महंगाई पर लगे अंकुश
 इलमा अजीम 
आम लोगों को खाने-पीने के सामान की खरीदारी को लेकर भी सोचना पड़े तो साफ है कि महंगाई के मामले में पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है। सरकार को प्राथमिकता के आधार पर महंगाई पर काबू पाने की कार्ययोजना तैयार कर इस पर अमल भी जल्द से जल्द सुनिश्चत करना चाहिए। महंगाई पर लगाम कब कसेगी? यह सवाल अबूझ पहेली सा बन गया है। हाल ही वाणिज्य-उद्योग मंत्रालय ने मई में महंगाई के जो आंकड़े जारी किए हैं, उनसे एक और पहेली उभरी है कि क्या एक ही समय थोक महंगाई ज्यादा और खुदरा महंगाई कम हो सकती है? आमतौर पर जब चीजों के थोक भाव बढ़ते हैं तो खुदरा भाव भी बढ़ जाते हैं। मंत्रालय के आंकड़ों पर भरोसा करें तो मई में थोक महंगाई 15 महीनों के उच्च स्तर (2.61प्रतिशत) पर पहुंच गई, जबकि खुदरा महंगाई घटकर इस साल के सबसे निचले स्तर (4.75 प्रतिशत) पर आ गई। आंकड़ों का यह मायाजाल महंगाई से लगातार जूझ रहे आम आदमी की समझ से परे है। खास तौर से ऐसे वक्त में जब सब्जियों की बढ़ती कीमतें उसकी थाली पर भारी पड़ रही हैं। बाजार भाव का थाली पर सीधा असर पड़ता है। महंगी सब्जियों ने मध्यम वर्ग के साथ समाज के उस वर्ग की दुश्वारियां बढ़ा रखी हैं, जो असंगठित क्षेत्र में रोजगार या दिहाड़ी के सहारे रोजी-रोटी चलाता है। महंगाई पर काबू पाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने लगातार आठवीं बार रेपो रेट को 6.5त्न पर बरकरार रखा। फिर भी पिछले 16 महीनों में महंगाई लगातार बढ़ती गई। इस दौर में रोजमर्रा की जरूरी चीजों की कीमतों को काबू में रखने की जरूरत है। ऐसी नीतियों की दरकार है, जिनसे मध्यम और निम्न आय वर्ग वालों को चौतरफा महंगाई की मार से बचाया जा सके। पिछले कुछ साल में इन दोनों वर्गों की क्रय शक्ति कमजोर हुई है और वे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। आम लोगों को खाने-पीने के सामान की खरीदारी को लेकर भी सोचना पड़े तो साफ है कि महंगाई के मामले में पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है।

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