स्त्रियों की स्वतंत्रता और रक्षा की अराजक स्थिति

अब भारत में स्त्रियों की स्वतंत्रता रक्षा एवं अस्मिता बचाने की स्थिति बड़ी भयावह हो चुकी है। एक नाबालिग बालिका साक्षी को प्रेम प्रसंग के चलते युवक द्वारा चाकू तथा पत्थरों से सरेराह भीड़ के बीच मौत के घाट उतारना एक दर्दनाक कथा भयावह घटना है अब क्या हम मानव से पशु हो चुके हैं जो महिलाओं की इस तरह दर्दनाक हत्या करने पर आमादा हैं।
इसके पूर्व भी एक युवती श्रद्धा की एक प्रेमी युवक द्वारा शरीर के 34 टुकड़े कर खौफनाक हत्या कर दी गई थी। ऐसा लगता है मानो समाज में कोई सुरक्षा व्यवस्था है ही नहीं। दूसरी तरफ देश के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल लाने वाली साक्षी मलिक विनेश फोगाट और अन्य महिला द्भारा भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृज भूषण सिंह के खिलाफ उनके द्वारा किये गए यौन शोषण के खिलाफ  कार्रवाई की मांग को लेकर महिला तथा पुरुष पहलवानों द्वारा लगातार धरना प्रदर्शन किया जा रहा है बात यहां तक पहुंच गई है कि वे अपनी कड़ी मेहनत तथा खून पसीने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के बाद देश के लिए प्राप्त किए मेडल को हरिद्वार जाकर गंगा में विसर्जित करने के लिए मजबूर हो गई थी।



