अब व्यापार घाटे पर नियंत्रण जरूरी
- डा. जयंतीलाल भंडारी
इन दिनों विदेश व्यापार पर प्रकाशित हो रही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि वैश्विक व्यापार तनाव, टैरिफ में हुई बढ़ोतरी और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान जैसी चुनौतियों से भारत के सामने व्यापार घाटा बढऩे का खतरा है। इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2025 में जहां भारत से वस्तु निर्यात बढक़र 38.49 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गए, वहीं भारत के वस्तु आयात अधिक तेजी से बढक़र 64.91 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गए हैं। ऐसे में वस्तुओं के व्यापार घाटे का आकार 26.42 अरब डॉलर पर रेखांकित हो रहा है। अतएव भारत के द्वारा व्यापार घाटे पर नियंत्रण के लिए रणनीतिपूर्वक आगे बढऩा जरूरी है। निश्चित रूप से इस समय सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्यम (एमएसएमई) जहां देश से निर्यात बढ़ाने में नई भूमिका निभा सकते हैं, वहीं आयात नियंत्रण में भी मददगार हो सकते हैं। इस समय नए व्यापार युग के बदलाव के दौर में भारत के एमएसएमई के लिए चुनौतियों के बीच दुनिया में आगे बढऩे के ऐतिहासिक अवसर भी हैं और ये उद्योग वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि टैरिफ वार से एमएसएमई क्षेत्र को जो झटका लग रहा है, उस झटके से एमएसएमई के उबारने के लिए जहां एक ओर सरकार के द्वारा एमएसएमई के समक्ष दिखाई दे रही चुनौतियों के समाधान के लिए रणनीति बनाकर निर्यातकों को सहारा देना होगा, वहीं एमएसएमई क्षेत्र के उद्यमियों और निर्यातकों को भी नई चुनौतियों के मद्देनजर तैयार होना होगा। इस परिप्रेक्ष्य में यह बात महत्वपूर्ण है कि सरकार निर्यातकों को सहारा देने के लिए 2250 करोड़ रुपए के निर्यात संवर्धन मिशन को तेजी से लागू करने और बिना रेहन के कर्ज दिए जाने की योजना बना रही है। साथ ही चालू वित्त वर्ष 2025-26 में एमएसएमई को दिए जाने वाले कर्ज का लक्ष्य पिछले वर्ष की तुलना में करीब 20 फीसदी बढ़ाकर 17.5 लाख करोड़ रुपए किया गया है। इसी तरह एमएसएमई क्षेत्र भी नए व्यापार युग की सच्चाइयों को समझते हुए नवाचार, प्रतिस्पर्धा, क्षमता में सुधार तथा शोध की डगर पर आगे बढऩे की तैयारी कर रहा है। चूंकि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारत की कार्रवाई पर चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखाई दिया है और चीन ने न केवल पाकिस्तान को पूर्ण समर्थन दिया, वरन चीन ने पाकिस्तान को मिसाइलों सहित विभिन्न हथियारों की सीधी आपूर्ति भी की। चीन अप्रत्यक्ष रूप से भारत को तेजी से आर्थिक शक्ति बनने से रोकना चाहता है। ऐसे में अब भारत के साथ शत्रुपूर्ण आचरण कर रहे चीन से वर्ष-प्रतिवर्ष तेजी से बढ़ते हुए आयातों को नियंत्रित करके चीन को भी आर्थिक सबक दिया जाना जरूरी है। हाल ही में प्रकाशित नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक चीन के साथ द्विपक्षीय कारोबार में भारत लगातार घाटे की स्थिति में बना हुआ है। पिछले वित्त वर्ष 2024-25 में चीन को भारत का निर्यात 14.5 प्रतिशत घटकर 14.25 अरब डॉलर रह गया, जबकि 2023-24 में यह 16.66 अरब डॉलर था। इतना ही नहीं, चिंताजनक यह भी है कि चीन से 2024-25 में आयात 11.52 प्रतिशत बढक़र 113.45 अरब डॉलर हो गया, जबकि 2023-24 में यह 101.73 अरब डॉलर था।
