शोभित विवि में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 'शक्ति और कानून' विषय पर विशेष व्याख्यान का आयोजन 

मेरठ।  अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर शोभित विश्वविद्यालय के विधि संकाय में प्रो-बोनो क्लब द्वारा 'शक्ति और कानून: भारतीय वैदिक न्यायशास्त्र और महिलाओं के अधिकारों की खोज' विषय पर एक गरिमामय और विचारोत्तेजक विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। इस अवसर पर उच्चतम न्यायालय के एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड संदीप जिंदल ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का आयोजन विधि संकाय के निदेशक प्रो. (डॉ.) प्रमोद कुमार गोयल के मार्गदर्शन में किया गया।

वैदिक न्यायशास्त्र में नारी: शक्ति और अधिकारों का आधार

अपने संबोधन में संदीप जिंदल ने भारतीय वैदिक न्यायशास्त्र की गहन व्याख्या करते हुए बताया कि प्राचीन भारत कर्तव्य प्रधान था, जबकि औपनिवेशिक शासन ने इसे अधिकार प्रधान बना दिया, जिससे नागरिक अपने कर्तव्यों से विमुख हो गए। उन्होंने कहा कि वैदिक काल में नारी को शक्ति का स्वरूप माना जाता था, जहाँ शिक्षा, संपत्ति और सामाजिक निर्णयों में उनकी पूर्ण भागीदारी थी।

उन्होंने वेदों, स्मृतियों, रामायण और महाभारत के विभिन्न श्लोकों के संदर्भ में बताया कि प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था में महिलाओं को उच्चतम सम्मान प्राप्त था। किंतु कालांतर में सामाजिक संरचना में बदलाव और औपनिवेशिक प्रभाव के कारण महिलाओं की स्थिति में गिरावट आई और उन्हें द्वितीयक भूमिका में धकेल दिया गया।समकालीन भारतीय विधानों की चर्चा करते हुए अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (लैंगिक भेदभाव का निषेध) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की महत्ता पर प्रकाश डाला गया। साथ ही, घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संरक्षण अधिनियम, 2013 जैसे विशेष कानूनों की प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा की गई।मुख्य वक्ता ने बल देते हुए कहा कि भारतीय न्याय प्रणाली को वैदिक सिद्धांतों से प्रेरणा लेते हुए महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और सशक्तिकरण की दिशा में निरंतर प्रयास करने चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वैदिक न्यायशास्त्र में निहित नारी सशक्तिकरण के मूलभूत सिद्धांत आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं और उन्हें आधुनिक संवैधानिक ढांचे के साथ संतुलित रूप से अपनाने की आवश्यकता है।शोभित विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) वी.के. त्यागी ने कहा, "सशक्त महिलाएँ न केवल समाज की आधारशिला होती हैं, बल्कि वे देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वैदिक न्यायशास्त्र में नारी को शक्ति का प्रतीक माना गया है, और आज हमें इस विरासत को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है। महिला अधिकारों की रक्षा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिक्षा एवं कानूनी जागरूकता अत्यंत आवश्यक है।"

कार्यक्रम का सार और समापन

कार्यक्रम के समापन पर प्रो. (डॉ.) निधि त्यागी ने कहा कि वैदिक परंपराओं और आधुनिक कानूनों का समन्वय ही महिलाओं की स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है। उन्होंने बल दिया कि वैदिक न्यायशास्त्र में समाहित ज्ञान वर्तमान कानूनी प्रणाली को नया दृष्टिकोण प्रदान कर सकता है, जिससे महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और सशक्तिकरण को और अधिक मजबूती दी जा सके।यह व्याख्यान विश्वविद्यालय के विधि संकाय के छात्रों और शोधार्थियों के लिए एक अत्यंत ज्ञानवर्धक सत्र सिद्ध हुआ, जिसने उन्हें भारतीय न्याय प्रणाली की ऐतिहासिक जड़ों को आधुनिक संदर्भ में समझने का अवसर प्रदान किया।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts