अस्पतालों में महिला मरीजों की यौन सुरक्षा
- डा. वरिंदर भाटिया
हाल ही में दिल्ली के साथ लगते हरियाणा के गुरुग्राम क्षेत्र में एक महिला मरीज के यौन उत्पीडऩ से जुड़ी एक घटिया हरकत सामने आई है। यहां के एक अस्पताल में एक एयर होस्टेस के साथ कर्मचारी ने कथित तौर पर यौन शोषण किया। इस दुष्कर्म को उस समय अंजाम दिया गया जब महिला मरीज आईसीयू में वेंटीलेटर पर थी। महिला ने अपनी शिकायत में बताया था कि 6 अप्रैल को वह वेंटिलेटर पर थी, जब अस्पताल के कुछ कर्मचारियों द्वारा उसका यौन उत्पीडऩ किया गया। इसे डिजिटल रेप के रूप में बताया जा रहा है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार डिजिटल रेप में डिजिटल का मतलब उंगलियों से यौन उत्पीडऩ करना है। इस क्रिया में शारीरिक बलात्कार जैसा कार्य नहीं होता है। इसे भारतीय कानून के तहत एक गंभीर अपराध माना जाता है। यह पहला मामला नहीं है, जब किसी महिला को अस्पताल में इस तरह की दरिंदिगी और यौन उत्पीडऩ का सामना करना पड़ा है।
इससे पहले भी कई बार इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं। एक जर्नल के अनुसार पूरे भारत में अस्पतालों के अंदर मरीजों का यौन उत्पीडऩ आम बात है। भारत में 4 में से एक भारतीय महिला ने सरकारी अस्पताल में लिंग आधारित हिंसा की शिकायत की है। मौजूदा घटना अपने आप में महिला मरीजों की अस्पतालों में इलाज के दौरान यौन सुरक्षा पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करने वाली है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकेगा कि इस प्रकार की नामुराद घटनाएं पूरे देश में बढ़ रही हैं। कुछ समय पहले कोलकाता में भी ऐसा कांड सामने आया था और पूरे देश में हो-हल्ला मच गया था। कल्पना कीजिए, एक महिला मरीज लगभग कोमा में है, वह वेंटिलेटर पर जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रही है।
जिंदगी और मौत से लड़ रही है, संवेदना की दया पात्र महिला मरीज के खिलाफ अस्पताल का कथित स्टाफ उसकी बेबसी का फायदा उठाकर आईसीयू में वहशीपन की साजिश रचता है। कुछ बेशर्म महिला बाशिंदों की मौजूदगी में उस महिला की आबरू पर हमला होता है। यह सब अत्यंत शर्मसार करने वाला लगता है। जरा सोचिए उस महिला मरीज के मन की हालत क्या होगी। कुछ वक्त पहले कोलकाता में एक डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था और महिलाओं की सुरक्षा के उपायों में महत्वपूर्ण कमियों को उजागर किया है। विधायी प्रगति और जागरूकता बढ़ाने के बावजूद, महिलाओं के खिलाफ हिंसा चिंताजनक रूप से उच्च बनी हुई है। घरेलू हिंसा, वैवाहिक बलात्कार, छेड़छाड़, यौन उत्पीडऩ, दहेज से संबंधित अपराध और मानव तस्करी जैसी घटनाओं की संख्या भारत में अभी भी अधिक है। गहरी पैठ वाली पितृसत्तात्मक मानसिकता, आर्थिक असमानताएं और रूढि़वादी सांस्कृतिक प्रथाएं लगातार लिंग आधारित हिंसा में योगदान करती हैं। बढ़ती जागरूकता के कारण शहरी क्षेत्रों में ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग अधिक होती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में कलंक और सीमित सहायता प्रणालियों के कारण ऐसी घटनाएं कम ही रिपोर्ट हो पाती हैं।
