औलाद हो तो ऐसी  हो 

रोबोटिक ट्रांसप्लांट सर्जरी का उपयोग करके बेटे ने अपने लिवर का एक हिस्सा दान कर पिता को नया जीवन दिया 

मेरठ। मेरठ के रहने वाले 47 वर्षीय ठेकेदार अवधेश शर्मा पोर्टल हाइपरटेंशन के साथडिकंपॅसेटेड क्रॉनिक लिवर डिजीज नामक बीमारी से पीड़ित थे, जिनका अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में सफलतापूर्वक । लिवर ट्रांसप्लांट किया गया। अवधेश के: 20 वर्षीय बेटे उत्कर्ष शर्मा ने 'ने उन्हें फिर से सामान्य जीवन जीने की नई उम्मीद दी, जिन्होंने रोबोटिक लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी की मदद से अपना लिवर डोनेट कर पिता को नए जीवन का उपहार दिया।

अवधेश पोर्टल हाइपरटेंशन के साथ डिकंपेंसेटेड क्रोनिक लिवर डिजीज से जूझ रहे थे। इस स्थिति के कारण उन्हें पेट में बार-बार पानी भरने और लगातार पीलिया का सामना करना पड़ रहा था। उनका ये मुश्किल समय ऐसे ही एक साल तक चलता रहा। मरीज ने अपनी इस बीमारी के लिए मेरठ में कई डॉक्टरों से परामर्श किया, आखिर में वो डॉ. प्रशांत सोलंकी से मिला, जिन्होंने उसकी गंभीर स्थिति का पता लगाया और समय पर अवधेश को अमृता अस्पताल, फरीदाबाद में रेफर कर दिया, जहां उन्होंने लिवर क्लिनिक में आकर हेपेटोलॉजी और गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के हेड डॉ. भास्कर नंदी से परामर्श किया, जिन्होंने लिवर ट्रांसप्लांट के बारे में बताया। इसके बाद, मरीज अमृता हॉस्पिटल में सॉलिड ऑर्गन ट्रांसप्लांट टीम से मिला, जहां लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत के बारे में बताया और ट्रांसप्लांट के लिए आवश्यक कार्यवाही शुरू हुई।

 हॉस्पिटल के हेपेटोपैनक्रिएटोबिलरी (एचपीबी) सर्जरी और सॉलिड ऑर्गन

ट्रांसप्लांटेशन के हेड डॉ. एस सुधींद्रन ने कहाफरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में लिवर ट्रांसप्लांट प्रक्रिया के दौरान आधुनिक रोबोटिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया। डोनर के लिवर के दाहिने आधे हिस्से को निकालने के लिए एक रोबोट का उपयोग किया गया। डोनर और रिसिपिएंट दोनों इस बड़ी सर्जरी के बाद जल्दी ठीक हो गए और डोनर को 1 हफ्ता और रिसिपिएंट को 2 हफ्ते के भीतर छुट्टी दे दी गई।

 हॉस्पिटल,  के सॉलिड ऑर्गन ट्रांसप्लांट की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ जया अग्रवाल ने कहा, "सर्जरी, जो संयुक्त रूप से 12 घंटों तक चली, डॉ. सुधींद्रन, डॉ. उन्नीकृष्णन जी और मेरे साथ-साथ डॉ. दिनेश बालकृष्णन, डॉ. बिनोज एसटी, डॉ. क्रिस्टी टीवी, डॉ. कृष्णनुन्नी नायर, और डॉ. श्वेता मलिक सहित अन्य डॉक्टरों की एक टीम द्वारा संचालित त की गई। एनेस्थिसियोलॉजी के हेड हेड डॉ. मुकुल चंद्र कपूर, एनेस्थिसियोलॉजी टीम से डॉ. वंदना सलूजा और डॉ. शेंकी गर्ग ने भी हमारी सहायता की।"

एक सफल सर्जरी के बाद, अवधेश अब धीरे-धीरे ठीक हो रहे हैं। टेक्नोलॉजी में मास्टर डिग्री कर रहे उत्कर्ष ने भी अपने पिता को बचाने के लिए रोबोटिक सर्जरी के बाद कॉलेज फिर से जॉइन कर लिया है। रोबोटिक सर्जरी से सर्जिकल घाव छोटा और अदृश्य हो जाता है, जिससे खुले घाव की तुलना में घाव जल्दी ठीक हो जाता है।

 सॉलिड ऑर्गन ट्रांसप्लांट विभाग के प्रोफेसर डॉ. उन्नीकृष्णन ने कहा, "लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी के बाद रिसिपिएंट और डोनर दोनों अच्छी रिकवरी कर रहे हैं। अवधेश भी अच्छे से रिकवर कर रहे हैं। हालांकि रिसिपिएंट को नियमित जांच और आजीवन इम्यूनोसप्रेसेन्ट की आवश्यकता होगी। इसके अलावा वह पहले की तरह सामान्य जीवन जीने, अपना काम करने और नई जीवन शक्ति के साथ अपनी दैनिक गतिविधियों को करने के लिए स्वतंत्र है।

अवधेश ने हॉस्पिटल की रोबोटिक लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी के माध्यम से जीवन का दूसरा मौका पाने में सक्षम होने के लिए आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा, "जीवन बदलने वाले इस अनुभव ने मुझे एक नया जीवन दिया है, और मैं कुशल मेडिकल टीम और अपने बेटे के निस्वार्थ कार्य के लिए आभारी हूं। हर दिन अब आशावाद और संभावनाओं से भरा है, और में नए जोश और अच्छे स्वास्थ्य के उपहार की सराहना के साथ भविष्य को अपनाने के लिए उत्सुक हूं।"

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