देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
- जगतपाल सिंह
भारत रत्न से हिंदुत्व की विचारधारा के लिए सक्रिय रहे और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य लालकृष्ण आडवाणी को सम्मानित किया जाएगा। वयोवृद्ध भाजपा नेता पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी का राजनीतिक सफर शून्य से शिखर का रहा है। लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत वर्ष 1951 में जनसंघ से शुरू की थी और बहुत उतार-चढ़ाव उन्होंने देख और भाजपा मार्गदर्शक मंडल में रहे पांच बार लोकसभा और चार बार राज्यसभा सांसद रहे चुके हैं।
तीन बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के अलावा प्रधानमंत्री स्वर्गीय मोरारजी देसाई की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री और अटल बिहारी वाजपेई सरकार में गृहमंत्री व उप प्रधान मंत्री रहे। लालकृष्ण आडवाणी को भारत सरकार ने 2015 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया था जिस समय उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था उस समय ही देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के वो वास्तविक पात्र थे। सरकार का ध्यान गया भले ही देरी से गया हो देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किए जाने की जब घोषणा की गई तो इसकी चौतरफा सराहना हो रही है।
इस पर स्वयं देश के उप प्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी का कहना है कि यह सम्मान आदर्श व सिद्धांतों का है मैं अत्यंत विनम्रता व कृतज्ञता के साथ सम्मान स्वीकार करता हूं। यह व्यक्ति के रूप में न सिर्फ मेरा, बल्कि उन आदर्शोंव सिद्धांतों का भी सम्मान है, जिसका पालन करने का मैंने प्रयास किया ।जिस चीज ने मेरे जीवन को प्रेरित कियाहै, वह आदर्श वाक्य है, यह जीवन मेरा नहीं है मेरा जीवन मेरे राष्ट्र के लिए है। उनके इन शब्दों के भाव ने यह साबित कर दिया उन्होंने राजनीति को सिद्धांतों के साथ करते हुए वह शिखर प्राप्त की है जिसको हमेशा याद किया जाता रहेगा उनके कर्म और संघर्ष के साथ हिंदुत्व की विचारधारा को उस शिखर तक पहुंचा दिया जिसका परिणाम आज देखने को मिल रहा है।
लालकृष्ण आडवाणी की पहचान जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की दिशा में दशा बदलने वाले कद्दावर हिंदूवादी नेता की रही है। आडवाणी के नेतृत्व में भारतीय राजनीति की धूरी में राष्ट्रवाद व हिंदुत्व को जगह दी, बल्कि केंद्र में कांग्रेस के विकल्प के तौर पर भी भाजपा को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। लगभग साढे तीन दशक पूर्व राम मंदिर आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में उनका अहम योगदान रहा है।
लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के लिए सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा कर पूरे देश को जागरुक करते हुए संदेश दिया था उनकी श्री राम रथ यात्रा का ही कमाल था कि देश की राजनीति में ने सिर्फ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे को एक बहुत बड़ा स्थान दिया बल्कि सदियों से राजनीति हाशिएपर खड़ा राम मंदिर का मुद्दा राजनीति के केंद्र में आ गया था लालकृष्ण आडवाणी ही भाजपा के ऐसे नेता और व्यक्तित्व है जिन्होंने जनसंघ और भाजपा को अपने खून पसीने से सीच कर उस मुकाम पर पहुंचा कर सत्ता सीन किया है जो सदैव स्मरणीय बना रहेगा।
एक समय था जब देश की आयरन लेडी पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को महज दो सीट मिली थी। उसके अगले चुनाव में राम मंदिर मुद्दे पर आडवाणी की रथ यात्रा ने पार्टी को 86 सीट पर पहुंचा दिया था और अब पूर्ण सत्ता में लालकृष्ण आडवाणी की टीम जिसमें सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, मुरली मनोहर जोशी आदि ऐसे नेता थे जिन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में पार्टी के लिए संघर्ष कर यूं तो भाजपा की पहचान और चर्चित करने में आडवाणी और वाजपेई की जोड़ी न सिर्फ पांच दशकों तक भाजपा की मुख्य पहचान रही, बल्कि भारतीय राजनीति की सबसे सशक्त और चर्चित जोड़ी माना गया।
दर्शकों तक बाजपेई बीजेपी का उदारवादी चेहरा माने गए तो वही लालकृष्ण आडवाणी कट्टर हिंदूवादी और राष्ट्रवादी चेहरे के रूप में जाने और पहचाने जाते रहे हैं । भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिस प्रकार से कार्य कर रही है उससे यह कहना भी न्याय चित होगा कि आने वाले कल में मुरली मनोहर जोशी देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के पात्र होंगे ? यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है।
भाजपा सरकार की पूरी राजनीति जिस जोड़ घटा के साथ चल रही है और सामाजिक समरसता को लेकर भी कार्य कर रही है जिसका उदाहरण बिहार के सामाजिक न्याय के पुरोधा और जननायक कपूरी ठाकुर मरणोपरांत को देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न देने की घोषणा के साथ ही बिहार की राजनीति में उथल-पुथल हो गया। परिणाम स्वरूप पाला बदलकर इंडिया घटक के नीतीश कुमार एनडीए के साथ आकर एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए। उससे यह कहा जा सकता है कि भाजपा का जो दावा है चार सौ पार का क्या वह पूरा हो सकता है?
देश की राजनीति भी केवल सत्ता केवल सत्ता के अधीन ही घूमती नजर आ रही है। अबसे पूर्वी सरकारे जो रही उन्होंने भी कुछ इस तरह ही सत्ता का भोग किया परिणाम स्वरूप उसका प्रतिस्वरूप अब देखने को मिल रहा है। आजादी के बाद देश की लोकतंत्र व्यवस्था में बहुत कुछ बदलाव देखने को मिला है और यह कहना भी न्याय संगत होगा कि भविष्य में भी इसमें बहुत बड़िपरिवर्तन होते नजर आ रहा है।
इस सब के बावजूद भी देश की निर्वाचित सरकार को हमेशा यह ध्यान रखना होगा कि समाज की अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को आगे लाना होगा और शासन प्रशासन में उसकी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी और भारतीय संस्कृति और अध्यात्म को जन-जन तक पहुंचाना होगा और उसकी रक्षा सुरक्षा करनी होगी और इन सबसे ऊपर संविधान को सर्वोपरि मानकर उसके तहत सत्य और न्याय पर चलना होगा तभी यह देश विश्व गुरु बनेगा।
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