समय रहते डायग्नोसिस होने से बीमारी का उपचार कर प्रभाव को कम किया जा सकता है- डा अमित 

जन्मदोष जागरूकता माह में दी अहम दी जानकारी 

 मेरठ।  प्रतिवर्ष  विश्व भर में करीब एक कराेड़ व देश में 17 लाख शिशु जन्म दोष के साथ पैदा होते है।  जन्म दोष (बर्थ डिफेक्टस) से होती है 7-8% नवजात मृत्यु । समय से उचित जाँच नवजात शिशु मृत्यु दर कम कर सकते है। यह बच्चे नवजात मृत्युदर का 7% हिस्सा होते है। जिनमे से 40% बच्चो की नेओनाटेल पीरियड मे ही मृत्यु हो जाती है। यह बातें न्यूटिमा हॉस्पिटल में डा अमित उपाध्याय ने जन्मदोष  जागरूकता माह में मीडिया को शेयर करते हुए जानकारी दी। 

उन्हाेेंने बताया प्रतिवर्ष जन्मदोष जागरुकता माह मार्च में मनाया जाता है इस वर्ष का विषय बांधाओ को तोडना : जन्मदोष वाले बच्चो के लिए समावेशी समर्थन है। जन्म दोष माह का उद्देश्य जन्म दोष के रोकथाम, शीघ्र पहचान और समय पर प्रबंधन के बारे मे जागरूकता फैलाना है। बाल मृत्युदर को कम करने के लिए प्रीमेच्युरिटी इन्फेक्शन, जन्म के उपरान्त देर से रोना (Asphyxia) के अलावा जन्मदोषों पर भी ध्यान देना आवश्यक है। 6-8% नवजात मृत्यु बच्चे में बनावटी दिक्कत के कारण होती है। इसमे से 40% मृत्यु पहले माह में ही हो जाती है।

सभी तरह के जन्म दोषों का बचाव व् इलाज संभव नही है परन्तु कई तरह के जन्म दोष जैसे न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट, जन्मजात रूबेला सिंड्रोम, डाउन सिंड्रोम, जन्मजात हृदय रोग आदि गर्भावस्था के दौरान उचित देखभाल करके बचाव किया जा सकता है। कुछ जन्म दोष बाहरी रूप से देखने पे डायग्नोसिस किये जा सकते है जैसे कटा होठ एवं लालू, क्लब फूट, हांथो एवं पैरो का पूरा ना बनना कुछ जन्म दोष का पता बाहरी रूप से नहीं लगाया जा सकता व् उनके लिए स्पेशल टेस्ट्स की आवश्यकता रहती है। जैसे हृदय की बीमारी, सॉस एवं खाने की नली में कनेक्शन, एनल एट्रेसिया आदि । नवजात शिशु की जन्म के तीसरे दिन दाहिने बाह के ऑक्सीजन चेक कर घातक व् जानलेवा हृदय रोगों से जान बचा सकते है। खून में टी० एस० एच० (TSH) टेस्ट कर दिमाग की कमजोरी से बचा जा सकता है।

 जन्मदोष गर्भावस्था के दौरान हो सकता है विकसित 

जन्मदोष एक सामाजिक विषय है जो गर्भावस्था के दौरान विकसित हो सकता है और जो शिशु के जन्म के समय या बाद में देखा जा सकता है (गर्भावस्था के पहले तिमाही में गर्भवस्था से माँ के फोलिक एसिड की गोली खाने से बच्चे की न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (रीड कि हण्‌डी की बनावटी कमी से) को बचा जा सकता है।

  हर तीसरे माह ट्रिपल मार्कर टेस्ट आवश्य कराएं 

 माँ में 30 वर्ष से अधिक आयु में गर्भधारण करने वाली महिलाओं को गर्भ के तीसरे माह में ट्रिपल मार्कर टेस्ट कराना चाहिए - इससे डाउन सिंड्रोम नामक बीमारी की जानकारी मिल सकती है। ब्लड टेस्ट द्वारा रूबेला इन्फेक्शन व डाउन्स सिंड्रोम के रिस्क का पता लगाया जा सकता है । गर्भावस्था के दौरान इको कार्डियोग्राफी करके हृदय की गंभऔर गड़बड़ी को डिटेक्ट किया जा सकता है एवं समय रहते डायग्नोसिस होने से उस बीमारी का पूर्ण उपचार या उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। उन्होंने बताया  हर गर्भवती महिला एवं उसके परिवार को जन्मदोषों  के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए ताकि उन्हें उचित देखभाल मिल सके।

 इसी मोके पर आई. ए. पी प्रेसिडेंट डॉ. पी़.पी. एस. चौहान, आई. पी. सेक्रेटरी डॉ. शरद जैन, वरिष्ठ नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. पी. डा. अमित उपाध्याय, डॉ. प्रियंका गुप्ता, डॉ. विजय सिंह, डॉ. दीपक गोयल, डॉ. विनोद अहुजा, डॉ. तरुण गोयल आदि मौजूद रहे।

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