समग्र कार्यक्रम जरूरी
इलमा अजीम
प्रायः आर्थिक विकास को अधिक महत्व दिया जाता है पर अनुभव से पता चलता है कि समाज-सुधार के समुचित प्रयासों के बिना आर्थिक विकास अधूरा ही रह जाता है। इसमें अनेक विसंगतियां भी आ सकती हैं। अतः समाज-सुधार के समग्र कार्यक्रम पर व्यापक सहमति बनाकर इसे निरंतरता से आगे ले जाना चाहिए। इसमें एक बड़ी प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि सभी तरह के नशे को न्यूनतम करने के लिए निरंतरता से जन-अभियान चलने चाहिए। इस प्रयास में अग्रणी भूमिका महिलाओं की होनी चाहिए। महिलाओं के विरुद्ध जो विभिन्न तरह की हिंसा होती है, उसे न्यूनतम करने के प्रयास निरंतरता से होने चाहिए, पर केवल यही पर्याप्त नहीं है। महिलाओं को समाज में अधिक सम्मान मिले इसके लिए प्रयास होंगे तो महिला-विरोधी हिंसा अपने आप कम होगी। महिलाओं की गरिमामय स्थिति बनी रहे पर साथ में उन्हें समाज के सभी क्षेत्रों से अधिक खुलकर जिम्मेदारियां निभाने और कार्य करने के अवसर मिलने चाहिए। बेटियों की शिक्षा बढ़नी चाहिए व साथ में खेलों में, सांस्कृतिक गतिविधियों में भी बेहतर अवसर मिलने चाहिए। समाज में किसी के प्रति भी भेदभाव नहीं होना चाहिए। धर्म, जाति, रंग, नस्ल, लिंग, क्षेत्रीयता आदि किसी भी आधार पर भेदभाव अनुचित है। सभी मनुष्यों की समानता को हृदय से स्वीकार करना चाहिए व इस आधार पर सभी की भलाई के लिए सोचना चाहिए। इस तरह के विचारों के प्रसार से समाज तरह-तरह की संकीर्णता व उस पर आधारित द्वेष व आक्रामकता से मुक्त होगा। आस-पड़ोस में व गांव समुदायों में या शहरी मोहल्लों में अत्यधिक प्रतिस्पर्धा व ईर्ष्या के माहौल के स्थान पर आपसी सहयोग व मिल-जुलकर कार्य करने के माहौल को तैयार करना चाहिए। बच्चों को भी अत्यधिक प्रतिस्पर्धा की होड़ से बचाना चाहिए। सादगी के जीवन को नए सिरे से प्रतिष्ठित करना चाहिए। विशेषकर समारोहों, उत्सवों, शादी-ब्याह आदि में अधिक खर्च करने से बचना चाहिए। तकनीकी विकास व बदलावों के दौर में समाज में यह चेतना विकसित होनी चाहिए कि नए तकनीकी उपकरणों से जहां अनेक लाभ होते हैं वहां इनका दुरुपयोग भी हो सकता है। पर्यावरण रक्षा की जिम्मेदारी हम सभी की है व हमें इसे निभाना चाहिए। इस सोच का प्रसार निरंतरता से होना चाहिए।
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