गुरुग्राम के अस्पताल में उपचाराधीन एक एयर होस्टेस के यौन उत्पीडऩ के मामले में हरियाणा महिला आयोग की चेयरपर्सन रेणु भाटिया ने इस मामले पर कहा है कि हरियाणा के प्राइवेट अस्पतालों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए नियम बनाए जाएंगे। उन्होंने अस्पतालों को महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। यह भी आदेश किया गया है कि किसी भी अस्पताल में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना अस्पताल का दायित्व होगा। सभी राज्यों के महिला आयोग ऐसे मुद्दों को लेकर उग्रता दिखाए, तो बेहतर होगा। महिला मरीजों का यौन उत्पीडऩ एक अंतरराष्ट्रीय समस्या है। कुछ समय पहले यूरोप के एक देश नॉर्वे में एक चौंका देने वाला मामला सामने आया है। वहां गांव के एक डॉक्टर पर 87 महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगा है। इन महिलाओं की उम्र 14 से 67 साल के बीच है। बताया जा रहा है कि ये घटनाएं पिछले 20 साल से हो रही थीं।
आरोप है कि डॉक्टर इन महिलाओं का उनके घरों और अपने सर्जरी रूम में रेप करता था और वीडियो भी बनाता था। इसे नॉर्वे के इतिहास का सबसे बड़ा यौन शोषण कांड बताया जा रहा है। क्या इस तरह की घटनाएं अपने आसपास तो नहीं हो रही हैं, इसके लिए चौकन्ने रहने की जरूरत है। हमारे समक्ष कई गंभीर सवाल हैं। एक अस्पताल में महिला मरीज जान बचाने की आस रखता है। वहां अगर उसकी इज्जत लूट ली जाए तो हमारा महिला समाज कितना सुरक्षित है? क्या अस्पतालों में मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त प्रोटोकॉल हैं? क्या कर्मचारियों के बैकग्राउंड की जांच और प्रशिक्षण पर्याप्त है। मनोविज्ञान के अनुसार, ऐसी नामुराद हरकतों के लिए अस्पताल में काम करने वाले कुछ अस्पताल कर्मचारियों की दबी हुई यौन कुंठाएं और असंतुष्ट यौन इच्छा जिम्मेवार है, जो हर वक्त महिला मरीज को यौन शिकार बनाने की फिराक में रहती है। पुरुष कर्मचारियों के इस कुत्सित काम में कुछ महिला स्टाफ का विकृत सहयोग यह विदित करता है कि मेडिकल प्रोफेशन की भद्रता संदेह के सवालों के घेरे में है।
इसके लिए अस्पतालों के प्रशासन को और रेग्युलेटरी अथॉरिटी को जिम्मेवारी से मुक्त नहीं किया जा सकता। ऐसी घटनाएं हमारे समाज और स्वास्थ्य सिस्टम पर एक बदनुमा दाग हैं। यह एक चेतावनी है कि हमें अपने चिकित्सा संस्थानों और समाज में गहरे प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता है। देश में महिला सुरक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं है। वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 445256 मामले दर्ज किए गए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 4 फीसदी अधिक हैं, यानी हर घंटे लगभग 51 एफआईआर दर्ज की गईं। यह ध्यान देने वाली बात है कि ये सिर्फ दर्ज मामले हैं। भारत में कई घटनाएं कई कारणों से रिपोर्ट नहीं की जाती हैं। ये कारण पैसे और बाहुबल, सामाजिक कलंक, पारिवारिक दबाव, मौत की धमकी आदि के कारण हो सकते हैं। इसको कैसे काबू किया जा सकता है? ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’, इसका अर्थ है कि जहां महिलाओं की पूजा होती है, वहां भगवान निवास करते हैं। भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों को संबोधित करने के लिए इस बुरे मुद्दे से निपटने के लिए एक ठोस और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के चौंकाने वाले आंकड़े कानूनों के बेहतर क्रियान्वयन, बेहतर लैंगिक संवेदनशीलता और पीडि़तों के लिए बेहतर समर्थन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं। अगर भारत की कुल आबादी का आधा हिस्सा सुरक्षित नहीं है, तो लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय हासिल नहीं किया जा सकता है। इसके लिए केंद्र तथा राज्यों की सरकारों को मिलजुुल कर काम करना होगा।
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