पहाड़ों को चाहिए ‘टिकाऊ विकास’
सौनम गौतम
भारी बारिश के चलते हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड से आई त्रासदी की भयावह तस्वीरें हम सबने देखीं। भरभरा कर गिरते घर, नदियों की उफनाती हुई धारा में बहती सडक़ें, दुकानें और भवन, व भूस्खलन की तस्वीरों में जिस एक बात की समानता थी वो ये कि प्रकृति कह रही है ‘बस अब और नहीं’। इस त्रासदी के चलते हिमाचल प्रदेश में अब तक 300 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। लगभग 10000 करोड़ रुपए का अनुमानित नुकसान हो चुका है। हजारों लोगों का आशियाना छिन चुका है और हजारों की संख्या में पशुधन को नुकसान हुआ है। लगभग 1400 सडक़ें त्रासदी के चलते प्रभावित हुई हैं। सेब के कारोबार में लगभग 1000 करोड़ का नुकसान हुआ है व अन्य कारोबारों में भी मंदी आई है। विशेषज्ञों के अनुसार अभी हिमाचल प्रदेश में और बारिश होने की सम्भावना है और सितम्बर के पहले हफ्ते तक ये त्रासदी जारी रह सकती है। सोशल मीडिया की वजह से त्रासदी की जो तस्वीरें आज पूरे देश में पहुंच रही हैं, उसकी आहट हिमाचल प्रदेश को पहले से मिल रही थी। 2020 में जहां हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की 16 घटनाएं हुई थीं, वहीं 2022 में भूस्खलन की 117 घटनाएं हुईं। इस साल भी भूस्खलन की लगभग 100 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। राज्य आपदा प्रबंधन संस्थान की एक रिपोर्ट के मुताबिक मानसून के दौरान आई त्रासदी की वजह से 2017-22 के बीच में लगभग 1800 मौतें हुईं, 3000 से अधिक मवेशी त्रासदी की भेंट चढ़ गए और लगभग 7500 करोड़ का नुकसान हुआ। मानसून के दौरान दिखने वाली त्रासदी की इन तस्वीरों को मानसून के बाद आने वाली ‘विकास’ और ‘पर्यटन’ की तस्वीरें ढक लेंगी। ग्रीन ट्रिब्यूनल, आपदा प्रबंधन, लैंडस्लाइड एटलस ऑफ इंडिया व तमाम संस्थाओं की चेतावनियों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। सवाल यह है कि क्या पहाड़ों में विकास के नाम पर जो कुछ हो रहा है वह टिकाऊ है? जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) आज पूरे विश्व की हकीकत बन चुका है। जलवायु परिवर्तन के चलते हिमालय जैसे तरुणाई से भरे पहाड़ों पर मंडराने वाले खतरे भी हमारे सामने हैं। लेकिन क्या इन सुंदर पहाड़ों को बचाने के लिए भविष्य की दृष्टि से टिकाऊ विकास के कदम उठाए जा रहे हैं? विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते बरसात की अनिश्चितता व भयावहता आने वाले दिनों में भी कम नहीं होगी और इस कारण से पहाड़ों पर बिना सोचे-समझे किए जा रहे ‘विकास’ को त्यागते हुए हमें टिकाऊ विकास का मॉडल अपनाना होगा।
No comments:
Post a Comment