कम न होने पाए बुजुर्गों का सम्मान

- विजय गर्ग
बीते दिनों झारखंड हाईकोर्ट ने एक पारिवारिक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि बुजुर्ग सास, दादी सास की सेवा करना बहू का कर्तव्य है। यह भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। अदालत ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51-ए में निहित मौलिक कर्तव्यों, यजुर्वेद और मनुस्मृति का भी हवाला दिया। उसने यजुर्वेद का जिक्र करते हुए कहा हे महिला, तुम चुनौतियों से हारने के लायक नहीं हो, तुम सबसे शक्तिशाली चुनौती को हरा सकती हो । मनुस्मृति का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस परिवार की महिलाएं दुखी होती हैं, वह परिवार जल्द ही नष्ट हो जाता है। जहां महिलाएं संतुष्ट रहती हैं, वह परिवार हमेशा फलता-फूलता है। वहीं अनुच्छेद 51- ए का उल्लेख करते हुए कहा, "मौलिक कर्तव्यों में हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देने और संरक्षित करने का प्रविधान है।"



देखा जाए तो हमारा समाज पुरुष और महिलाओं देनों से कुछ उम्मीदें करता है। विवाह के बाद पुरुष से उम्मीद की जाती है कि वह पैसे कमाकर अपना घर चलाएगा पत्नी की देखभाल करेगा और उसकी जरूरतों का ख्याल रखेगा। वहीं महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वह पति, बच्चों और ससुरालवालों की अच्छे . से देखभाल करेगी। बुढ़ापे में सास-ससुर की सेवा करेगी।
एक परिवार की तरक्की में बुजुर्गों का बड़ा योगदान होता है। वे परिवार की रीढ़ होते हैं। घर में बुजुर्गों के रहने से बच्चों के अलावा अन्य लोगों को भी सहारा रहता है। बुजुर्ग स्वजनों में संस्कार निर्माण में सहायक होते हैं। उनकी सूझबूझ से परिवार पर आने वाली हर मुश्किल दूर होती है। बुजुर्ग हमारे लिए भगवान से कम नहीं होते हैं, जिनके घर में बुजुर्ग होते हैं, वे सबसे खुशनसीब होते हैं। उनके होने से बच्चों को माता-पिता के साथ-साथ दादा-दादी का भी प्यार मिलता है। उनके बिना खुशहाल परिवार की कल्पना नहीं की जा सकती है। यही कारण है कि खुशहाल परिवार के लिए घर में बुजुर्गों का होना बहुत जरूरी माना गया है, क्योंकि वे परिवार को एक सूत्र में बांधकर ले चलते हैं। बुजुर्गों के साथ रहना हमारी संस्कृति रही है। उनसे अलग रहकर कोई भी परिवार तरक्की नहीं कर सकता है।


 इसलिए हमें बुजुर्गों की सेवा करने का मौका गंवाना नहीं चाहिए। जिस प्रकार माता-पिता कठिन परिस्थितियों में भी अपने बच्चों का बहुत ही प्यार से पालन-पोषण करते हैं । उसी प्रकार युवाओं को भी बुजुर्गों की देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए। युवाओं को बुजुर्गों के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करने की जरूरत है। अगर वे बुजुर्गों के साथ उचित व्यवहार नहीं करेंगे तो आगे चलकर उनको भी इस दौर से गुजरना पड़ सकता है।
(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य मलोट)

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