बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम
स्मार्ट फोन या टीवी स्क्रीन पर बच्चों की जरूरत से ज्यादा सक्रियता कई शारीरिक-मानसिक समस्याओं की वजह बन रही है। ऑनलाइन गेम्स के चलते वे मैदान में खेलने से कतराते हैं जिससे उनका मेलजोल कम हो रहा है। ऐसे में बच्चों के व्यवहार पर भी असर हो रहा है।
दरअसल, आज के समय में बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी बढ़ गया है। बच्चों का लंबा समय स्मार्ट गैजेट्स के साथ बीत रहा है। एक के बाद दिखते जाते रील्स-वीडियो के नाम पर अजब-गजब मनोरंजन बच्चों का समय लील रहा है। साथ ही ऑनलाइन गेम्स को दिये जा रहे स्क्रीन टाइम और सोशल मीडिया स्क्रॉल के समय ने भी बच्चों की अर्थहीन वर्चुअल व्यस्तता बढ़ा दी। आज के डिजिटल युग में नन्हें हाथों में आए तकनीकी साधन उनके शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहे हैं।
बावजूद इसके अभिभावक भूल रहे हैं कि स्क्रीन कोई खिलौना नहीं है। स्मार्टफोन, टैबलेट या टेलीविजन में हर वक्त अपनी आंखें गड़ाए रखना बच्चों के लिए कई खतरे लिए है। सिरदर्द, गर्दन और कंधे का दर्द, कमर दर्द, आंखों का सूखापन, मोटापा और गलत पोश्चर जैसी शारीरिक समस्याएं आम हैं। ऐसे ही अटेंटिव न रह पाना, चिड़चिड़ापन और गुस्से जैसी व्यवहारगत तकलीफें भी ज्यादा स्क्रीन टाइम के चलते बच्चों को घेर रही हैं। इन दिनों बच्चों में बढ़ते वर्चुअल ऑटिज्म के मामले चर्चा में हैं।
असल में ऑटिज्म की समस्या से जूझ रहे बच्चों की सीखने, समझने और संवाद करने की क्षमता सामान्य बच्चों के मुक़ाबले कमजोर होती है, ठीक इसी तरह हद से ज्यादा स्क्रीन टाइम के कारण बच्चे वर्चुअल ऑटिज्म के घेरे में आ रहे हैं।
हर समय स्क्रीन में झांकते रहने के चलते स्वस्थ-सामान्य बच्चे भी बातचीत करने में झिझकने हैं, मेलजोल से कतराते हैं। हमउम्र साथियों के साथ नहीं खेलने के बजाय गुमसुम रहने लगते हैं। चिंतनीय है कि डिजिटल होती जीवनशैली की यह व्यस्तता धीरे-धीरे बढ़ ही रही है। बच्चों में शारीरिक-मानसिक समस्याओं की दस्तक से पहले अभिभावकों द्वारा स्क्रीन टाइम मैनेज करना जरूरी है।
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