रिश्ता


प्रत्येक ऊंचाई में
ढलान की कम्पन होती है
रिश्ता!

शेयर बाज़ार का सेंसेक्स नहीं होता,
जिसके श्रृंग -गर्त पर टिकी हों निगाहें
कि रातो- रात बढ़ जाए
 
या अचानक लुढ़क जाए औंधे मुंह
इसकी बुनियाद में-
भरोसे और विश्वास की मिट्टी होती है
और तासीर में स्नेह की नमी

इसकी गति में चपलता नहीं,
पहाड़ जैसा धीरज होता है,
रिश्ता!
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- अवनीश यादव, इलाहाबाद विवि, प्रयागराज।

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