कांग्रेसी आरोपों की तार्किकता


इलमा अजीम 
निश्चित रूप से किसी भी लोकतंत्र की खूबसूरती इस बात में है कि सत्ता पक्ष विपक्षी राजनीतिक दलों को बराबर का मौका उपलब्ध कराये, जिससे चुनावी मुकाबला न्यायसंगत बना रह सके। यदि मुख्य विपक्षी दल यह आरोप लगाए कि ऐन चुनाव के वक्त पार्टी के खाते फ्रीज करके उसके चुनाव लड़ने और प्रचार करने में बाधा उत्पन्न हुई तो यह स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिये अच्छा नहीं है। निश्चित रूप से कांग्रेस के आरोपों की स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए। पार्टी का कहना है कि खाते फ्रीज होने से पार्टी के समक्ष उत्पन्न आर्थिक तंगी से पार्टी न विज्ञापन दे सकती है और न ही अपने नेताओं के लिये हवाई टिकट बुक करा पा रही है। उसका यह भी कहना है कि उसे रैली आयोजित करवाने में परेशानी हो रही है। हालांकि, कांग्रेस के आरोपों से इतर सरकार व आयकर विभाग के अधिकारियों की अपनी दलीलें हैं। उल्लेखनीय है कि गत 13 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट ने आईटीएटी के उस आदेश को बरकरार रखा था, जिसमें सौ करोड़ से अधिक के बकाया कर की वसूली के लिये कांग्रेस पार्टी को आयकर विभाग से जारी नोटिस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया गया था। हालांकि, हाईकोर्ट ने पार्टी को तब नये स्थगन आवेदन के साथ आईटीएटी का रुख करने की स्वतंत्रता दी थी। ऐसे में इस मुद्दे पर अंतिम राय बनाने से पहले सभी पक्षों के तर्कों पर विचार भी जरूरी है। सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ता ने इन आरोपों को पार्टी की हताशा का परिणाम बताया है। यह भी कि कांग्रेस के आरोपों से भारतीय लोकतंत्र की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। लेकिन इसके बावजूद यह तथ्य निर्विवाद है कि किसी भी लोकतंत्र में स्वतंत्र चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों को अनुचित ही कहा जाएगा। इससे चुनावों की पारदर्शिता व विश्वसनीयता पर आंच आ सकती है। विपक्षी दलों के इन आरोपों को भी बल नहीं मिलना चाहिए कि सरकार विपक्ष को दबाने के लिये सरकारी एजेंसियों व विभागों का इस्तेमाल कर रही है। निश्चित रूप से ऐसे आरोपों से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को लेकर अच्छा संदेश नहीं जाएगा।

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