कार्यस्थल पर महिला सुरक्षा
 इलमा अजीम 
दरिंदगी की किसी भी घटना पर जनआक्रोश सामने आना स्वाभाविक है। जांच में दोषी को सख्त से सख्त सजा की आवाजें भी उठती हैं। पर जांच प्रक्रिया में ढिलाई या तो आरोपियों को बचा ले जाती है या फिर उन्हें दण्डित करने में काफी वक्त लग जाता है। यहीं कारण है कि कोलकाता के सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में महिला डॉक्टर के यौन उत्पीडऩ व हत्या को लेकर देश भर के लोगों में गुस्सा है। यहां तक की सुप्रीमकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि देश एक और रेप केस का इंतजार नहीं कर सकता। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि हमारे यहां कार्यस्थल आखिर इतने असुरक्षित क्यों रहने लगे हैं? अस्पतालों में ऐसी घटनाएं होना ज्यादा गंभीर है। 


अस्पताल जैसे स्थान पर जहां मरीज खुद डॉक्टरों के भरोसे रहते हैं वहां कोई महिला डॉक्टर हैवानियत का शिकार हो जाए तो कानून-व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। प्रारंभिक जांच में चिकित्सक के साथ बलात्कार के साथ बर्बरता की भी पुष्टि हुई है। इस मामले में गिरफ्तार आरोपी भी अस्पताल से ही जुड़ा संविदा आधारित सिविक वालंटियर है। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट की मानें तो इस जघन्य काण्ड में कुछ और लोग भी शामिल हो सकते हैं। इसे अस्पताल परिसर में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ी चूक ही कहा जाएगा। क्योंकि सुरक्षा बंदोबस्त मजबूत होते तो ऐसी वारदात रोकी जा सकती थी। समय के बदलाव के साथ बड़ी संख्या में महिलाएं रात्रिकालीन ड्यूटी करने लगी हैं।


 ऐसी कई घटनाएं सामने आती रही हैं जब ड्यूटी के दौरान या फिर ड्यूटी पर आते-जाते वक्त महिलाएं समाजकंटकों की कुदृष्टि का शिकार हो जाती हैं। कानून व्यवस्था का खौफ होगा तो कार्यस्थल स्वत: ही सुरक्षित होंगे। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर लचर इंतजामों का फायदा उठाकर ही यौन अपराधी सक्रिय होते हैं। ऐसे में कामकाजी महिलाओंं को कार्यस्थलों पर ही नहीं, आवागमन के मार्गों पर भी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त किया जाना चाहिए।

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