जानलेवा नहीं है टीबी, समय पर इलाज जरुरीः डॉ. लोकेश
भारत विकास परिषद् सम्राट शाखा ने 5 बच्चों को लिया गोद, बांटी पोषण सामग्री
मुजफ्फरनगर। राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के तहत भारत विकास परिषद् सम्राट शाखा के तत्वावधान में 18 वर्ष से कम उम्र के टीबी मरीजों की देखभाल व मदद के लिए भारत विकास परिषद् सम्राट शाखा ने 5 टीबी से ग्रसित बच्चों को बीमारी से राहत के लिए पोषण सामग्री वितरित की। इस दौरान सम्राट शाखा अध्यक्ष कीमती लाल जैन, सम्राट शाखा की टीम टीबी अधिकारी डॉक्टर लोकेश चंद गुप्ता और टीबी हॉस्पिटल का स्टाफ कार्यक्रम में मौजूद रहे ।
जिला क्षय रोग अधिकारी डा. लोकेश चंद्र गुप्ता ने बताया कि राज्यपाल के निर्देशन में वृहद स्तर पर यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। जिससे देश को टीबी मुक्त बनाया जा सके। उन्होंने बताया कि टीबी बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारी है, जो हवा के जरिए एक इंसान से दूसरे में फैलती है। यह आमतौर पर फेफड़ों से शुरू होती है। सबसे कॉमन फेफड़ों की टीबी ही है लेकिन यह ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी, गला, हड्डी आदि शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। टीबी का बैक्टीरिया हवा के जरिए फैलता है। खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदों से यह इन्फेक्शन फैलता है। अगर टीबी मरीज के बहुत पास बैठकर बात की जाए और वह खांस नहीं रहा हो तब भी इसके इन्फेक्शन का खतरा हो सकता है। हालांकि फेफड़ों के अलावा बाकी टीबी एक से दूसरे में फैलनेवाली नहीं होती और आम विश्वास के उलट यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली बीमारी भी नहीं है। उन्होंने कहा कि टीबी जानलेवा नहीं है यदि उसका समय पर इलाज किया जाए।
इन लोगों को खतरा ज्यादा
डॉ. लोकेश ने बताया कि अच्छा खान-पान न करने वालों को टीबी ज्यादा होती है क्योंकि कमजोर इम्यूनिटी से उनका शरीर बैक्टीरिया का वार नहीं झेल पाता। जब कम जगह में ज्यादा लोग रहते हैं तब इन्फेक्शन तेजी से फैलता है। अंधेरी और सीलन भरी जगहों पर भी टीबी ज्यादा होती है क्योंकि टीबी का बैक्टीरिया अंधेरे में पनपता है। यह किसी को भी हो सकता है क्योंकि यह एक से दूसरे में संक्रमण से फैलता है। स्मोकिंग करने वाले को टीबी का खतरा ज्यादा होता है। डायबीटीज के मरीजों, स्टेरॉयड लेने वालों और एचआईवी मरीजों को भी खतरा ज्यादा। कुल मिला कर उन लोगों को खतरा सबसे ज्यादा होता है जिनकी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता ) कम होती है।
लक्षण
क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के जिला समन्वयक सहबान उल हक ने बताया- 2 हफ्ते से ज्यादा लगातार खांसी, खांसी के साथ बलगम आ रहा हो, कभी-कभार खून भी, भूख कम लगना, लगातार वजन कम होना, शाम या रात के वक्त बुखार आना, सर्दी में भी पसीना आना, सांस उखड़ना या सांस लेते हुए सीने में दर्द होना, इनमें से कोई भी लक्षण हो सकता है और कई बार कोई लक्षण नहीं भी होता है।
जिला पीपीएम कोऑर्डिनेटर हेमंत यादव ने बताया कि यदि किसी को टीबी जैसे दिखते है तो इन लक्षणों वाले लोग क्षय रोग केन्द्र पर टीबी की जांच अवश्य करवाएं। उन्होंने कहा- साधारण टीबी का उपचार कम से कम छह माह तक लगातार चलता है। कोई भी मरीज बिना चिकित्सक की सलाह के दवा बीच में ना छोड़े, दवा बीच में छोड़ने से टीबी बिगड़ जाती है।
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