मिनिमली इनवेसिव कार्डियक सर्जरी (एमआईसीएस): कार्डियक स्वास्थ्य देखभाल को फिर से परिभाषित करना

मेरठ  । भारत में दिल से जुड़ी बीमारियों के कारण करीब 28 फीसदी मौतें होती हैं. इस तरह के कार्डियो वैस्कुलर मरीजों के लिए बायपास सर्जरी एक बेहतर विकल्प होता है, जिसके रिजल्ट अच्छे आते हैं. खासकर, मरीज को अगर डायबिटीज हो तो उसके लिए ये और भी कारगर है. कार्डियक सर्जरी के क्षेत्र में शानदार इनोवेशन हुए हैं, जिनमें से एक है मिनिमल इनवेसिव बायपास सर्जरी यानी एमआईसीएस. ये सर्जरी गेम-चेंजर साबित हुई है जिसकी मदद से एडवांस कोरोनरी आर्टरी डिजीज के मरीजों को भी नई उम्मीद मिली है. मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत (नई दिल्ली) में एसोसिएट डायरेक्टर, यूनिट हेड सीटीवीएस डॉक्टर आदित्य कुमार सिंह ने इस सर्जरी के फायदों के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

रंपरिक कोरोनरी आर्टरी बायपास ग्राफ्टिंग यानी सीएबीजी का लंबे समय से बहुत ही प्रभावी रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है, क्योंकि सीएडी पूरी दुनिया में मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण बनी हुई है. इस सर्जरी में सीने में एक बड़ा चीरा लगाया जाता है. ऑपरेशन के बाद मरीज को काफी दर्द होता है, अस्पताल में ज्यादा दिन रहना पड़ता है और रिकवरी में भी ज्यादा वक्त लगता है. सीएबीजी की इस पारंपरिक तकनीक के विकल्प के रूप में मिनिमली इनवेसिव तकनीक से की जाने वाली प्रक्रिया ने चीजें काफी आसान की हैं.

बायपास सर्जरी को मिनिमली इनवेसिव तरीके से करना एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है. ये सर्जरी कई कारणों की वजह से प्रचलित हुई है. इसके कई फायदे हैं जैसे- इसमें छोटा कट लगता है, ऑपरेशन के बाद दर्द कम होता है, अस्पताल में कम वक्त रुकना पड़ता है और मरीज की रिकवरी काफी तेजी से होती है.

एक कार्डियक सर्जन के रूप में मुझे वो क्रांति देखने को मिली है जो एमआईसीएस की मदद से मरीजों के जीवन में बदलाव ला रही है. हर संभव मरीज के लिए एमआईसीएस तकनीक को उपलब्ध कराने की दिशा में आगे बढ़ते हुए हम सर्जिकल इनोवेशन में काफी आगे चले गए हैं.

एमआईसीएस की स्वीकार्यता ज्यादा क्यों हुई?

छोटे कट: परंपरागत प्रक्रिया की तुलना में एमआईसीएस में छोटे चीरे लगाए जाते हैं. आमतौर पर इनकी लंबाई 2-3 इंच होती है. ये छोटे चीरे इंफेक्शन का खतरा कम करते हैं और इसकी वजह से निशान भी उतने नहीं आते हैं जो पता चलें.

कम दर्द: क्योंकि सर्जरी करने के लिए सीने में छोटे चीरे लगाए जाते हैं, इसलिए इस प्रक्रिया में दर्द भी कम महसूस होता है. इसका फायदा ये होता है कि दर्द कम करने के लिए स्ट्रॉन्ग टैबलेट नहीं लेनी पड़ती, जिससे मरीज को राहत मिलती है.

तेजी से होती है रिकवरी: छोटे चीरों के कारण मरीज की रिकवरी पर भी असर पड़ता है और उसे कम वक्त तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है. कई मरीज एक हफ्ते के अंदर ही अपनी सामान्य गतिविधियों में लौट जाते हैं, जबकि परंपरागत सीएबीजी सर्जरी में महीनों का वक्त लग जाता है.

अस्पताल में कम भर्ती रहना: मिनिमली इनवेसिव सर्जरी में चीरे ज्यादा बड़े नहीं लगाने पड़ते हैं जिससे दर्द कम रहता है और मरीज की रिकवरी तेजी से होती है. इसका फायदा ये होता है कि मरीज को ज्यादा वक्त तक अस्पताल में भी नहीं रहना पड़ता है और उसकी छुट्टी जल्दी हो जाती है. इससे अस्पताल का खर्च भी बचता है.

एक ध्यान रखने वाली बात ये है कि एमआईसीएस प्रक्रिया सभी मरीजों के लिए मुफीद नहीं होती है. मुश्किल कोरोनरी धमनी रोग वाले कुछ मरीजों के लिए पारंपरिक सीएबीजी की भी आवश्यकता हो सकती है.

हालांकि, इस बात पर कोई शक नहीं है कि मिनिमल इनवेसिव बायपास सर्जरी हार्ट के मामलों में एक नई परिभाषा लिख रही है. एमआईसीएस वो प्रक्रिया है जिससे आशा मिलती है, असुविधा कम होती है. यानी जो पारंपरिक ओपन-हार्ट सर्जरी में परेशानियां होती हैं, उससे इसमें मुक्ति मिलती है. इस तकनीक में लगातार तरक्की हो रही है और हम आगे बेहतर परिणामों की उम्मीद कर सकते हैं. कार्डियक सर्जरी नए रास्ते अपना रही है, और एमआईसीएस अब तक की सबसे अच्छी खोज है!

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