चीन के साथ व्यापार घाटा पिछले वित्त वर्ष में करीब 17 प्रतिशत बढक़र 99.2 अरब डॉलर हो गया, जो 2023-24 में 85.07 अरब डॉलर था। चीन 2024-25 में 127.7 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा। दोनों देशों के बीच 2023-24 में 118.4 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। चीन पर निर्भरता कम करने के जो रणनीतिक कदम उठाए गए हैं, उनका अभी जमीनी तौर पर कोई विशेष असर नहीं दिखा है। अब आतंकी देश पाकिस्तान को विश्व मंच पर खुला समर्थन दे रहे, चीन के साथ कोई छह माह पूर्व भारत ने मित्रता की जिस राह को आगे बढ़ाया था, अब उस राह को रोकते हुए चीन के साथ कारोबार असंतुलन को कम करने के लिए हरसंभव कदम उठाने जाने जरूरी हैं। नि:संदेह भारत की नई वैश्विक व्यापार रणनीति के तहत नए मुक्त व्यापार समझौतों और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों से व्यापार घाटे में कमी लाई जानी होगी। भारत के द्वारा ब्रिटेन के साथ किए गए मुक्त व्यापार समझौते के बाद अब अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के साथ-साथ मुक्त व्यापार समझौतों को 31 दिसंबर 2025 तक पूर्ण किए जाने के लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढऩा होगा। इस समय भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय कारोबार समझौते (बीटीए) के शुरुआती चरण के लिए वार्ता तेजी से आगे बढ़ रही है। हाल ही में अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने व्हाइट हाऊस में एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि पूरी दुनिया में भारत एक ऐसे पहले देश के रूप में सामने आया है, जो अमेरिका के साथ सबसे पहले टैरिफ पर प्रभावी वार्ता करते हुए द्विपक्षीय कारोबार समझौते को तेजी से अंतिम रूप देने की डगर पर आगे बढ़ रहा है। भारत के द्वारा ओमान, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, इजराइल, भारत गल्फ कंट्रीज काउंसिल सहित अन्य प्रमुख देशों के साथ भी एफटीए को शीघ्रतापूर्वक अंतिम रूप दिया जाना होगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश से सेवा निर्यात (सर्विस एक्सपोर्ट) बढ़ाकर व्यापार घाटे में कमी लाई जा सकती है। इस समय पूरी दुनिया में भारत सेवा निर्यात की डगर पर छलांगे लगाकर आगे बढ़ रहा है। भारत को सेवा निर्यात की नई वैश्विक राजधानी के रूप में रेखांकित किया जा रहा है। हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय के द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत का सेवा निर्यात करीब 387.5 अरब डॉलर का रहा है। भारत में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) की तेजी से नई स्थापनाओं के कारण भी सेवा निर्यात तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही में नैसकॉम और जिनोव की ओर से जारी इंडिया जीसीसी, लैंडस्केप रिपोर्ट के मुताबिक जीसीसी के लिए भारत दुनिया का सबसे बड़ा हब बनते हुए दिखाई दे रहा है। फिलहाल देश में 1700 जीसीसी हैं जिनसे 20 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है।
देश में जीसीसी का बाजार आकार 5.4 लाख करोड़ रुपए का है और यह 2030 तक 8.4 लाख करोड़ रुपए का होगा। दुनिया के 50 प्रतिशत जीसीसी सिर्फ भारत में हैं। भारतीय जीडीपी में भारत के जीसीसी का योगदान एक प्रतिशत है और 2030 तक यह 3.5 प्रतिशत हो जाएगा। ऐसे में भारत को सेवा निर्यात और तेजी से बढ़ाने की नई रणनीति के साथ आगे बढऩा होगा। यह बात ध्यान में रखी जानी होगी कि अब सेवा निर्यात के क्षेत्र में भी लगातार प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में भारत से डिजिटल सेवा निर्यात में तेजी से वृद्धि के लिए सेवाओं की गुणवत्ता, दक्षता, उत्कृष्टता तथा सुरक्षा को लेकर और अधिक प्रयास करने होंगे। हम उम्मीद करें कि भारत सरकार बढ़ते हुए व्यापार घाटे को नियंत्रित करने के लिए एमएसएमई की मजबूती, चीन से आयात नियंत्रण, मुक्त और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों, सेवा निर्यात बढ़ाने तथा निर्यात के लिए संभावित नए देशों में कारगर प्रयासों की रणनीति को मुठ्ठी में लेकर आगे बढऩे का प्रयास करेगी।
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