विश्वास बहाली जरूरी
 इलमा अजीम 
एक तरफ जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव को लेकर गहमागहमी शुरू हो रही है, तो दूसरी तरफ आतंकियों ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। आतंकी हमलों और मुठभेड़ के बढ़ते मामलों से यह साफ संकेत मिल रहा है कि पाकिस्तान विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए आतंकियों की घुसपैठ भी हो चुकी है और वे मौका मिलते ही वारदात को अंजाम देने में लगे हैं।
गत माह रियासी में तीर्थयात्रियों से भरी बस पर आतंकी हमले ने भी यह साबित किया कि आतंकी क्षेत्र में खौफ पैदा करना चाहते हैं। वे सेना के शिविरों पर भी हमले कर रहे हैं। ताजा घटनाक्रम में राजौरी के मंजकोट में आर्मी कैंप के पास आतंकियों ने फायरिंग की। कुलगाम जिले में सर्च ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में छह आतंकी मारे गए लेकिन इस दौरान दो जवान भी शहीद हो गए। सुरक्षा बल आतंकियों के छिपे होने का इनपुट मिलने पर तुरंत सक्रिय्र हो जाते हैं और कार्रवाई करने के लिए खुफिया एजेंसियों के साथ समन्वय भी कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समस्या दशकों पुरानी है। इसके पीछे स्पष्ट रूप से पाकिस्तान है। पाकिस्तान में चुनाव के बाद बनी नई सरकार ने भारत के साथ संबंध सुधारने की इच्छा तो जताई है, लेकिन कश्मीर मुद्दे पर अपना पुराना राग नहीं छोड़ा है। इसलिए यह आशा करना व्यर्थ है कि पाकिस्तान का रवैया बदलेगा। इसलिए भारत को सीमा पर आतंकियों की घुसपैठ रोकने के साथ देश के भीतर सक्रिय आतंकियों के खिलाफ लगातार कार्रवाई करने पर ही ध्यान देना होगा। साथ ही पाकिस्तान को विश्व मंच पर लगातार बेनकाब करते रहना होगा। भारत सरकार इस दिशा में सक्रिय भी है, लेकिन आतंकियों को मिलने वाला स्थानीय सहयोग आतंकवाद के उन्मूलन में बड़ी बाधा है। इसलिए आतंकियों और उनकी मदद करने वाले स्थानीय सहयोगियों के खिलाफ सख्ती के साथ जम्मू-कश्मीर की जनता को देश की मुख्यधारा से जोडऩे के प्रयास तेज करने होंगे। आतंकी हमलों की बढ़ती वारदातों के बीच कानून-व्यवस्था बनाए रखना और क्षेत्र की जनता को यह संदेश देना जरूरी है कि वह बेखौफ होकर चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा ले सकती है। 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts