सुधार की जरूरत
इलमा अजीम
यह परेशान करने वाली बात है कि भ्रष्टाचार के मामले में भारत की वैश्विक रैंकिंग फिर फिसली है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की हाल में जारी रिपोर्ट में भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत का स्थान दुनिया के 180 देशों में 93वां आंका गया है। वहीं संस्था द्वारा निर्धारित हमारे समग्र स्कोर में कोई बदलाव नहीं है। बीते वर्ष भारत का स्थान 85वां आंका गया था। लिहाजा विश्व रैंकिंग में यह स्थिति आठ स्थान खिसकी है। हालांकि, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का भ्रष्टाचार मापने का पैमाना कितना पारदर्शी है और वह पश्चिमी ताकतों के दबाव से कितना मुक्त है, कहना कठिन है,लेकिन फिर भी रिपोर्ट हमें आत्ममंथन का मौका तो देती है। दरअसल, संस्था इस सूचकांक में विशेषज्ञों और व्यापारिक लोगों की धारणा के आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार के स्तरों को केंद्र में रखकर दुनिया के 180 देशों और क्षेत्रों की रैंकिंग निर्धारित करती है। साथ ही इस रैंकिंग के लिये शून्य से सौ तक के पैमाने का प्रयोग किया जाता है। यानी जहां ज़ीरो है वह सर्वाधिक भ्रष्ट है और सौ सर्वाधिक ईमानदारी का सूचक है। इस पैमाने पर बीते वर्ष में भारत का समग्र स्कोर 39 रहा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2022 में हमारा समग्र स्कोर चालीस था। वहीं भ्रष्टाचार के दलदल में फंसे पाकिस्तान का स्थान दक्षिण एशिया में 133 व श्रीलंका का स्थान 115 निर्धारित किया गया। जिसमें राजनीतिक अस्थिरता व कर्ज के दबाव को भी कारक बताया गया है।  निस्संदेह, किसी भी देश के लिये वैश्विक भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में ऊंचे स्तर पर रहना चिंता की बात होनी चाहिए। यह अवसर आत्ममंथन का भी होता है कि क्यों उसके लिये वैश्विक स्तर पर ऐसी धारणा बनी है। यह भी कि हम सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को कैसे कम कर सकते हैं। यह स्थिति हम सब की चिंता का विषय होनी चाहिए कि क्यों हम सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में विफल हो रहे हैं। कई बार राजनेताओं और बहुधंधी लोगों के यहां नोटों के जो पहाड़ ईडी और आयकर विभाग की कार्रवाई में बरामद होते हैं, वे एक आम आदमी को विचलित करते हैं। आम आदमी सोच में पड़ जाता है कि एक ईमानदार व्यक्ति हाड़-तोड़ मेहनत के बाद दो जून की रोटी और एक छत का जुगाड़ मुश्किल से कर पाता है, वहीं भ्रष्ट लोग नोटों के अंबार लगा देते हैं। वे कौन से व्यवस्था के छिद्र हैं जो भ्रष्ट लोगों को अकूत संपदा जुटाने का मौका देते हैं। कैसे राजनीति में आने के बाद लोग रातों-रात करोड़पति हो जाते हैं। कैसे लोग मोटा पैसा चुनाव में खर्च करने के लिये जुटाते हैं और फिर चुनाव जीतकर धन का तीन-तेरह करते हैं। निश्चित रूप से भ्रष्टाचार की कीमत समाज में ईमानदार लोगों को ही चुकानी पड़ती है। ये उस व्यक्ति के साथ अन्याय ही है। हमें यह विचार करना होगा कि आने वाली पीढ़ियों के लिये हम कैसा भारत छोड़कर जाएंगे, जहां उन्हें कदम-कदम पर भ्रष्टाचार से जूझना पड़ेगा। 

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