प्राणवंत अयोध्या

 इलमा अजीम
अयोध्या तो हमेशा प्राणवंत रही है। उसकी चेतना और स्पंदन में ‘देवत्व’ बसा है। अयोध्या भारत की ही नहीं, सनातन के आस्थावानों की आध्यात्मिक राजधानी है। जहां सरयू माता है, देवत्व का वास है, वहां से श्रीराम कहां जा सकते हैं? भौतिक वनवास उनके मानव-काल का एक दौर था। सांप्रदायिकता और सियासत ने अयोध्या को दिखावटी तौर पर अभिशप्त किया था। विध्वंस था, अतिक्रमण था, विदेशी लुटेरों ने कब्जे किए थे और मंदिर को मस्जिद बनाने का दुस्साहस किया था, लेकिन सरयू मां जीवित थीं, तो श्रीराम कण-कण में क्यों नहीं बसे थे? अदृश्य और ओझल होना भी देवत्व था, प्रभु राम की लीला थी, एक और अग्नि-परीक्षा थी, लिहाजा हमारे आराध्य तो अयोध्या में ही थे। यह कथन सांस्कृतिक तौर पर उचित नहीं है कि हमारे राम अयोध्या लौटे हैं। 



वनवास से अयोध्या लौटे हैं। अयोध्या और आराध्य एकत्व के भाव में निहित हैं। बेशक भगवान विष्णु ने मानव-रूप में जन्म अयोध्या के राज-परिवार इक्ष्वाकु वंश में लिया था, लेकिन उनका अवतरण वैश्विक रहा है। करीब 55 देशों में प्रभु राम की मान्यता है। आज भी अमरीका के करीब 1100 मंदिरों में ‘रामोत्सव’ मनाया गया। उसके भौतिकतावादी शहर भी ‘राममय’ हैं और आपस में ‘जय सियाराम’ के उद्घोष के साथ एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। ब्रिटेन के 500 मंदिरों में ‘श्रीराम विजयोत्सव’ मनाया गया। प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी मंदिर जाकर ‘रामायण का पाठ’ सुन सकते हैं। नीदरलैंड्स सरीखे देश में ‘राम मंदिर के चित्र’ वाले डाक टिकट जारी किए गए हैं। यूरोप के कई देश भी ‘राममय’ हैं। इसका स्पष्ट निष्कर्ष है कि इतने व्यापक हैं श्रीराम! भारत की प्रत्येक दिशा में राम आराध्य हैं और 350 से अधिक ‘रामायण’ सृजित की गई हैं। राम के लिए जितना महत्त्व अयोध्या का है, उतना ही ‘रामेश्वरम्’ का है। बहरहाल अयोध्या के राम मंदिर में आराध्य की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही 492 साल लंबी प्रतीक्षा, पीढिय़ों की अनवरत लड़ाई और कुर्बानियों, राजनीतिक विरोधाभासों, अदालती पूर्वाग्रहों और कुतर्कों के दौर समाप्त हो रहे हैं और धर्मनिरपेक्षता का मूल भाव लिए श्रीराम स्थापित हुए हैं। यह प्रभु राम और उनकी दैवीय स्वीकृति का ही प्रभाव है कि लगातार नास्तिक भाव वाले राजनेता और राजनीतिक दल आज राम को स्वीकार रहे हैं, शंकराचार्यों की महत्ता स्थापित कर रहे हैं और 22 जनवरी के बाद कभी भी राम मंदिर जाकर दर्शन करने की बात कह रहे हैं। यह भारतीय सभ्यता, संस्कृति, अध्यात्म, आस्था और आराध्य की असीम, अनंत, अनश्वर, अंतहीन विजय है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts