कविता के आईने में समाज-संस्कृति
पुस्तक : मुरारी की चौपाल
कवि : अतुल कुमार शर्मा
प्रकाशक : आस्था प्रकाशन गृह, जालंधर
पृष्ठ : 111 मूल्य : रु. 295।
‘मुरारी की चौपाल’ काव्य-संग्रह के लेखक अतुल कुमार शर्मा पेशे से उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। काव्य-क्षेत्र में उन्हें प्रारंभिक प्रेरणा अपने पिता सुभाष चंद्र शर्मा से प्राप्त हुई, जो स्वयं एक साहित्यकार रहे हैं। कवि ने अपने काव्य-संग्रह में अपने गांव की संस्कृति तथा अपने सांस्कृतिक परिवेश के इर्द-गिर्द घूमते विषयों को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।
इन कविताओं का मूल उद्देश्य जीवन में नैतिक, सामाजिक, पारिवारिक तथा विरासती मूल्यों की स्थापना, पुनर्स्थापना और रक्षा के प्रति अनुभूत संवेदना को प्रकट करना है। भारतीय समाज के उच्च नैतिक मूल्यों को लेकर कवि की स्पष्ट प्रतिक्रिया सामने आती है। वह आधुनिकता की विद्रूपता और उद्देश्यहीन अंधी दौड़ पर व्यंग्य करता हुआ दिखता है :-
आधुनिकता के रथ पर/ आरूढ़ होकर/ चल पड़ी है नई पीढ़ी आंखें मूंदकर/ अंधेरे की ओर/ उजाले के भ्रम में/ लगातार सूख रही है/ आंगन की तुलसी/ और प्रतीक्षा कर रही है/ लोटा भरे जल की।
कवि की गहन आस्था उसे अदृश्य शक्ति में विश्वास करने का हौसला देती है, जिससे वह जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा पाता है :-
कोई तो है/ जो हरा देता है/ जिता देता है/ हारती जंग में भी/ मुझे जिता देता है।
लेखक समाज में पनप रही नई फैशन-प्रवृत्तियों को लेकर भी गहरी चिंता व्यक्त करता है। वह प्रश्न करता है कि क्या फैशन मानसिकता को विकृत करता है या विकृत मानसिकता ही अमानवीय व्यवहार को जन्म देती है। फैशन के भौंडेपन और बढ़ती नग्नता पर चिंतित होते हुए कवि कई तार्किक सवाल करता है।
कवि यह प्रश्न भी उठाता है कि विकास और आधुनिकता कितनी आवश्यक है और इसे किस अनुपात में अपनाया जाना चाहिए। उसकी कविताओं में श्रद्धा और सांस्कृतिक विरासत की गहरी छाया दिखाई देती है। कवि ने रिश्वतखोरी जैसे सामाजिक विकारों पर भी तीखा व्यंग्य किया है।
अपनी कविताओं के माध्यम से कवि समाज की विविध समस्याओं के समाधान की कल्पना करता है, जो उसकी सामाजिक संवेदना का परिचायक है।
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