एआई और शिक्षा
 इलमा अज़ीम 
एआई ने न केवल पढ़ाने के तरीके को बदला है, बल्कि सीखने, मूल्यांकन और विद्यार्थियों की व्यक्तिगत जरूरतें समझने के नजरिए को भी क्रांतिकारी बना दिया। दरअसल हर विद्यार्थी की सीखने की क्षमता, गति और रुचि अलग-अलग होती है। पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में सभी छात्रों को एक समान तरीके से पढ़ाया जाता था, जिससे कई छात्र पीछे रह जाते थे। 


जबकि एआई आधारित लर्निंग टूल्स जैसे एडैप्टिव लर्निंग सिस्टम्स अब छात्र की सीखने की गति, रुचि, और कमजोरियों को ध्यान में रख उन्हें अनुकूल सामग्री प्रदान करते हैं। इससे छात्रों को अपनी गति से सीखने का मौका मिलता है, जिससे उनकी समझ और आत्मविश्वास बढ़ते हैं। एआई आधारित स्मार्ट ट्यूटर और चैटबॉट्स छात्रों को 24×7 सहायता प्रदान करते हैं। अब छात्रों को हर छोटी-छोटी शंका के लिए शिक्षक का इंतजार नहीं करना पड़ता।



 ये वर्चुअल असिस्टेंट तुरंत सवालों के जवाब देते हैं, चाहे वह गणित का जटिल फॉर्मूला हो या इतिहास की महत्वपूर्ण तारीख।  इस बीच एक बात यह भी गौरतलब है कि एआई का मतलब यह नहीं कि शिक्षकों की जरूरत खत्म हो गई है। बल्कि, एआई ने शिक्षकों को और अधिक प्रभावी और डेटा-सक्षम बना दिया है। मसलन, अब शिक्षक यह समझ सकते हैं कि कौन-सा छात्र कहां पिछड़ रहा है और उसी के अनुसार व्यक्तिगत मार्गदर्शन दे सकते हैं। वहीं एआई तकनीक की मदद से शिक्षक अपने समय का अधिकतम उपयोग पढ़ाने के अलावा मार्गदर्शन, प्रेरणा और रचनात्मक गतिविधियों के लिए कर पा रहे हैं।

 एआई शिक्षकों का सहायक बन शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ा रही है। एआई ने शिक्षा को दुनिया के प्रत्येक कोने तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। विशेष रूप से उन छात्रों के लिए जो स्कूल नहीं जा सकते, एआई आधारित वर्चुअल क्लासरूम और टूल्स ने उनके लिए नई राहें खोली हैं। स्पीच-टू-टेक्स्ट और टेक्स्ट-टू-स्पीच जैसी तकनीकों ने दृष्टिहीन और श्रवण बाधित छात्रों को भी शिक्षा प्राप्ति का अवसर दिया है। इससे शिक्षा समावेशी बन रही है। 


एआई केवल एक तकनीकी उपकरण नहीं है, बल्कि यह शिक्षा में एक नई सोच का प्रतीक है। शिक्षा अब केवल परीक्षा पास करने का माध्यम नहीं रह गई है, बल्कि समझ, अनुभव और नवाचार का केंद्र बन गई है।
 यह लेखिका के अपने विचार है। लेखिका एक स्वत्रंत पत्रकार है 

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