सजा से रुकेंगे जहरीली शराब जैसे हादसे

- योगेंद्र योगी
भारत में आम लोगों के जीवन की कोई कीमत नहीं है। सरकारों का काम सिर्फ टैक्स वसूलना रह गया है, जब जिम्मेदारी लेने के वक्त आता है तो सब एक-दूसरे को दोषी ठहरा कर पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं। इससे भी ज्यादा आश्चर्य यह है कि सरकारें पिछली गलतियों से भी कोई सबक नहीं सीखती हैं। साथ ही गलतियों के लिए जिम्मेदार अफसरों पर ऐसी कोई कार्रवाई नहीं होती, जिससे दूसरे लोग इससे सबक सीख सकें। महज कागजी खानापूर्ति करने के लिए कार्रवाई करने के बाद अफसर वापस मलाईदार पोस्टिंग पाने में कामयाब हो जाते हैं। पंजाब के अमृतसर के कई गांव में जहरीली शराब पीने से करीब दो दर्जन लोगों की मौत भी ऐसी ही गैरजिम्मेदाराना प्रवृत्ति का परिणाम है। इस मामले में मुख्य आरोपी प्रभजीत सिंह को गिरफ्तार किया गया। आबकारी विभाग के दो अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि इतने लोगों की मौत के बाद अधिकारियों को सिर्फ निलंबित किया गया है। दरअसल कानून में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है कि अफसरों की लापरवाही से होने वाली मौतों के लिए उन्हें भी अपराधियों की तरह सजा होगी। केंद्र सरकार ने आपराधिक कानून का नाम बदल दिया। इसमें कई तरह के संशोधन किए गए। किन्तु नौकरशाहों को जिम्मेदार बनाने के लिए सजा का प्रावधान नहीं किया गया। यही वजह है कि जहरीली शराब पीने से होने वाले हादसे हों या इसी तरह के दूसरे हादसों में जिम्मेदार अधिकारियों को आपराधिक मामलों की तरह जेल की सजा नहीं होती। पांच साल पहले पंजाब में तरनतारन, अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में एक बड़ी शराब त्रासदी हुई थी। जुलाई और अगस्त 2020 में माझा क्षेत्र के तीन जिलों तरनतारन, गुरदासपुर और अमृतसर में नकली शराब पीने से लगभग 130 लोगों की मौत हो गई थी। लगभग एक दर्जन लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी।


अकेले तरनतारन जिले में लगभग 80 मौतें हुई थीं। 19 मार्च 2024 को पंजाब के ही संगरूर जिले में नकली शराब पीने से 21 मौतें हो गई थीं, जबकि 40 से अधिक लोग गंभीर रूप से बीमार हुए। यह पहला मौका नहीं है जब देश के किसी राज्य में जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत हुई हो। वर्ष 2014 में अवैध शराब के सेवन से 1699 मौतें हुईं। वर्ष 2015 में 1624 घटनाओं में 1522 लोगों की जान गई। महाराष्ट्र (278), पुड्डुचेरी (149) और मध्य प्रदेश (246) में सबसे ज्यादा मौतें हुईं। वर्ष 2016 में 1073 घटनाओं में 1054 मौतें दर्ज की गईं। इस वर्ष मध्य प्रदेश (184) और हरियाणा (169) में सबसे ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई। इसी तरह वर्ष 2017 में 1497 घटनाओं में 1510 मौतें हुईं। इनमें कर्नाटक (256), मध्य प्रदेश (216) और आंध्र प्रदेश (183) में हालात गंभीर रहे। वर्ष 2018 में 1346 घटनाओं में 1365 लोगों की जान गई। मध्य प्रदेश (410) और कर्नाटक (218) में सबसे ज्यादा मौत के मामले सामने आए। वर्ष 2019 में 1141 घटनाओं में 1296 मौतें हुईं। इनमें मध्य प्रदेश में 410 और कर्नाटक में 268 लोगों की मौत हुई। वर्ष 2020 में 931 घटनाओं में 947 लोगों की जान गई। मध्य प्रदेश (214) और झारखंड (139) में सबसे ज्यादा मौतें हुईं। वर्ष 2021 में 708 घटनाओं में 782 मौतें हुईं और वर्ष 2022 में 507 घटनाओं में 617 मौतें हुईं। इनमें बिहार (134) और कर्नाटक (98) में अवैध शराब का कहर जारी रहा। वर्ष 1992 ओडिशा के कटक में जहरीली शराब पीने से 200 से अधिक लोगों की मौत हुई, जबकि 600 अन्य लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जो दशकों में भारत में इस तरह की सबसे बड़ी घटना थी।


