आस्था संग रोजगार
इलमा अजीम
भारत एक अध्यात्म व संस्कृति प्रधान देश रहा है। हमारी सांस्कृतिक विरासत ने सदियों से हमें आगे की राह दिखायी है, जिसका मकसद अंतत: मानव कल्याण ही रहा है। समाज में नैतिक सत्ता कायम करने में उसकी भूमिका रही है, जो किसी भी सभ्य समाज के लिये अपरिहार्य शर्त भी रही है। अयोध्या आज पूरी दुनिया की चर्चा के केंद्र में है और आगामी 22 जनवरी का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज होने वाला है। निस्संदेह, राम भारतीय समाज के आदर्श पुरुष रहे हैं, एक शासक के तौर पर भी और एक परिवार के रूप में भी।
उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में मर्यादा स्थापित की। यह भारतीय समाज की खूबसूरती है कि अंतत: सभी वर्गों ने कोर्ट के आदेश का सम्मान करके राममंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। निस्संदेह, यह राजनीति केंद्रित विषय नहीं है यह बहुसंख्यक समाज की अस्मिता से जुड़ा प्रश्न है। लेकिन किसी संप्रदाय विशेष की कीमत पर नहीं। यह सुखद ही कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने अयोध्या के पुरातन वैभव के संवर्धन के साथ विकास के कई कार्यक्रमों की आधारशिला रखी। निस्संदेह, यह तार्किक ही है कि जब स्थान विशेष के लिये बड़ी विकास योजनाओं को मूर्त रूप दिया जाता है तो आसपास के कई जनपद उससे लाभान्वित होते हैं। अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के क्रम में प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों पंद्रह हजार सात सौ करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास किया। जिसमें रामपथ, भक्ति पथ के निर्माण के साथ ही सरयू नदी में गंदा पानी जाने से रोकने वाली योजनाओं को मूर्त रूप दिया जाएगा। वहीं दूसरी ओर अयोध्या के लिये वंदे भारत, नमो भारत व अमृत भारत ट्रेनों का लाभ श्रद्धालुओं के साथ क्षेत्र के लोगों को भी मिलेगा। जाहिर बात है कि करोड़ों लोगों की आस्था स्थली पर देश-विदेश से लोग पहुंचेंगे। साथ ही अयोध्या के आस्था के साथ बड़े पर्यटक स्थल के रूप में विकसित होने के कारण विदेशी सैलानियों का आवागमन होगा। अयोध्या में रेलवे स्टेशन संवरने व नया हवाई अड्डा बनने से पूर्वी उत्तर प्रदेश में विकास व रोजगार के नये अवसर विकसित होंगे। विश्वास किया जाना चाहिए कि पौराणिक विवरणों में जिस समृद्धि व संपन्नता की बात की गई थी, उसकी झलक शायद नये विकास कार्यों से दिख सके। लेकिन जरूरी है कि ये विकास राजनीतिक दावेदारी का प्रतीक न बनकर क्षेत्र के लोगों के सर्वांगीण विकास का पर्याय बने।
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