सकारात्मक सोच से मिलेगी युवाओं को नई दिशा
- डॉ. अशोक कुमार वर्मा
संसार के 195 देश हैं और भारत इनमें जनसंख्या की दृष्टि से प्रथम स्थान पर पहुँच गया है। इसके साथ ही भारत संसार का सबसे युवा देश है। जनसंख्या की दृष्टि से चीन विश्व में प्रथम स्थान रखता था लेकिन आज भारत विश्व का सर्वोच्च जनसंख्या वाला देश बन चुका है। यूएनएफपीए द्वारा प्रदर्शित आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 68 प्रतिशत जनसंख्या 15 से 64 आयु वर्ग के व्यक्तियों की है जबकि 65 वर्ष से ऊपर की आयु के मात्र 7 प्रतिशत लोग हैं। संसार में आयु समूह की कोई सार्वभौमिक रूप से सहमत अंतर्राष्ट्रीय परिभाषा नहीं है तथापि भारत की राष्ट्रीय युवा नीति, 2014 के अनुसार 15 से 29 वर्ष की आयु के व्यक्तियों को युवा माना जाता है लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में जहाँ तकनीकी विज्ञान, इंटरनेट और संचार साधनों के साथ साथ मोबाइल कंप्यूटर आदि संसाधनों की पहुँच के फलस्वरूप 10 से 11 वर्ष का बच्चा भी मानसिक और बौद्धिक रूप से परिपक्व हो चूका है।
आज अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस है। यद्यपि भारत में प्रतिवर्ष 12 जनवरी को "राष्ट्रीय युवा दिवस" के रूप में मनाया जाता है तथापि 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में घोषित किया हुआ है। 17 दिसंबर 1999 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा हर वर्ष 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाये जाने का निर्णय लिया गया था। इसके बाद 12 अगस्त 2000 को पहली बार यह दिवस मनाया गया था। तब से लेकर हर वर्ष यह दिवस मनाया जा रहा है। इसके पीछे के कारणों पर चिंतन करना आवश्यक है। युवा किसी भी देश के लिए बहुत महत्व रखता है क्योंकि वह ही देश का भविष्य है। जिस देश का युवा जागरूक होगा वह देश उतनी ही शीघ्रता से विकास की और बढ़ेगा। इसीलिए सरकार द्वारा युवाओं को सशक्त बनाने, उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने और समाज में उनकी भूमिका और योगदान को पहचानने के लिए समर्पित है। किसी भी देश के विकास में युवाओं का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन विकसित और विकासशील दोनों देशों में, युवाओं को मानसिक और सामाजिक जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए, युवाओं को इन चुनौतियों के बारे में जागरूक करने, देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर उनकी भागीदारी बढ़ाने और उनकी क्षमता का सम्मान करने के लिए हर साल अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।
युवाओं की ऊर्जा, शक्ति और सोच को सकारात्मक दिशा की ओर लेकर जाना माता-पिता, समाज और राष्ट्र का दायित्व है। 10 से 18 वर्ष की आयु युवाओं के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण होती है। वे अपने आसपास के वातावरण से प्रभावित होते हैं। वे अपने शिक्षकों, मित्रों, चलचित्रों से बहुत अधिक प्रभावित होकर उनसे सकारात्मक और नकारात्मक सीख लेते हैं। सत्य तो यह है कि ये कच्चे घड़े के समान होते हैं। जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी से बर्तन आदि बनाता है और जो आकृति वह चाहता है वैसी आकृति बना देता है उसी प्रकार समाज और आसपास के लोग जैसे होते हैं वैसे ही युवा बन जाते हैं। जैसा संग वैसा रंग वाली युक्ति यहाँ पर सर्वाधिक उपयुक्त सिद्ध होती है। माँ बच्चे के लिए सबसे प्रथम गुरु है। छत्रपति शिवाजी का उदाहरण यह सिद्ध करता है कि बाल्यावस्था में ही उनकी माता जी ने उनके अंदर देश प्रेम की भावना कूट कूट कर भर दी थी। परिणामस्वरूप छत्रपति शिवाजी महान शासक जी नहीं बने अपितु राष्ट्र के महानायक भी बने।
आज युवा पीढ़ी को नई सोच के साथ साथ सकारात्मक दृष्टिकोण देने की आवश्यकता है। भारत का युवा प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी है। आज आवश्यकता इस बात की है कि उसकी विद्यालय की प्रारम्भिक शिक्षा में ही देश प्रेम, नैतिक मूल्य, पर्यावरण के प्रति सजगता, राष्ट्र के प्रति दायित्व, संस्कार, भारत की संस्कृति और संस्कार के अध्याय जोड़े जाएं ताकि उसका जीवन नैतिकता से पूर्ण हो। महापुरषों के चरित्र उनकी शिक्षा के अध्याय में जोड़ने की आवश्यकता है।
अल्पायु में खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारियों ने देश की स्वतंत्रता के लिए बलिदान दिया। ऐसे चरित्र उनकी शिक्षा का अध्याय होने चाहिए। क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता संग्राम के महानायक सुभाष चंद्र बोस की जीवनी युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है जिन्होंने आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण करके अंग्रेजों की नौकरी ठुकरा दी थी। इतना ही नहीं शिक्षा के साथ साथ जीविका उपार्जन के लिए कार्यशाला की नियमित व्यवस्था की जानी चाहिए।
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