ़ने की चर्चा भी की। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिवक्ताओं की समस्याएं दूर करने के लिए केंद्र के सतत प्रयासरत रहने और अधिवक्ता निधि की राशि बढ़ाकर पांच लाख करने की बात की। पेड़ों के नीचे बैठ कर काम करने वाले वकीलों की चर्चा करते हुए उन्होंने एयर कंडीशनर उनके गुस्से को ठंडा करने जैसी बात की। बेशक, यह केवल उच्च न्यायालय परिसर की बात थी।
 देश के किसी भी मुख्यमंत्री को विचारना चाहिए कि अमूमन वकीलों तो क्या जिला जजों के लिए न तो ढंग की बैठने की जगह है, न स्वच्छ शीतल जल है। एसी तो बहुत दूर की बात है। यह पहला मौका था जब प्रधान न्यायाधीश के तौर पर वे इलाहाबाद गए थे। हालांकि उन्होंने अपने वक्तव्य में उन्होंने सेवानिवृत्त होने के बाद आगे की बात कहने पर भी जोर दिया। जैसा कि वे इसी वर्ष नवम्बर में रिटायर हो रहे हैं। देश की मौजूदा राजनीति में न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है। 


संविधान समानता की दिशा तो दे रहा है मगर व्यावहारिक तथ्य यह भी है कि अभी भी बड़ा वर्ग आर्थिक-सामाजिक तौर पर वंचित है जिन्हें राजनीतिक दल केवल वोट बैंक के नजरिए से आंकते हैं। देश का वह आखिरी नागरिक आज भी कातर भाव से शीर्ष पर बैठे लोगों को ताक रहा है जिसे न तो अपने अधिकारों का ज्ञान है, न ही उसकी तूती की आवाज में दम है। बहरहाल, न्यायपालिका लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण संस्था है। यह सुनिश्चित करती है कि कानून के शासन का पालन किया जाए, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जाए और सत्ता का दुरुपयोग न हो। न्यायपालिका लोकतंत्र को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लिहाजा इसका सम्मान होना चाहिए।

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