सुभारती में चल रही तीन दिवसीय कार्यशाला का शिवार्पणा के साथ हुआ समापन

मेरठ।  स्वामी विवेकानन्द सुभारती विवि में बीते तीन दिनों से पद्मश्री डॉ. पुरू दाधीच द्वारा चल रही कार्यशाला का समापन शिवार्पणा से हुआ। कार्यशाला ध्रुपद नृत्य में अप्रचलित तालों के विषय पर रही।

 पद्मश्री कत्थक आचार्य डॉ. पुरू दाधीच  ने तीसरे दिन के पहले सत्र में अपने द्वारा सिखाई धु्रपद बंदिश के अलावा अन्य अप्रचलित तालों पर कुछ अन्य तोड़े, टुकड़े व परन परमेलु भी छात्रों को सिखाये, इसके अलावा उन्होनें अपनी स्व रचित ‘‘पेशकार आमद‘‘ भी छात्रों को सिखाई। उन्होंने इसी सत्र के अन्त में एक अन्य प्रश्नोत्तरी बैठक भी कि जिसमें उन्होनें उपस्थित छात्रों के प्रश्नों का सहजता से उत्तर देकर छात्रों का ज्ञानवर्धन किया। पंडित जी ने अपने द्वारा लिखी विभत्स रस की रचना एवं नवरस की रचना पर भाव करके छात्रों को दिखाया व सिखाया। बीते तीन दिनों के प्रथम दिन में पंडित जी नें 28 मात्रा में निबद्ध धु्रपद के दो अंगों स्थायी और अंतरा कों छात्रों को सिखाया, वहीं दूसरे दिन छात्रों ने गुरू जी से अप्रचलित तालों के विषय में व ध्रुपद के विषय में जानकारी प्राप्त की और धु्रपद के तीसरे व चौथे अगं संचारी व आभोग को समझ कर उनके नृतन की शिक्षा प्राप्त की। उन्होने गुरू जी से तीनताल में कुछ पारंपरिक तोड़े, टुकड़े, परन व आमद भी सीखें। उन्होंने जाना के कत्थक में ध्रुपद का चलन किस प्रकार से होता हैं, और जाना की प्राचीन समय में कत्थक में ध्रुपद का किस प्रकार नृतन होता था। दूसरे दिन की विशिष्ट अतिथि डॉ दाधीच जी की अर्धांगिनी व विश्व विख्यात कत्थक नृत्यांगना डॉ. विभा दाधीच रही।

 कार्यशाला के अन्तिम सत्र का आयोजन ललित कला संकाय के सत्यजीत रे सभागार में हुआ। अन्तिम सत्र की शुरूआत दीप दान करके की गई, उसके उपरातं डॉ. पुरू दाधीच  की पुत्रवधु हर्षिता दाधीच ने कत्थक के पारिपंरिक स्वरूप में तीनतान में बधित सर्वप्रथम गणेश स्तुति के उपरांत थाट के विलुप्त अंग संच, तोड़े, यति, जाति व लड़ी पर अपनी प्रस्तुति दी।

डॉ. पुरू दाधीच ने कत्थक के विषय व आयोजित कार्यशाला पर अपने विचार रखे उन्होंने अपने वचनों में कार्यशाला में उपस्थित सभी छात्रोें व सभी शिक्षक गणों को आर्शीवाद दिया। उन्होने इस कार्यशाला के लिए विश्वविद्यालय के कुलपति मेजर जनरल डॉ.जी.के. थपलियाल, मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. शल्या राज, ललित कला संकाय के प्राचार्य प्रो. डॉ. पिन्टू मिश्रा व मंचकला विभाग की विभागाध्यक्षा प्रो. डॉ. भावना ग्रोवर को सराहा। उन्होंने बताया कि ललित कला के अंतर्गत आने वाली सभी कलाएं एक सूत्र के मोती है। उन्होने कहा संगीत ही ईश्वर है। इसी क्रम में कार्यशाला में जो छात्रों ने जो सीखा उस ध्रुपद को शिवार्पणा का नाम देकर उसकी प्रस्तुति मंच पर दी। इसी श्रृंखला में पद्मश्री डॉ. पुरू दाधीच एवं उनकी अर्धांगिनी व विश्व विख्यात कत्थक नृत्यांगना डॉ. विभा दाधीच को विश्वविद्यालय की मुख्य कार्यकारी अधिकारी  प्रो. डॉ. शल्या राज, ललित कला संकाय के प्राचार्य प्रो. डॉ. पिन्टू मिश्रा व मंचकला विभाग की विभागाध्यक्षा प्रो. डॉ भावना ग्रोवर व डॉ. आकांक्षा व डॉ. अवनी कमल ने स्मृति चिन्ह्, शाल व उपहार देकर सम्मानित किया। इसी क्रम में डॉ. पुरू दाधीच जी की पुत्रवधू हर्षिता दाधीच व उनके पुत्र प्रत्युष दाधीच को सम्मानित किया।मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ.शल्या राज ने डॉ पुरू दाधीच को इस कार्यशाला लेने के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होने कहा की कत्थक नृत्य उनके दिल के बहुत करीब है।

कार्यक्रम के अन्त में मंच कला विभाग कि विभागाध्यक्षा प्रो. डॉ. भावना ग्रोवर ने धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होने कहा कि यहां सभी उपस्थित छात्र  छात्राएॅ बहुत ही भाग्यशाली हैं कि उन्हें गुरू जी के सानिध्य में सीखने और संगीत को गुढंता से समझने का अवसर प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में प्रस्तुति पर संगत में तबले पर फरदीन हुसैन, हारमोनियम पर मेहराज खां, गायन पर डॉ. इन्द्रेश मिश्रा रहे। मंच का संचालन डॉ. श्वेता चौधरी ने किया।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts