कहीं विनाश का कारण ना बन जाएं हीट रिस्क का फैलाव

- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
जलवायु परिवर्तन की दुश्वारियों में से एक देश और दुनिया के देशों में हीट रिस्क के व्यापक प्रभाव से आसानी से समझा जा सकता है। यदि हम भारत की ही बात करें तो 2011 से 2022 के दशक के अध्ययन के अनुसार देश में हीट रिस्क का दायरा बहुत अधिक बढ़ गया है। मजे की बात यह है कि अब दिन की तुलना में रातें भी अधिक गर्म होने लगी है। इसका एक बड़ा कारण आज की भवन निर्माण विधि और शहरों में कंक्रिट का जंगल विकसित होना और अन्य के साथ ही इलेक्ट्रोनिक उत्पाद खासतौर से अत्यधिक उर्जा खपत वाले फ्रीज और कूलर की जगह लेते एयरकण्डीशनर भी एक है। घटते जंगल और आबादी का दबाव भी एक बड़ा कारण है। ऊर्जा के रुप में जो संसाधान उपयोग किये जा रहे है वे भी जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारक बन रहे हैं।


काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एण्ड वॉटर सीईईडब्ल्यू की हालिया रिपोर्ट अत्यधिक चिंतनीय और हालात की गंभीरता को दर्षाती है। रिपोर्ट की माने तो देश की तीन चौथाई आबादी आज हीट रिस्क की जद में आ चुकी है। देश के 734 जिलों मेें से 417 जिले तो अत्यधिक जोखिम वाले जिलों में शुमार हो चुके हैं। कम जोखिम वाले जिलों मे ंतो केवल और केवल 116 जिले ही रह गये हैं। हालात की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि वैसे तो हीट रिस्क के दायरें में नोर्थ ईस्ट और उत्तरी भारत के नाममात्र के क्षेत्र को छोड़ दिया जाये तो समूचा देश आज हीट रिस्क के दायरें में आ चुका है। देश के 10 जिले राजस्थान, दिल्ली, आन्ध्र प्रदेश, केरल, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तरप्रदेश हीट रिस्क की अत्यधिक जद में आये प्रदेश व केन्दशासित राज्य है।


ऐसा नहीं है कि हमारे देश में ही हीट रिस्क का दायरा बढ़ रहा है। अपितु अब यह वैश्विक समस्या हो चुकी है। दुनिया के देशों में तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। तेज गर्मी की तपन से हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं। जंगलों में दावानल और बैमौसम आंदि तूफान, सूखा या बाढ़ ऐसी समस्यायें आने लगी है जिससे  साल दर साल अब अधिक दोचार होना पड़ रहा है। अमेरिक का फर्नेस क्रीक सबसे अधिक गर्म स्थान है तो ट्यूनिशिया का केबिली, कुवैत का मित्रिबाह, ईरान का अहबाज और लुट रेगिस्तान, चीन का फ्लेमिंग आदि स्थान ऐसे है जो सर्वाधिक गर्मी वाले स्थान है। इसके साथ ही मौसम के मिजाज में भी बदलाव आया है। सर्दी में गर्मी और गर्मी में सर्द रात जैसे व असमय आंधी बरसात आम होती जा रही है। गर्मी के दिन बढ़े है। फरवरी तक अब अपनी परंपरागत मौसम का दायरा छोड़ते हुए अत्यधिक गर्मी वाले महीनों में से एक होने लगा है। आखिर यह मौसम का बदलाव भावी संकट की और साफ साफ इशारा कर रहा है। समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है। ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगे हैं। समुद्र किनारे के शहरों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। अब डूबने का ड़र सताने लगा है। अमेरिका ही नहीं दुनिया के अन्य देशों के जंगलों में जिस तेजी से आग की घटनाएं बढ़ रही है वह अपने आप में अलग चुनौती होती जा रही है। बीमारियों का असर बढ़ रहा है। हालात गंभीर होते जा रहे हैं।


हीट रिस्क के बढ़ते दायरे को देखते हुए आज हीट एक्शन प्लान बनाये जाने लगे हैं। हांलाकि कि यदि केवल सामान्य नागरिकों के बढ़ती गर्मी के कारण होने वाले प्रभाव पर ही बात की जाए तो गर्मी बीमारियों का प्रमुख कारण बनती जा रही है। कई मिलियन मौतों का कारण हीट वेव है। निर्जलीकरण तो एक प्रमुख कारण है ही इसके साथ ही कार्डियोरेस्पिरेटरी के मामलें आम होते जा रहे हैं। अनिद्रा, तनाव, श्वासं लेने में परेशानी, दस्त, पेट दर्द, फूड पोइजनिंग और तापघात आदि बीमारियों का प्रकोप लूूताप के कारण दुनिया के देशों में बढ़ता जा रहा है। जिस तेजी से हीट रिस्क का विस्तार होता जा रहा है उससे आने वाले समय में और अधिक गंभीर हालातों का सामना करना पड़ेगा।
किसी समय भारतीय परंपरा के अनुसार नौतपा ऐसा समय होता था जब सबसे अधिक गर्मी पड़ती थी। यह भी माना जाता था कि जितना अधिक नौतपा प्रभावी रहेगा उतना ही अच्छी बरसात होगी। पर आजकल यह सारे कंसेप्ट बेमानी होते जा रहे हैं नौतपा के पहले ही इतना तप चुका होता है कि एक एक दिन निकालना भारी हो जाता है। इसके साथ ही कही ना कही गर्मी मौत का या विनाश का कारण ना बने इसके बारे में वैज्ञानिकों को गंभीर मंथन करना होगा। जिस तरह से आज हमारे घर ही तापमान की बढ़ोतरी का कारण बनते जा रहे हैं उसका कोई ना कोई पर्यावरण सहयोगी साधन खोजने होंगे।


पहले मकानों में चूने का उपयोग होता था तो दीपावली पर कली भी चूने की होती थी पर आज सारे हालात बदल गए हैं। एक तो गगनचुंबी इमारते और फिर उसका निर्माण लोहे सीमेंट से और इसके साथ ही दैनिक उपयोग के तापमान बढ़ाने वाले सामानोें, उपकरणों के उपयोग के चलते बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने की बात करने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। ऐसें में गर्मी के कारण चौराहों पर हरी पट्टी तान देने या सड़कों पर पानी का छिड़काव करना कोई समाधान नहीं हो सकता बल्कि वैज्ञानिकों और नीति नियंताओं को गंभीर चिंतन करते हुए समय रहते हुए तापमान की बढ़ोतरी के कारकों को नियंत्रित करने के उपायों पर ठोस प्रयास करना होगा।

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