बूढ़ी गंगा ने अपने अस्तित्व के खिलाफ लड़ी जा रही पहली जंग जीत ही ली

 न्यायालय ने माना कि बूढ़ी गंगा वास्तव में एक नदी है

 मेरठ। बरसों से अपने वजूद की जंग लड़ रही बूढी गंगा को पहला इंसाफ आखिरकार मिल ही गया। न्यायालय ने माना कि बूढ़ी गंगा वास्तव में एक नदी है। एनजीटी ने बूढ़ी गंगा को नदी का दर्जा दे दिया है। नदी का दर्जा मिलने के बाद बूढ़ी गंगा ने अपने अस्तित्व के खिलाफ लड़ी जा रही पहली जंग जीत ही ली। 

एक ओर जहां भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग हस्तिनापुर के अस्तित्व को ही नकार चुका था वहीं दूसरी ओर भूमाफियाओं की काली नजर भी बूढ़ी गंगा पर लगी हुई थी। पवित्र नदी को अपवित्र करने का गंदा खेल न जाने कब से खेला जा रहा था। शुक्र मनाइए कि इस गंगा की निर्मल धारा को प्रवाह देने के लिए नेचुरल साइंसेज ट्रस्ट के प्रयास रंग लाए और बूढ़ी गंगा को नदी का दर्जा प्राप्त हो गया। एनजीटी ने सभी दलीलों को खारिज करते हुए अपने आदेश में साफ कहा कि  यह निर्विवाद है कि बूढ़ी गंगा,  गंगा की ही सहायक नदी है। एनजीटी के यह आदेश बूढ़ी गंगा को संजीवनी देने के प्रयास में लगे असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंक भारती के लिए मानों किसी जंग को जीतने से कम न थे। न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि गंगा नदी के पुनरुद्धार, इसके  संरक्षण और प्रबंधन पर फोकस किया जाए। आदेश में ये भी कहा गया है कि प्राधिकरण द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश  2016 के तहत बूढ़ी गंगा के फ्लड प्लेन जोन का सीमांकन किया जाए। यहां यह उल्लेखनीय है कि 15  जनवरी को सिंचाई विभाग ने बूढ़ी गंगा को नदी न मानते हुए सिर्फ एक स्ट्रीम माना था। 5 अगस्त को   प्रियंक भारती ने बूढ़ी गंगा के नदी होने के प्रमाण सुपुर्द करते हुए अपनी बहस की थी। उधर दूसरी ओर नेशनल मिशन फॉर क्लीन  गंगा के डायरेक्टर जनरल सहित दो अन्य लोगों को पार्टी बनाने पर भी सहमति प्रधान कर दी है। इन सबके बीच एसडीएम मवाना द्वारा भी आदेश पारित किए गए हैं जिसमें बूढ़ी गंगा को महाभारत कालीन मान लिया गया है।

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