पहलवानों को समझा-बुझाकर ऐसा करने से रोक तो लिया गया है पर क्या न्याय में देरी न्याय के विमुख होना नहीं है, इसी तरह मणिपुर में हिंसा के खिलाफ मीराबाई चानू तथा अन्य 11 मेडलिस्ट ने अपने पदक वापस करने की घोषणा कर दी है। स्थिति बड़ी अराजक एवं भयावह है देश में सुरक्षा तथा कानून व्यवस्था एकदम लचर हो गई है महिलाएं असुरक्षित है और न्याय की के लिए बाट जोहने पर मजबूर है। हम कागज में महिला सुरक्षा स्त्री सशक्तिकरण महिला भागीदारी की बढ़-चढ़कर बात करते हैं पर धरातल पर स्तिथि इसके विपरीत और चिंतनीय है।
देश की विशाल जनसंख्या में 50 प्रतिशत की भागीदारी रखने वाली राष्ट्र की संवेदनशील माताएं ,बहने अपने मूल तथा सार्थक अधिकार की तलाश में अभी भी संविधान और सरकार की तरफ आस लगाए इंतजार में बैठी हुई है। स्त्रियों का एक बड़ा तबका अभी भी अपनी स्वतंत्रता एवं मौलिक अधिकार से वंचित है। महिलाओं का विकास जितना विशाल आभासी रूप से दिखाया जा रहा है, वास्तविकता एवं धरातल पर स्थिति वैसी नहीं है। महिलाओं के भौतिक रूप से विकास के लिए एक जन अभियान और पृथक समेकित योजना की आवश्यकता देश में होगी तब जाकर महिलाओं के सशक्तिकरण की बात अपनी मूल भावना को प्राप्त कर पाएगा।
वर्तमान में भारत की विशाल जनसंख्या में 45 से 50 प्रतिशत भागीदारी महिलाओं की है। महिलाओं को अभी उनके हक का अधिकार एवं भागीदारी सुनिश्चित नहीं हो पा रही है, ऐसे में रक्षा प्रतिरक्षा क्षेत्र में महिलाओं की भर्ती एक अच्छे संकेत के रूप में सामने आ रही है। आज के समय में महिलाएं सभी क्षेत्रों में साहस, शौर्य और ऊर्जा का बेहतरीन प्रदर्शन करते आ रही हैं, महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर काम में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए तैयार है। अब इसमें सशस्त्र बलों यानी डिफेंस सर्विस भी अछूता नहीं रहा सबसे बड़ी बात स्वतंत्र भारत की दूसरी रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण बनी थी इसके पूर्व श्रीमती इंदिरा गांधी प्रथम रक्षा मंत्री रही थी।
 अब कोई भी क्षेत्र ऐसा अछूता नहीं रहा जहां महिलाओं ने अपनी सशक्त दस्तक ई पहचान ना कराई हो, यह तो पूर्व से ही कहा गया है यदि आप एक पुरुष को शिक्षित करते हैं तो सिर्फ एक पुरुष शिक्षक होता है किंतु यदि आप किसी महिला को सर्वांगीण शिक्षा देते हैं तो आने वाली संपूर्ण पीढ़ी को शिक्षित कर रहे हैं ।नारी शक्ति को अब ज्यादा दिनों तक देश की प्रगति विकास के योगदान से परे नहीं रखा जा सकता हैl परिवार की धुरी महिलाएं होती है परिवार से घर बनता है धर से समाज और समाज और संपूर्ण समाज से एक सशक्त राष्ट्र की बुनियाद रखी जाती है।
इस तरह देश की बुनियाद ही स्त्री सशक्तिकरण है। महिलाएं अच्छी तरह समझती हैं कि घर से लेकर देश की सीमा तक उन्हें व्यवहार कर देश के विकास और उसकी रक्षा में उन्हें किस तरह योगदान देना है। महिलाओं के बिना देश की प्रगति एवं विकास की कल्पना सर्वथा बेमानी हैl सशक्त माताएं सशक्त राष्ट्र का निर्माण करती हैंl और सीमा रक्षा बलों में महिलाओं की भागीदारी इसका एक बड़ा उदाहरण और प्रतिफल है इन उदाहरणों में से प्रथम लेफ्टिनेंट सुनीता अरोड़ा ,प्रथम एयर मार्शल पद्मावती बंदोपाध्याय ,कैप्टन मिताली मधुमिता ,भारत में आए अमेरिकी राष्ट्रपति को गार्ड ऑफ ऑनर देने वाली प्रथम विंग कमांडर पूजा ठाकुर ऐसे अधिकारियों के नाम है जिन्होंने रक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है एवं महिलाओं के प्रति सारी अवधारणाओं को गलत साबित कर एक सशक्त छवि को निरूपित किया है।
महिलाओं की शारीरिक बनावट तथा उनके शारीरिक विन्यास को देखते हुए प्रतिरक्षा सेवा में उनकी भूमिका बहुत कम रही है,हम मां दुर्गा भवानी की पूजा करते हैं और महिलाओं को कमजोर समझते हैं। किंतु उनकी शक्ति को उनकी भागीदारी को अंततः स्वीकार किया गया और 1992 में पहली बार भारतीय सेना में महिलाओं के लिए द्वार खोले गए एवं 25 महिला कैंडिडेट को ऑफिसर ट्रेनिंग एकेडमी गया में ट्रेनिंग दी गई इसके पूर्व सिर्फ चिकित्सा सेवा में महिलाओं को नियुक्त किया जाता रहा है। सेना में इनकी भागीदारी होते हुए भी इन्हें पुरुषों के समान अधिकार नहीं दिए गए थे, महिलाएं रक्षा सेवा में विधिक, शिक्षा, इंजीनियरिंग, इंटेलिजेंस तथा ऐयर सिग्नल कोर में अपनी सेवाएं देती रही हैं ।
महिलाओं को केवल शॉर्ट सर्विस कमिशन जाने की 14 साल तक के लिए कमीशन किया जाता रहा जबकि पूरे समय के लिए केवल पुरुषों को ही सेना में भर्ती किया जाता थाl 2008 में उच्च न्यायालय के निर्देश पर महिलाओं को परमानेंट कमिशन पर रखा जाने लगा।यह नारी सशक्तिकरण के लिए एक सशक्त मील का पत्थर साबित हुआl सेना की सैन्य प्रमुखों की समिति ने सशस्त्र बलों में महिलाओं की नियुक्ति पर स्थाई कमीशन की सिफारिश तो की किंतु इन्हें लड़ाकू सैनिकों की भूमिका देने से इनकार कर दिया उसके पीछे यह दलील दी गई की महिलाओं को लड़ाई के मैदान में भेजना उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए ठीक नहीं एवं देश की संस्कृति के अनुसार महिलाओं को दुश्मन से लड़ने भेजना अथवा दुश्मन द्वारा पकड़े जाने पर उचित नहीं होगा। इसलिए महिलाओं को फ्रंटलाइन में नियुक्त किया जाना उचित नहीं होगा किंतु बाद में कुछ संशोधन किए जाने के पश्चात महिला अधिकारी कॉम्बैट जोन में पदस्थ की जाने लगी किंतु समाज का नजरिया महिलाओं के संदर्भ में बदलने लगा एवं 2016 में सशस्त्र बलों के कॉम्बैट क्षेत्र में महिलाओं को नियुक्ति देने की बात स्वीकार की गई इसमें दुनिया में कुछ देश ही हैं जिन्होंने महिलाओं को वार फ्रंट पर नियुक्त किया है।
पूर्व के थल सेना प्रमुख बिपिन रावत ने भी कहा था कि हम महिला और पुरुष को समान रूप से देखना चाहते एवं इसके लिए जल थल और वायु सेना एक रूपरेखा तैयार कर रही है जिसके सुखद परिणाम भी होंगे,सशस्त्र बलों में महिलाओं की भागीदारी मजबूत रूप से सामने आएगी एवं पुरुषों की भांति देश की रक्षा तथा दुश्मनों से लोहा लेने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगीं।
(स्तंभकार, रायपुर, छत्तीसगढ़)

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