सुलगते सवाल
 लड़कियों के साथ छेड़खानी की घटनाएं अब जैसे सामान्य बात हो चली
इलमा अजीम 
लड़कियों के साथ छेड़खानी की घटनाएं अब जैसे सामान्य बात हो चली है। आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, मगर मनचलों और आपराधिक वृत्ति के लोगों पर ठीक से नकेल न कसी जाने की वजह से इन घटनाओं पर रोक लगाना भी कठिन बना हुआ है। उत्तर प्रदेश के बरेली में हुई घटना ऐसे ही बेलगाम बदमाशों के आतंक का उदाहरण है। एक नाबालिग लड़की ट्यूशन से घर लौट रही थी। रास्ते में एक मनचले ने उसके साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी। लड़की ने विरोध किया तो लड़के ने उसे ट्रेन के आगे धक्का दे दिया। ट्रेन की चपेट में आने से बच्ची का एक हाथ और दोनों पैर कट गए। यह घटना उस उत्तर प्रदेश की है, जहां की पुलिस दम भरते नहीं थकती कि उसने अपराधियों का मनोबल तोड़ दिया है। शोहदे घरों में दुबक गए हैं और महिलाएं आधी रात को भी सुरक्षित सड़कों पर घूमने लगी हैं। यह घटना पुलिस की कार्यप्रणाली और अपराधियों पर अंकुश लगाने के राज्य सरकार के दावे की पोल खोलती है। आखिर कोई कैसे इतनी हिम्मत कर पाता है कि दिनदहाड़े राह चलती महिला उसकी बात नहीं मानेगी, तो वह उसकी जान लेने पर उतारू हो जाएगा। यह सच है कि महिलाओं के साथ आए दिन ऐसे अपराध हो रहे हैं, जो उन्हें घरों से बाहर निकलने से पहले सोचने पर मजबूर कर देते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि पुलिस सरकारी दिशा-निर्देशों का उचित तरीके से पालन नहीं करती। ऐसा बरेली की इस घटना में भी दिखा। पीड़ित किशोरी के पिता स्थानीय थाने में पहले शिकायत कर चुके थे कि कुछ युवक उनकी बेटी को ट्यूशन के रास्ते में परेशान करते हैं। मगर कार्रवाई तो छोड़िए, पुलिस ने उस शिकायत पर ध्यान भी नहीं दिया। अगर समय रहते पुलिस सक्रिय हो जाती, तो पीड़ित बच्ची की जान खतरे में न पड़ती। पुलिस का यह हाल तब है जब मुख्यमंत्री स्वयं महिला अपराधों को लेकर लगातार निगरानी करते हैं। मुख्य सचिव स्तर पर हर माह समीक्षा बैठकें होती हैं और डीजीपी अपने मातहतों को समय-समय पर ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाने की हिदायत जारी करते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़े बताते हैं कि उसके ‘एंटी रोमियो’ दल ने बीते एक साल में साढ़े छह हजार ऐसे लड़कों के खिलाफ कार्रवाई की है, जो राह चलती महिलाओं को छेड़ते, उन पर फब्तियां कसते हैं। महिला पुलिस चौकियां स्थापित की गई हैं, पुलिसबल में महिला कर्मियों की संख्या पहले के मुकाबले बढ़ी है, मगर स्थानीय स्तर पर पुलिस की संवेदनहीनता का क्या किया जाए! सच है कि पुलिस हर जगह मौजूद नहीं रह सकती, लेकिन अपराधी के मन में कानून का खौफ तो होना ही चाहिए। 

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