वर्ष 1981 में कर्नाटक के बेंगलुरु में सबसे भयानक हादसा हुआ। बेंगलुरु में मिथाइल अल्कोहल विषाक्तता के कारण 308 लोगों की मौत हो गई। यह सस्ती शराब में मिलावट के कारण हुआ था। अवैध या जहरीली शराब सिर्फ बिहार या पंजाब की समस्या नहीं है। देश के लगभग सभी राज्यों में अवैध शराब का कारोबार धड़ल्ले से चलता है। हर साल लाखों लीटर अवैध शराब जब्त भी होती है। लेकिन इस पर पूरी तरह से रोक नहीं लग पा रही। बिहार ही नहीं, बल्कि गुजरात, मिजोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप में भी पूरी तरह से शराबबंदी है। इसके बावजूद यहां जहरीली शराब से मौतें होती रहती हैं। गुजरात पहला राज्य था, जिसने शराब पर प्रतिबंध लगाया था। फिर भी राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 6 साल में जहरीली या अवैध शराब पीने से राज्य में 54 लोगों की मौत हो चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि भारत में हर साल शराब की जितनी खपत होती है, उसमें से 50 फीसदी अवैध तरीके से बनती और बिकती है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल पांच अरब लीटर शराब पी जाती है।



इसमें 40 फीसदी से ज्यादा अवैध तरीके से बनाई जाती है और ये सस्ती होती है। ग्रामीण इलाकों में देसी शराब ज्यादा पी जाती है। बिहार सरकार के आंकड़े बताते हैं कि शराबबंदी कानून तोडऩे के मामले में 6.71 लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है। देश के कुछ राज्यों में शराबबंदी लागू है और कुछ ऐसे भी हैं जहां पहले शराबबंदी थी, लेकिन बाद में इसे हटा लिया गया। हरियाणा में 1996 में शराबबंदी लागू की गई थी, लेकिन दो साल बाद ही 1998 में इसे हटा लिया गया। आंध्र प्रदेश में 1995 में शराब पर प्रतिबंध लगा, लेकिन 1997 में सरकार ने इसे वापस ले लिया। मणिपुर में भी 1991 से शराबबंदी लागू है और सरकार ने इसमें थोड़ी छूट देने का फैसला लिया। ऐसा इसलिए ताकि सरकारी खजाना भर सके। मणिपुर सरकार को शराबबंदी के कानून में थोड़ी छूट देने से 600 करोड़ रुपए का रैवेन्यू मिलने का अनुमान है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक देश के ज्यादातर राज्यों के टैक्स रैवेन्यू में 10 से 15 फीसदी हिस्सेदारी शराब से मिलने वाले टैक्स की है। उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों के टैक्स रैवेन्यू में तो 20 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी शराब की है।


अवैध और जहरीली शराब से होने वाली मौतों के आंकड़ों से जाहिर है कि देश में ऐसा एक भी साल नहीं गया, जब ऐसे हादसों में लोगों की जानें नहीं गई हों। मतलब जहरीली शराब से होने वाली मौतें देश में स्थायी लाइलाज समस्या बन गई हैं। केंद्र हो या राज्य सरकारों की जांच एजेंसियां, ऐसा हादसा होने के बाद सक्रिय होती हैं। सरकारें मृतक आश्रितों को चंद रुपयों का मुआवजा और कुछ आरोपियों की गिरफ्तारी कर असली जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं। ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति के बावजूद राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में ऐसी समस्याएं स्थान नहीं पाती हैं। दरअसल राजनीतिक दलों के एजेंडे में ऐसी मौतों के लिए कोई स्थान नहीं है। ऐसा इसलिए भी है कि ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति नहीं होने देने की गारंटी से वोट बैंक मजबूत नहीं होता। यही वजह है कि हर साल किसी न किसी राज्य से जहरीली शराब से होने वाली मौतों की पुनरावृत्ति जारी है। आगे भी इस सिलसिले के थमने के आसार नजर नहीं आते। राज्यों में सिर्फ विपक्षी दल शोर-शराबा करता है, किन्तु सत्ता में आने पर ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए किसी के पास कोई नीति नहीं होती। ऐसी मौतों का सिलसिला तब तक जारी रहेगा, जब तक मौतों के लिए जिम्मेदार अफसरों के लिए कानून में जेल भेजे जाने का प्रावधान नहीं होगा। सभी वर्गों को इस समस्या के ठोस समाधान के लिए मिलजुल कर काम करना होगा।

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