माफीनामा एक नया शगल

इलमा अज़ीम 
पहले बिना सोचे-समझे बयानबाजी करना और विवाद खड़ा होने लगे तो माफीनामा पेश करना, हमारे नेताओं का शगल हो गया है। हैरत इस बात की है कि समय-समय पर अदालतों की फटकार का भी इन पर असर नहीं होता। ताजा मामला मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह और सपा नेता रामगोपाल यादव का है। दोनों ने अलग-अलग मौकों पर भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का चेहरा बनीं कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को लेकर विवादास्पद टिप्पणियां कीं।
 विजय शाह को तो सुप्रीम कोर्ट ने वही नसीहत दी जो जिम्मेदार पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति को दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने मौखिक रूप से टिप्पणी भी की है कि मंत्री द्वारा बोले गए हर वाक्य में जिम्मेदारी होनी चाहिए। मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी का जिक्र करते हुए एक संबोधन में जो कुछ कहा वह सार्वजनिक है। 



इसके लिए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से उन्हें फटकार भी मिली। आलोचना होने पर वह अब माफी मांगने के साथ यह भी सफाई दे रहे हैं कि मीडिया ने बयान को संदर्भ से बाहर ले लिया है। वहीं दूसरी ओर मुरादाबाद में सपा नेता रामगोपाल यादव तो विंग कमांडर व्योमिका सिंह पर जातिगत टिप्पणी करने से भी नहीं चूके। जाहिर है कि राजनेताओं के बड़बोले बयानों की यह ‘बीमारी’ किसी एक राजनीतिक दल से भी जुड़ी नहीं है। जिसे जहां दांव लगता है सुर्खियों में आने के लिए बेसिर-पैर के बयानों की बौछार शुरू कर देता है।


 ज्यादा बवाल होने पर राजनीतिक दल उन पर निलंबन व निष्कासन की कार्रवाई कर देते हैं। दरअसल इस बात पर कोई भी राजनीतिक दल विचार नहीं करता कि आखिर ऐसे बड़बोले नेताओं को जनप्रतिनिधि बनने का मौका ही क्यों दिया जाता है। जनता उन्हें ही चुनती है जिनको राजनीतिक दल उम्मीदवार बनाते हैं। अब चरित्र, पृष्ठभूमि मायने नहीं रखती, राजनीतिक दल जिताऊ को ही उम्मीदवार बनाते हैं, लिहाजा मजबूरी में जनता को उन्हीं से किसी एक को चुनना होता है। अब जरूरत है कि ऐसे लोगों का पृष्ठभूमि और उनके आचार-विचार की पड़ताल की जाए।

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