कुपोषण की चुनौती
इलमाअज़ीम
आज भले ही यह दावा किया जा रहा हो कि 21वीं सदी भारत की है और 2047 तक हमारा भारत एक विकसित देश बन जाएगा, पर आज की स्थिति तो यही है कि हमारे देश में जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पा रहा। वर्ष 2024 के ही एक सर्वेक्षण के अनुसार ‘भुखमरी इंडेक्स’ में दुनिया के 127 देशों में हमारा स्थान 105वां है।
 ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ के इस आंकड़े से स्पष्ट है कि भले ही हम यह दावा करें कि हमारा भारत जल्द ही विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ जायेगा, पर हकीकत यह है कि अभी हम अपनी भूख मिटाने लायक भी नहीं बने हैं। हमें इस बात को भी नहीं भुलाना होगा कि वर्ष 2025 के एक सर्वेक्षण के अनुसार हमारे देश में 28 राज्यों में बच्चे कुपोषण के शिकार हैं।
 देश के लगभग एक-तिहाई बच्चों के शरीर में खून की कमी है। महिलाओं की स्थिति इन बच्चों से भी बुरी है। ‘नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे’ में यह देखने को मिला है कि 15 से 50 साल तक की लड़कियों-महिलाओं की आधी से ज्यादा आबादी रक्त की कमी से पीड़ित है। 29 प्रतिशत पुरुष भी खून की कमी के शिकार हैं। यह आंकड़े और यह स्थिति हमें जागरूक करने वाली होनी चाहिए। सवाल गरीबों-अमीरों या गरीबी-अमीरी का नहीं है, सवाल समस्या की तह तक पहुंच कर उचित समाधान को तलाश करने का है।


 पिछले साठ-सत्तर सालों में देश में बहुत कुछ ऐसा हुआ है जिस पर गर्व किया जा सकता है। पर यह बहुत कुछ पर्याप्त ‘बहुत’ नहीं है। अभी और बहुत कुछ करना है हमें। आज हम जहां हैं वहां पहुंचने का श्रेय राह में उठाये गये हर कदम को है। पहला कदम जब उठता है तो मंजिल एक कदम नज़दीक आ जाती है। ज़रूरत हर कदम को मज़बूती से टिकाने की है। ठोस इरादों के लिए कोई मंजिल दूर नहीं होती। मंजिल की इस दूरी को पार करने के लिए इरादों की ईमानदारी भी ज़रूरी है। 


अक्सर हमारे नेता ईमानदार इरादों की बात करते हैं। यह ईमानदारी लगातार झलकनी चाहिए। चुनाव आयें तो हम मखाने की बात करें, लिट्टी-चोखे की बात करें, मखाने और लिट्टी-चोखे से अपने रिश्ते की बात करके रिश्तों की महत्ता बखाने, यह कोई अच्छी स्थिति नहीं है। अच्छी स्थिति तब बनेगी जब मखाने की खेती करने वाले किसान को यह लगेगा कि वह भी 365 दिन में से 300 दिन मखाना खा सकता है। तब उसका स्वास्थ्य सुधरेगा, तब देश का स्वास्थ्य बनेगा। तब हमारी राजनीति भी शायद कुछ स्वस्थ बने।
लेखिका एक  स्वत्रंत पत्रकार


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