...और आँख मिलाने के काबिल नहीं हैं!
- कृष्ण कुमार निर्माण
किन्हीं अपरिहार्य कारणों से पता नहीं कब और कैसे अलसुबह उठने का जुनून सवार हो गया? वैसे जहाँ अलसुबह उठने के कई नुकसान हैं,वहीं फायदे भी कम नहीं है। आप जल्दी उठकर इधर-उधर ताका-झांकी कर सकते हैं। पूरे मुहल्ले को यह बात गर्व से बता सकते हैं कि देखो! हम कितना जल्दी उठते हैं।वैसे भी कहावत है कि सोवत है जो खोवत है और जागत है सो पावत है। मुझे नहीं पता कि कहावत कहने वाले ने अलसुबह उठकर क्या कुछ पाया होगा? पर हमने आज तक कुछ नहीं पाया है,सिवा नींद खोने के।


वैसे मेरे जल्दी उठने से कइयों को शक है कि कहीं मेरी कोई माशूका तो नहीं है,क्योंकि अक्सर जल्दी उठने वाले आशिकमिजाज हुआ करते हैं वरना सज्जन पुरुष तो देर से ही उठते हैं।पर सच पूछिए मेरी उम्र के लोग इश्क-विश्क नहीं फरमाते और माशूका-वाशुका नहीं रखते क्योंकि इस उम्र में तो आदमी ठीक-ठाक रह ले,यह बड़ी बात है।पर इस बार गत दिवस ही अलसुबह उठा तो आदतन घर का मेन गेट खोला,तो दिल धक्क से रह गया कि दो कागज मुड़ी-तुड़ी अवस्था में पड़े दिखे।एक बारगी तो उन कागजों को हाथ लगाने की मेरी भी हिम्मत नहीं हुई?ख्याल पता नहीं कहाँ-कहाँ दौड़ लगाने लगे?किसी ने मेरे नाम प्रेम-पत्र लिख दिया होगा तो,यह सोचकर दिल बल्लियाँ उछलने लग गया।पर इस उम्र में कौन लव-लैटर लिखेगा?फिर ख्याल आया कि किसी ने जादू-टोना कर दिया होगा तो.....।फिर ख्याल आया कि हो सकता ईडी का नोटिस हो मगर अपन के पास तो कुछ भी नहीं है।
पता नहीं कब और कैसे तरह-तरह के ख्यालों के बीच उन कागजों को उठा ही लिया कि तत्काल धर्मपत्नी आ धमकी।एकदम खुद को संयत किया कि वो तो भड़क गई। अब उसका भड़कना तो सवालों की बौछार से सरोबार होना होता है। मरता क्या ना करता। मैंने भी अविलंब वो दोनों कागज जिस अवस्था में उठाए थे,उसी अवस्था में उसे पकड़ा दिए।एकबारगी तो मैडम महोदया अपनी विश्वपरिचित शैली का परिचय देते हुए अपने माथे पर त्यौरियां चढ़ाने लगी और मैं अंदर से कांपने में लगा कि कहीं किसी दुश्मन ने मेरे जवानी के दिनों की पोल ना खोलकर रख दी हो और बदला लेने का काम किया हो, क्योंकि जो बीत गई सो बात गई पर पत्नी तो,पत्नी ठहरी।
खैर,पत्नी साहिबा ने पूरे आवेश के साथ उन मुड़े-तुड़े कागजों को खोलते हुए उबलती हुई आंखों से मुझे ऐसे निहारा कि ऐसी कातिल आँखें तो उनकी कभी उन दिनों में भी नहीं देखी गई जब जरूरत थी।खैर,जैसे ही उन्होंने कागज में लिखी हुई बातों को पढ़ना शुरू किया कि मेरे दिल की धड़कनें जबाब देने को तैयार थी।पर....पर........ ये क्या? सब कुछ सोचा-सोचाया फुस्स हो गया क्योंकि उस तथाकथित पर्चे में लिखा था कि हमें जिताइये,हम आपका जीवन स्वर्ग बना देंगे। हमें वोट दीजिए हम रुपया नहीं गिरने देंगे।
हमें जिताइये हम ये कर देंगे, वो कर देंगे। ऐसा कर देंगे,वैसा कर देंगे आदि-आदि। श्रीमती जी का सारा पारा, ब्लड प्रेशर की तरह लुढ़क कर नीचे आ गिरा,इतना लुढ़का कि उसने सेंसेक्स को भी पीछे छोड़ दिया।मैंने राहत की सांस ली और मोहतरमा झट से वो दोनों कागज मेरे हाथ में पकड़ाते हुए बोली कि ये तो तमाम बातें ऐसी हैं जो पति के द्वारा किए गए वादे हैं, जो काम कढ़वाने के लिए कर लिए जाते हैं मगर मरणांतक पूरे नहीं होते। जल्दी-जल्दी में यह भी बोल गई कि ये तमाम वादे उस प्रेमी की तरह प्रेमिका से किए हुए हैं ताकि वो जाल में फंसे और वायदा तो पूरा होगा ही नहीं क्योंकि असमान से तारे तोड़कर कोई ला सकता है भला? पर पता नहीं मुझे क्यों लगा कि गृहमन्त्री महोदया ने अपने यौवन के संबधों का जिक्र तो नहीं कर गई पर मेरी इतनी औकात कहाँ कि उससे कुछ भी बोल दूँ।



वैसे चुनावी माहौल में दलों और उनके कार्यकर्ताओं को ऐसा नहीं करना चाहिए कि रात्रि के अँधेरे में किसी के घर के बार पर अपने पर्चे फेंक कर जाएं। एकदम आकाशवाणी हुई कि अरे ओ मूर्ख, दिन के उजाले में दल और उनके कार्यकर्ता आजकल आँख मिलाने के काबिल कहाँ रहे हैं,सो रात में ही अपना काम कर जाते हैं?
(स्वतंत्र लेखक,शिक्षाविदऔर साहित्यकार, करनाल)

No comments:

Post a Comment

Popular Posts