वर्तमान समाज सृजन में हाशिए पर शिक्षक
- प्रो एनएल मिश्र

  शिक्षक दिवस शिक्षकों के लिए एक गौरव दिवस है।हमारे देश का एक शिक्षक कुलपति बना। उप राष्ट्रपति बना। फिर राष्ट्रपति के पद को सुशोभित किया। वह उस समय राष्ट्रपति बना जब योग्यता, ज्ञान, विवेकशीलता, सरलता, सादगी और निर्विवाद रूप से एक धनी व्यक्तित्व का मालिक रहा हो,मूल्य के रूप में जाने और पहचाने जाते थे। उस कुर्सी की शोभा बढ़ जाती थी जब ऐसे व्यक्तित्व का धनी शिक्षक उस पर बैठता था।वह और कोई नही डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे।आधुनिक युग में शिक्षको के मान सम्मान और स्वाभिमान को बढ़ाने वाले राधाकृष्णन जी के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में इसलिए मनाया जाता है ताकि शिक्षक उस व्यक्तित्व को याद करें और अपने अंदर पनपती हुई उन विकृतियो को दूर कर सकें जो उन्हें शिक्षक बनने में आड़े आती हों।
       अपने देश में उच्च स्तर के शिक्षक और गुरु हुए हैं जिन्होंने समाज और देश को एक आदर्श मार्गदर्शन दिया है।आचार्य चाणक्य,गुरु परशुराम,गुरु द्रोण गुरु संदीपनी न जाने कितने गुरु।शिक्षक बच्चों को शिक्षा देता है और ऐसी शिक्षा देना उसका कर्तव्य है जो व्यक्तिगत विकास के साथ साथ समाज को अग्रपथगामी बनाए।आदर्श समाज के निर्माण में शिक्षक का योगदान अत्यंत महत्व का है।
     आधुनिक राष्ट्र निर्माताओं ने और उनकी महत्वाकांक्षाओं ने शिक्षा और शिक्षक दोनो के प्रत्यक्षण को हाशिए पर ला खड़ा किया है।योग्य गुरु ही योग्य शिष्य और योग्य सुसंस्कृत, संस्कारित समाज बना सकता है।पर योग्य गुरु को राजनीति की बलि वेदी पर चढ़ाकर यदि सुसंस्कृत समाज की कल्पना की जाय तो यह बेमानी है।जिस समाज में पचास प्रतिशत गुरु जाति आधारित बनेंगे तो बनाए जाने वाले समाज की कल्पना करने में कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी।गुरु राष्ट्र निर्माता है पर अब इसको मानने वाले इसे कोई खास महत्व नहीं देते।उनकी नजर में शिक्षकीय पेशा एक जीविकोपार्जन का साधन मात्र है।अब यहां यह विचार कर लेना जरूरी है कि जब गुरु नियुक्त करने की शक्ति रखने वाला राजा जब शिक्षक को एक नौकर के रूप में प्रत्यक्षित करेगा तो गुरु किस तरह श्री राम पैदा करेगा किस तरह श्रीकृष्ण पैदा करेगा,किस तरह चंद्रगुप्त पैदा करेगा।यह एक विचारणीय पक्ष है।


    मुझे याद है चुनाव कराने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी शिक्षकों के कंधों पर डाल दी जाती है।चुनाव के अधिकारी लोग जो क्लास टू और क्लास वन के अधिकारी होते हैं वे शिक्षकों को ईंट और बालू ढोने वाला पशु मानने लगते हैं और उनके साथ वह व्यवहार किया जाता है जो एक मिल मालिक अपने मजदूरों के साथ करता है।मैंने स्वयं इसे महसूस किया है।वह अधिकारी यह भूल जाता है कि वह अधिकारी इसलिए बन पाया कि गुरु ने उसका मार्ग प्रशस्त किया है।देश का कर्मचारी समाज शिक्षकों को अनादर के भाव से देखता है।उसकी नजर में ज्ञान देना एक फिजूल कार्य है और शिक्षक कुर्सी तोड़ता है।शिक्षकों की यह तस्वीर इसलिए बनी कि शिक्षको की गुणवत्ता से योग्यता और ज्ञान गायब हो गए और गुरु जाति आधारित बनने लगे।शिक्षक बनने की पहली योग्यता जाति हो गई है। जाति तो जाति ही पैदा करेगी इसलिए समाज सुसंस्कृत,संस्कारित और योग्य कैसे बनेगा वह तो जाति बनेगा और समाज आज जाति में तब्दील होता जा रहा है और न देश के कर्णधार कुछ कर पा रहे हैं न समाज को सृजित करने वाला गुरु ही कुछ कर पा रहा है।इसलिए आज समाज में ऐसे विचारकों की जरूरत है जो आने वाले कल के विषय में कुछ सोच सके,विचार कर सके और उस रास्ते को गढ़ सके जो समाज में समरसता,सहृदयता,और युगानुकुल सामाजिक संरचना कर सके।हाशिए पर खड़े शिक्षकों को भी सोचना है कि उनकी स्थिति ऐसी क्यों हुई?
      बहुत वर्ष नही बीते।जब हम लोग प्राथमिक कक्षाओं के छात्र हुआ करते थे।गुरु अपने समय पर कक्षा में आते थे।अपनी क्लास पढ़ाते थे और समय से घर जाते थे।संसाधनों का बेहद अभाव था।पेड़ की छाया में कक्षाएं लगती थीं।जमीन पर अपना बोरा बिछाकर बैठना होता था।मिट्टी की दावात हुआ करती थी।लकड़ी की पट्टी होती थी जिस पर लिखना होता था।पाठ्यक्रम पूरे किए जाते थे।यहां तक कि रात्रिकालीन कक्षाएं भी निःशुल्क लगती थीं।यह जुनून और मूल्य उन शिक्षकों में होते थे। उस समय शिक्षा व्यवसाय के रूप में नही दिखती थी।पर आज के ट्यूशन,कोचिंग और बड़े बड़े शिक्षा केन्द्रों को देखकर लगता है "शिक्षे तुम्हारा नाश हो"।बड़े बड़े मंत्रियों के शिक्षा संस्थान,शिक्षा माफियाओं के शिक्षण संस्थान,उद्योगपतियों के शिक्षा केंद्र,व्यापारियों के शिक्षा संस्थान आज की शिक्षा और शिक्षक की कहानी स्वयं बयां कर रहे हैं।बची खुची कमी बड़े बड़े कोचिंग संस्थान पूरी कर दे रहे हैं।शिक्षा की वर्तमान तस्वीर शिक्षकों के सामाजिक प्रत्यक्षण की नीव प्रशस्त कर रहे हैं।पहले समय में विद्वानों को कुलपति नामित किया जाता था।आज अकादमिक रूप से समृद्ध शिक्षक जिसमे गुरु के समस्त गुण हैं कुलपति बनने की सोच भी नही सकता। उसके पास आज के शिक्षण संस्थानों को चलाने या नेतृत्व देने के गुण नही हैं।


      शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को आत्मचिंतन की जरूरत है।उसके पास चाणक्य के गुण कैसे विकसित हों।यदि शिक्षक समाज बदलने की योग्यता हासिल नहीं करता तो उसे स्वयं इस दायित्व से मुक्त हो जाना चाहिए।जागने का वक्त है,जो समाज बदलने की योग्यता धारित करेगा वही गुरु माना जायेगा। इसलिए हमें आत्मचिंतन की जरूरत है।
‍(महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय, विश्वविद्यालय, चित्रकूट)

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